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GoodBye 2021: साल 2021 की वो बेस्ट 10 फिल्में जिन्होंने जीता सबका दिल अगर नहीं देखी हो तो ज़रूर देखें

इस लिस्ट में पढ़ें साल 2021 की बेस्ट 10 फिल्मों के बारे में सब कुछ

Top 10 Films of 2021: साल 2021 जाते-जाते बॉलीवुड को कई शानदार फिल्में गिफ्ट के तौर पर दे गया. घर पर बैठे- बैठे बोर हो रहे हो, और कुछ बढ़िया सी फिल्में देखने का मन कर रहा हो, तो आप हमारी तैयार की गई रेसिपी को देख सकते हैं. साल के एंड में बोरियत को मिटाने के लिए इन 10 फिल्मों को देख अपना मनोरंजन कर सकते हैं . इस लिस्ट में देखिए  साल 2021 की बेस्ट 10 फिल्मों का रीव्यू.  

सरदार उधम (Sardar Udham Review)

र्देशक शूजित सरकार की फिल्म सरदार उधम इसी वीर स्वतंत्रता सेनानी की बायोपिक है. अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई यह फिल्म तथ्यों के साथ आंशिक रचनात्मक आजादी लेते हुए सरदार उधम की जिंदगी की कहानी बताती है. जो निश्चित ही जानने और देखने योग्य है. भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के कई शहीदों को अभी न्याय और सम्मान मिलना बाकी है. वह जो इतिहास के पन्नों में कुछ पंक्तियों में सिमट गए और वह भी जो राजनीतिक रस्साकशी में हाशिये पर कर दिए गए. इस लिहाज से सरदार उधम की कहानी के लिए शुजित सरकार के काम की प्रशंसा करनी चाहिए क्योंकि उन्होंने इसे सिर्फ फिल्म न रखते हुए किसी दस्तावेज की तरह पर्दे पर उतारा है. सरदार उधम की लंबाई करीब पौने तीन घंटे की है. इसमें किसी तरह की रफ्तार या जल्दबाजी नहीं है. ऐसे में दर्शक के लिए सबसे जरूरी यह होगा कि वह पर्याप्त समय रखते हुए इसे देखे और धैर्य रखे.  शूजित ने इसे आम मसाला बॉलीवुड पीरियड बायोपिक की तरह नहीं बनाया, इसलिए इस फिल्म को उस तरह नहीं देखा सकेगा. यह शुजित की महत्वाकांक्षी फिल्म है, जिसमें उन्हें पूरी टीम का अच्छा सहयोग मिला है. गेंद अब दर्शकों के पाले में है.

सूर्यवंशी (Sooryavanshi Review)

सूर्यवंशी की पटकथा भटकती है. पाकिस्तान से आतंकियों को भारत भेजने वाला कथानक दर्जनों फिल्मों, वेबसीरीजों में आ चुका है. उसका दोहराव यहां है. अक्षय के किरदार में न सिंघम वाली बात है और न सिंबा वाली. संभवतः इसलिए रोहित ने बाजीराव (अजय देवगन) और भालेराव (रणवीर सिंह) की एंट्री कराई. दोनों आखिरी के करीब आधे घंटे में आते हैं. लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं घट रहा होता कि अक्षय अकेले न संभाल पाते. बाजीराव और भालेराव की यहां मौजूदगी पुराने ब्रांड को भुनाने की कोशिश भर है. इसे गंभीरता से न लें. सूर्यवंशी का रोचक और रचनात्मक हिस्सा वह फेंटेसी है, जिसमें मुंबई ब्लास्ट करके पाकिस्तान भागा अंडरवर्ल्ड डॉन और आतंकी सरगना वापस अपने वतन लौट कर मां की कब्र पर फातिहा पढ़ता है. कहते हैं, इस डॉन की इच्छा मां की कब्र के बगल में दफन होने की है. फिल्म में उसकी इच्छा पूरी होते दिखाई गई है. इस प्रसंग को तेजी समेट दिया गया. जबकि इसमें जान थी. रोहित की फिल्म हल्की-फुल्की होते हुए भी हिंदुस्तानी मुस्लिम और विदेशी इशारों पर आतंक फैलाने वालों में फर्क करती चलती है. लेकिन कहीं-कहीं उसकी बातों में उभरा फर्क एजेंडे जैसा मालूम पड़ता है. 

शेरशाह (Shershah Review)

भारतीय सैनिक परमवीर चक्र से सम्मानित कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) की लाइफ पर बेस्ड  है. 'शेरशाह' को विष्णु वर्धन ने डायरेक्ट किया है और इसमें कियारा आडवाणी (Kiara Advani) भी हैं. फिल्म में विक्रम बत्रा की पालमपुर के एक लड़के से सैनिक बनने तक की यात्रा को दिखाया जा रहा है. विक्रम ने साल 1999 में शहीद होने से पहले कश्मीर में पाकिस्तान के खिलाफ एक महत्वपूर्ण जीत हासिल की थी.

