हिंदी सिनेमा के मशहूर कॉमेडियन जगदीप का हाल में निधन हुआ है, जिसके बाद बॉलीवुड में एक बार फिर शोक की लहर दौड़ पड़ी है. अब ऐसे में जगदीप के को-एक्टर और करीबी दोस्त धर्मेंद्र ने हाल ही में दिए अपने एक इंटरव्यू में उनके बारे में बहुत सी बातें शेयर की हैं.


उन्होंने जगदीप के बारे में बात करते हुए कहा कि- 'हम दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया. उनके साथ मेरी कई खूबसूरत यादें रही हैं. वो बहुत ही जॉली नेचर के इंसान थे और एक्टर भी. उन्होंने बिमल रॉय की फिल्मों से अपना करियर शुरू किया और बतौर हीरो भी जगदीप जी ने कई फिल्में की. उनकी एक फिल्म 'सूरमा भोपाली' में मैंने भी काम किया था जिसे उन्होंने ही डायरेक्ट भी किया था, इस फिल्म में मेरा डबल रोल था. मुझे उनके साथ काम करने में बहुत मजा आया था. मेरा क्या है? मुझे कोई प्यार से मिलता है तो मैं उसी का हो जाता हूं और जगदीप जी वैसे ही थे.' वो कहते हैं ना कि, किसी को रुलाने से कहीं ज्यादा मुश्किल है हंसाना. यही मुश्किल काम जगदीप बड़ी ही आसानी से कर लिया करते थे.



इसके अलावा धर्मेंद्र ने ये भी बताया कि- कुछ महीनों पहले ही वो मुझसे मिले. एक बार उन्होंने मुझे कुछ पुराने सिक्के दिए क्योंकि वो जानते थे कि मुझे पुराने सिक्के जमा करने का शौक है. हमारे बचपन में अठन्नी- चवन्नी की बढ़ी कीमत होती थी. जगदीप ने मुझे अठन्निया लाकर दी और मुझसे कहा कि पाजी मैं जानता हूं, आपको पुराने सिक्कों को जमा करने का शौक है. मेरे पास कुछ हैं आप उन्हें ले लीजिए.'



साल 1988 में आई फिल्म 'सुरमा भोपाली' आई. जिसकी डबिंग में भी जगदीप मेरे साथ सनी सुपर साउंड स्टूडियो में आया करते थे. वो फिल्म बड़े ही मजे में बनी थी. बहुत अच्छे तरीके से. जब जगदीप की मां बीमार थीं तो मैं उनसे मिलने अक्सर उनके घर जाया करता था, तब उनके बच्चे छोटे थे तब से उनके घर पर मेरा आना जाना था. हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे. उन्हें खाने पीने का शौक तो था ही, वो खुद भी अच्छा खाना बना लेते थे. वो अपने हर किरदार में अपना फ्लेवर जोड़ देते थे, यही एक सच्चे कॉमेडियन की पहचान होती है. फिल्म 'इश्क पर जोर नहीं' में जगदीप एक बंगाली आदमी के किरदार में थे. उन्होंने बड़ी ही शानदार बंगला हिंदी बोली थी. 'शोले' के 'सूरमा भोपाली' के किरदार से तो वो हमेशा के लिए अमर हो गए. जब तक ये फिल्म इंडस्ट्री रहेगी, लोग ''सूरमा भोपाली' को भी याद रखेंगे. कॉमिक टाइमिंग बहुत कमाल थी उनकी- 'वो जो लंबू निकला और मैंने जो स्टिक घुमाई,' उसमें जगदीप की टाइमिंग बेहद कमाल की थी, बल्कि हर सीन में वो टाइमिंग से अच्छा खेलते रहे. '
इसके अलाव धर्मेंद्र ने आगे बताया कि-जब भी फ्री टाइम होता था तो हम दोनों खूब बातें किया करते थे, हा, कोई गंभीर मुद्दा लेकर नहीं बैठते थे, ज्यादातर हमारे भी गप्पे होती थी. कभी कभी एक-दूसरे की टांग खिंचाई भी किया करते थे. हालांकि उन्होंने अपना नाम बदलकर जगदीप क्यों रखा, मुझे इसके बारे में पता नहीं और ना मैंने कभी पूछा. हम दोनों कई साल साथ रहे. अब लग रहा है कि मेरे अंदर कुछ टूट गया है.