ऐसा शायद ही कोई होगा जिसने हिंदी सिनेमा की आईकॉनिक फिल्म मुगल-ए-आज़म के बारे में ना सुना हो. फिल्म की भव्यता के साथ-साथ एक ऐतिहासिक महाकाव्य, जो शायद ही हिंदी सिनेमा में कभी देखा गया हो. निर्देशक के. आसिफ के करियर की बेहतरीन फिल्म मुगल-ए-आज़म के बारे में, इसके बड़े-बड़े सेट से लेकर कलाकारों की अदाकारी, लड़ाई के सीन, रोमांटिक सीन और यादगार संगीत तक सब कुछ आज 60 साल बाद भी चर्चा का विषय है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि निर्देशक के आसिफ ने फिल्म मुगल-ए-आज़म की घोषणा साल 1945 में की थी, उस वक्त स्टार कास्ट का नाम वीना, नरगिस और चंद्रमोहन बताया गया था, जिसके बाद मुंबई के बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो में फिल्म की शूटिंग होनी थी. सलीम का किरदार निभाने के लिए एक्टर सपरू और दुर्गा खोटे को अकबर की राजपूत पत्नी और सलीम की माँ जोधा के रूप में साइन किया गया. एक्टर हिमाल्यवाला, जिन्होंने महबूब की हुमायूँ (1945) में एक अहम भूमिका निभाई थी, को सलीम के राजपूत दोस्त दुर्जन सिंह की भूमिका के लिए चुना गया.
इन सबके अलावा फिल्म में अनिल विश्वास को संगीत देना था, जबकि कमाल अमरोही, अमन, वजाहत मिर्ज़ा और एहसान रिज़वी को बतौर राइटर साइन किया गया था. खबरों की मानें तो विभाजन की खबरों के बीच भी फिल्म का काम ठीक तरीके से चल रहा था मगर जब देश का विभाजन हुआ तो हकीम और एक्टर हिमाल्यवाला को पाकिस्तान जाना पड़ा. एक ही झटके में, आसिफ ने अपने फाइनेंसर और एक एक्टर को खो दिया. फिल्म के सेट के लिए मंगाया गया कच्चा माल भी बेकार हो गया. बताया जाता है कि उस वक्त कच्चे स्टॉक के लगभग 10 ट्रक बेकार हो गए और उन्हें फेंक दिया गया था, इसके बाद के. आसिफ ने फिल्म के प्रोड्क्शन की कमान खुद संभाली. मुसीबतें यहीं खत्म नहीं हुईं, फिर एक्टर चंद्रमोहन, जिन्हें अकबर की भूमिका निभानी थी, का निधन 2 अप्रैल, 1949 को हो गया. इस तरह से फिल्म जिन कलाकारों के साथ अनाउंस की गई, उनके साथ बन नहीं पाई.
आपको बता दें कि साल 1950 में दिलीप कुमार और नरगिस ने फिल्म 'हल्चल' में साथ काम किया था. ये फिल्म दर्शकों को खूब पसंद भी आई थी. मगर ऐसा बताया जाता है कि इस फिल्म की शूटिंग के दौरान अक्सर दिलीप, नरगिस को सलाह देते थे कि अपने डायलॉग्स किस तरह बोलें, ये बात नरगिस को बिल्कुल पसंद नहीं थी. उस फिल्म के बाद से ही नरगिस ने दिलीप के साथ काम नहीं करने की कसम खाई.