पगलैट (Pagglait)

इस फिल्म में सान्या मल्होत्रा एक विधवा महिला का रोल प्ले कर रही हैं. फिल्म में सान्‍या मल्होत्रा 'संध्‍या' के क‍िरदार में हैं, ज‍िसके पति की मौत हो चुकी है.लेकिन पति की मौत के बाद भी सान्या के आस-पास और उनसे जुड़े लोग दुखी हैं, पर सान्या दुखी नहीं हैं. इस फिल्म के जरिए समाज के कई अहम मुद्दों को उठाने की कोशिश की गई है, इस फिल्म के जरिए जानिए दर्शकों के उम्मीदों पर कितनी खरी उतर पाई है ये फिल्म.

83 Review

83 का वास्तविक पूरा फोकस कपिल देव पर है. निश्चित ही यह कपिल की बायोग्राफी नहीं है लेकिन यहां सब कुछ उन्हीं के चारों ओर घूमता है. बतौर कप्तान वह चीजों को किन मुश्किलों से मैनेज कर रहे थे, यह यहां दिखता है. जिम्बाब्वे के विरुद्ध उनकी 175 नॉट आउट की ऐतिहासिक पारी को फिल्म में खूबसूरती से रचा गया है. विश्व क्रिकेट की महानतम पारियों में शीर्ष पर आने वाली इस पारी का कोई वीडियो रिकॉर्ड नहीं है क्योंकि बीबीसी के कैमरे उस दिन ऑस्ट्रेलिया-वेस्ट इंडीज के कथित महत्वपूर्ण मैच को कवर कर रहे थे.कबीर खान ने फिल्म का टोन हल्का बनाए रखा और टीम के माहौल को बेहद दोस्ताना बताया. कपिल के बाद उनका दूसरा फोकस यहां विश्व कप के वे मैच हैं, जिनमें भारत ने उलटफेर किए या बड़ी जीत हासिल की. लेकिन गैर-जरूरी चीजों से कबीर का मोह यहां नहीं छूटा. भारत-पाकिस्तान की दुश्मनी और हिंदू-मुस्लिम दंगे भी क्रिकेट की इस कहानी में उन्होंने डाले.

अतरंगी रे (Atrangi Re Review)

फिल्म की खूबसूरती इसके किरदार हैं. सारा अली खान यहां ठेठ देसी गर्ल हैं. पूरी कहानी के केंद्र में हैं. सारी बातें उनके इर्द-गिर्द हैं. अपने रोल से उन्होंने पूरा न्याय किया है. वह उम्मीद कर सकती हैं कि आनंद एल राय की तनु वेड्स मनु ने जो जादू कंगना रनौत के करिअर में किया था, यह फिल्म उनके लिए करे. सारा के किरदार में यहां परतें हैं और उन्होंने अभिनय से इन्हें अलग-अलग स्तर पर जीया है.अतरंगी रे में रोमांस, इमोशन और ड्रामा भरपूर है. आनंद एल राय ने सिनेमा की भव्यता को यहां बनाए रखा है. कैमरा वर्क और एडिटिंग अच्छे हैं. जीरो की नाकामी के बाद राय यहां फिर पुरानी लय में हैं. यही बात हिमांशु राय की लेखनी के बारे में कही जा सकती है. उन्होंने कहानी में दिलचस्प ट्विस्ट डाला है, जो फिल्म को रोमांस और ड्रामे से ऊपर उठा कर मानवीय बनाता है.

मिमी (Mimi Review)

