नई दिल्ली: ओशो उर्फ आचार्य रजनीश की बायोपिक का निर्देशन कर रहे फिल्मकार सुभाष घई का मानना है कि बड़े नेताओं-आध्यात्मिक या राजनीतिक लोगों को जीवित रहते हुए अक्सर गलत समझा जाता है, लेकिन दशकों बाद पूजा की जाती है. 'ओशो: द अदर साइड ऑफ द ओशियन' नामक अंग्रेजी फिल्म 'इतालवी निर्देशक लक्सन सुकामेली' के निर्देशन में बनी है.
लोकप्रिय धारणा के विपरीत कि ओशो एक विद्रोही थे. इसके उलट ओशो की शिक्षाओं के छात्र घई का खुद मानना है कि आध्यात्मिक नेता अपने जीवन सिद्धांतों और दर्शन के साथ अपने समय से आगे थे.
उन्होंने कहा, "सभी नेताओं को उनके जीवन के दौरान गलत समझा गया है, 50 सालों बाद उनकी पूजा की जाती है, इसलिए वे ओशो हैं. लोग चाहते हैं कि उनके नेता उनकी भाषा बोलें, लोगों के साथ समस्या है कि वो जैसे सोचते हैं वैसे ही लोग सोचें."
घई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण देते हुए कहा, "क्या नरेंद्र मोदी विवादास्पद नहीं हैं? कोई भी जो अपने समय से पहले सोचता है वह एक विवादास्पद व्यक्ति है।"
घई ने कहा, "नेता प्रगति करना चाहते हैं, लेकिन लोग प्रगति नहीं करना चाहते हैं." घई ने कहा कि भारत में कई आध्यात्मिक नेता हैं, लेकिन देश के बाहर उन्हें अधिक सम्मान दिया जाता है. उन्होंने कहा कि इसकी वजह है कि भारत में धर्म आध्यात्मिकता पर हावी है.
सुभाष घई ने बताया, "वह हमेशा धर्म और जातिवाद के खिलाफ था. यही कारण है कि उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान की आवश्यकता है. वह अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान और सत्य थे."
भविष्य परियोजनाओं के बारे में घई ने कहा कि अगले साल उनकी बड़ी फिल्में रिलीज करने की योजना है. उन्होंने कहा, "'राम लखन', 'खलनायक', 'ऐतराज' और 'हरिचरण' जैसी फिल्मों को रीमेड करेंगे और अगले साल नई फिल्मों का निर्माण करेंगे."