जावेद अख्तर (Javed Akhtar) से पहले सलीम खान (Salim Khan) फिल्म इंडस्ट्री में एक्टर बनने के लिए आ चुके थे. दरअसल, एक शादी के दौरान सलीम खान को देखकर डायरेक्टर के. अमरनाथ ने उन्हें मुंबई बुला लिया. जब वो मुंबई आए तो के. अमरनाथ ने सलीम को 400 रुपये महीने पर बतौर एक्टर रख लिया. कुछ फिल्मों में सलीम खान ने बतौर एक्टर काम किया लेकिन मामला कुछ जमा नहीं जिसके बाद सलीम खान ने लेखक बनने का फैसला किया.






साल 1966 में बतौर एक्टर सलीम खान की फिल्म 'सरहदी लुटेरा' को डायेक्ट किया था एस एम सागर ने, जब इस फिल्म के लिए उन्हें कोई डायलॉग राइटर नहीं मिल रहा था तब उसी फिल्म के क्लैप बॉय को डायलॉग लिखने की जिम्मेदारी सौंप दी गई. जिसका नाम था जावेद अख्तर. इसी दौरान जावेद अख्तर और सलीम खान की जान-पहचान हो गई और धीरे-धीरे दोनों दोस्त बन गए.


उस वक्त सलीम और जावेद दोनों की ही किस्मत उनका साथ नहीं दे रही थी. नाकामयाबी से घबरा कर दोनों ने साथ काम करने का फैसला कर लिया. जल्दी ही सलीम-जावेद ने एक छोटी कहानी लिखी और डायरेक्टर सागर को दे दी, जिसका नाम था 'अधिकार'. इस कहानी के लिए दोनों को 5-5 हजार रुपये मिले.






इसके बाद उन्हें किसी ने सलाह दी कि दोनों को सिप्पी फिल्म्स में अपना लक आजमाना चाहिए. वहां एक स्टोरी डिपार्टमेंट बनाया जा रहा है. जब जावेद और सलीम सिप्पी साहब के नए ऑफिस पहुंचे तो उनके आइडिया और कहानी से हर कोई प्रभावित हुआ और रमेश सिप्पी ने दोनों को अलग-अलग साढ़े सात सौ रुपये महीने पर कॉन्ट्रेक्ट पर अपने यहां रख लिया. इसके बाद जावेद अख्तर और सलीम खान की जोड़ी ने हिंदी सिनेमा को 'सीता और गीता', 'यादों की बारात', 'जंजीर', 'शोले', 'त्रिशूल', 'डॉन', 'शान', 'क्रांति', 'शक्ति' और 'मिस्टर इंडिया' जैसे सुपरहिट फिल्में दी.


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