मिमी मानवीय और भावुक पक्षों को उभारती है. अमेरिका से भारत में सरोगेट मदर ढूंढने के लिए आए जॉन (एडन वायटॉक) और समर (एवलिन एडवर्ड्स) जब शेखावटी पहुंचते हैं, तो उनकी नजर मिमी (कृति सैनन) पर पड़ती है. 25 की हो चुकी मिमी डांसर है और उसे बॉलीवुड फिल्मों की हीरोइन बनना है. जॉन-समर को लेकर सैर पर निकला कार ड्राइवर भानुप्रताप पांडे (पंकज त्रिपाठी) उन्हें मिमी से मिलाता है. मिमी को मुंबई जाने और वहां स्ट्रगल के लिए पैसा चाहिए. भानु उसे समझाता है कि वह सरोगेट मदर बनती है तो मोटी रकम मिलेगी, बीस लाख रुपये! सिर्फ नौ महीने की बात है और स्ट्रेच मार्क्स के सवाल पर डॉक्टर मिमी से उल्टा पूछ लेती है कि शिल्पा शेट्टी का फिगर खराब हुआ क्या? मिमी राजी-खुशी तैयार हो जाती है लेकिन बात तब बिगड़ती है, जब प्रेग्नेंसी का लंबा वक्त बीतने के बाद डॉक्टर बताती है कि होने वाला बच्चा मानसिक रूप से विकलांग रहेगा. जॉन और समर को अब यह बच्चा नहीं चाहिए. मिमी क्या करे?फिल्म सरोगेसी की कानूनी जटिलताओं और तकनीकी बहस में नहीं उलझती. न ही वह रोने-धोने और तनाव पैदा करने वाला ड्रामा दिखाती है. यहां सब कुछ फील-गुड अंदाज में आगे बढ़ता है. थोड़ा हंसाता-गुदगुदाता है और थोड़ा इमोशनल बनाता है. मिमी की कहानी ‘लोग क्या कहेंगे’ वाले चक्कर में भी नहीं पड़ती और सधे हुए ढंग से लगातार आगे बढ़ती है.

रे (Ray Review)

रे अपनी कहानियों में मानव मन की गहराइयों में उतरते हैं. ये चारों कहानियां भी अपने मुख्य किरदारों के मन की परतों को उघाड़ती है. घटनाओं और किरदारों की मानसिक स्थिति के द्वंद्व के बीच रे सच को सामने लेकर आते हैं. सभी निर्देशकों ने अपना काम बढ़िया ढंग से किया है.यह रे का पहला सीजन है और नेटफ्लिक्स की योजना आगे उनकी और कहानियों को लाने की है. स्क्रीन पर बदलते सिनेमा के दौर में एंथोलॉजी रे दर्शकों के मन में बैठी इस भ्रांति को दूर करती है कि सत्यजित रे सिर्फ गंभीर सिनेमा बनाया करते थे. सच यह है कि वह बढ़िया लेखक भी थे और उनकी रंग-बिरंगी कहानियों का संसार बांग्ला साहित्य को हरा-भरा बनाता है. उसकी एक झलक आप यहां रे में देख सकते हैं.

त्रिभंग(Tribhanga Review)

रेणुका शहाणे की यह कहानी सीधी-सरल है लेकिन उसका अंदाज टेढ़ा-मेढ़ा-क्रेजी है. इसलिए गंभीर बात करते हुए भी यह किसी स्तर पर ऊबऊ या झिलाऊ नहीं लगती. फिल्म का क्राफ्ट सुंदर है और तीनों महिलाओं की कहानी कम में ज्यादा कही-सुनी गई है. घटनाओं के साथ यहां भावनाओं को बराबर जगह दी गई है. इसलिए फिल्म से कभी दर्शक का ध्यान नहीं हटता. रेणुका ने स्क्रिप्ट को कसा है और फिल्म को एडिटिंग ने सुंदर बनाया है. लेखक-निर्देशक के रूप में रेणुका की यह पहली हिंदी फिल्म है और इसके लिए वह प्रशंसा-पुरस्कार की हकदार हैं. अभिनेत्री के रूप में शोहरत पाने वाली रेणुका ने 2009 में मराठी में फिल्म रीटा से निर्देशन की दुनिया में कदम रखा था. मीडिया की बेइज्जती और खास तौर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की, आजकल की फिल्मों-वेबसीरीजों का मुख्य फीचर हो चली है. हालांकि अब वास्तविक जीवन में भी लोग मीडिया पर मुखर होकर बोलने लगे हैं. त्रिभंग के संवादों में कैमरा-माइक पकड़े मीडिया और इसमें काम करने वालों को जिस तरह से जलील किया गया है, इतना साफ और स्पष्ट आपने पहले नहीं देखा होगा.

हसीन दिलरुबा(Haseen Dillruba Review)

हसीन दिलरुबा कहानी है नफरत से भरे प्यार की. जिसमें सस्पेंस, थ्रिलर, मिस्ट्री और मजेदार ट्विस्ट का तड़का लगाया गया है.एक लड़की जो वाकई हसीन है और किसी की दिलरूबा बनने की ख्वाहिश रखती है. लेकिन किस्मत से लव मैरिज हो जाती है. उसी लड़की के दिल की इच्छाओं का ध्यान रखते हुए वो सब ताना बाना लिखा गया है जो दर्शक देखना चाहेगा.सस्पेंस से भरी फिल्म में क्या तापसी पुलिस की पकड़ में आती है या नहीं….? ये फिल्म का सबसे मजेदार सस्पेंस है. जिसके बारे में हम बताकर आपका मज़ा किरकिरा नहीं करेंगे. आप खुद ही देखिए हसीन दिलरूबा.

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