Ideas Of India 2024: आमिर खान ने ली थी 'महानायक' से बड़ी सीख, सुनाया 'कयामत से कयामत' का एक किस्सा
Ideas Of India 2024: किरण राव की फिल्म लापता लेडीज 1 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज होगी. आमिर खान ने इस फिल्म को प्रोड्यूस किया है. एक इवेंट में आमिर ने बताया कि महानायक से उन्होंने बहुत कुछ सीखा.
Ideas Of India 2024: एबीपी नेटवर्क के वार्षिक शिखर सम्मेलन में आमिर खान ने अपने जीवन की कई बातें शेयर की. उन्होंने अपनी पिछली फिल्मों के फ्लॉप होने, आने वाली फिल्में और पुरानी फिल्मों की शूटिंग के समय क्या-क्या सीख ली, इन सभी बातों का जिक्र किया. इसी दौरान आमिर खान ने अपने शुरुआती दिनों की बातें की और बताया कि उन्होंने बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन से क्या सीखा.
आमिर खान ने अपने करियर की शुरुआत साल 1984 में आई फिल्म होली से की थी. लेकिन उन्हें पहचान 'कयामत से कयामत तक' (1988) जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्म से मिली. आमिर खान ने एबीपी नेटवर्क के वार्षिक शिखर सम्मेलन में अपने शुरुआती दिनों की बड़ी सीख शेयर की, चलिए आपको इसके बारे में बताते हैं.
आमिर खान को अमिताभ बच्चन से मिली थी बड़ी सीख
एबीपी नेटवर्क के इवेंट में आमिर खान ने अपने रिहर्सल के दिनों के बारे में बातें बताईं. उन्होंने फिल्म कयामत से कयामत तक का एक किस्सा भी सुनाया. जिस दौरान उन्होंने बताया कि अमिताभ बच्चन से वो किस तरह से प्रेरित हुए. आमिर खान ने कहा, 'कयामत से कयामत तक' की शूटिंग मैं फिल्मसिटी कर रहा था. उस दिन मेरी कजिन नूजत मेरे साथ थी और डायरेक्टर मंसूर बाहर सेट लगा रहे थे. मैं, नूजत, जुर्शी और शायद रीना भी थी, हम लोग मेकअप रुम में बैठे हुए थे. दिन का सीन था, शाम का शूट होना होना था और हमारे पास 1 से 2 घंटे का गैप था. हम लोगों को रात का एक सीन शूट करना था तो सूरज ढलने का इंतजार करने लगे.'
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आमिर खान ने आगे कहा, जो ब्रेक का समय था उस दौरान हमने देखा कि बाहर किसी फिल्म की शूटिंग चल रही है. आवाजें आने लगीं, लाइट्स लगने लगीं और फिर एक्शन की आवाज आई. उस समय एक एक्टर की रिहर्सल चल रही थी और एक्टर ने 100-200 बार उस लाइन को बोला. एक पॉइंट के बाद मैंने कहा इतना रिहर्सल कौन करता है. जब मैं वहां गया, दरवाजा खोलकर देखा तो अमित जी (अमिताभ बच्चन) को देखा तो अमित जी रिहर्सल कर रहे थे.'
आमिर खान ने इसी विषय में आगे कहा, 'उस समय मैं उनका बहुत बड़ा फैन हुआ करता था. मैं वहां साइड में बैठकर उन्हें देखने लगा. मैंने महसूस किया कि वो एक सीन के लिए कितनी मेहनत कर रहे हैं. उस समय मॉनिटर नहीं होते थे. प्रकाश जी फिल्म के डायरेक्टर थे उन्होंने कहा कि सीन हो गया. फिर भी अमित जी उसी सीन पर अटके रहे. वो प्रकाश जी के पास गए और उनसे बात करने लगे. उस दिन मैंने अमित जी से बड़ा लेसन सीखा कि रिहर्सल का कोई अंत नहीं होता है.'
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