'वतन के आगे कुछ नहीं, खुद भी नहीं...' यही कहती और दिखाती है आलिया भट्ट की फिल्म 'राजी'. निर्देशक मेघना गुलजार बेहद कम फिल्में बनाती हैं लेकिन जब वो कोई कहानी पर्दे पर कहती हैं तो फिर वो उसमें डूब जाती हैं. मेघना अपनी ही कहानियों में इतना डूब जाती हैं कि जब फिल्म बनकर तैयार होती है तो आपको ऐसा लगता है मानो आप स्वयं उस दौर या स्थिति में मौजूद हैं. ऐसा ही एक उदाहरण मेघना ने फिल्म राजी के जरिए पेश किया है. फिल्म को देखते समय कई बार आप देश को लेकर गर्व महसूस करेंगे तो कई बार आप उस 20 साल की लड़की की हिम्मत और जज्बे को सलाम करते नजर आएंगे.


मेघना गुलजार ने ये फिल्म लेखक हरिंदर सिक्का की किताब 'कॉलिंग सहमत' को लेकर बनाई है. ये फिल्म कहानी है एक 20 साल की स्टूडेंट की जो अपने पिता के कहने पर दूसरे वतन के एक शख्स से शादी कर लेती है और वहां जाकर एक जासूस के तौर पर काम करती है. इस फिल्म के बैकड्रॉप में 1971 की लड़ाई को दिखाया गया है. 1971 की लड़ाई में सहमत की खुफिया जानकारियों ने कैसे देश को न सिर्फ एक बड़े खतरे से बचाया बल्कि जंग में जीत भी हासिल करवाई.




कहानी


ये कहानी है दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली 20 साल की एक कश्मीरी लड़की सहमत (आलिया भट्ट) की जिसे इंजेक्शन्स से भी डर लगता है और एक जिसे खून देखकर चक्कर आने लगते हैं. लेकिन के सहमत के पिता वाहिद हिदायत (रजित कपूर) इंडियन इंटेलिजेंस के लिए काम करते हैं. सहमत के दादा ने आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी और उनके कहने पर वाहिद इंडियन इंटेलिजेंस के लिए काम करने लगते हैं. साथ ही उन्होंने बॉडर पार से अच्छे संबंध बनाए हुए हैं और पाकिस्तान के कुछ बड़े अफसरों को विश्वास भी जीता हुआ है. पाकिस्तानियों को लगता है कि वाहिद उनके लिए खुफिया जानकारी जुटाते हैं.


इसी बीच कहानी में मोड़ तब आता है जब सहमत के पिता वाहिद को ये पता चलता है कि उनके फेफड़े में ट्यूमर है और वो लगातार बढ़ रहा है जिसके कारण वो अब शायद ज्यादा दिन जिंदा न रह सकें. ये पता चलने के बाद जब वाहिद पाकिस्तान जाते हैं तो उन्हें पता चलता है कि बंगाल को लेकर पाकिस्तान, भारत के खिलाफ कुछ बेहद बड़ी प्लानिंग कर रहा है. ये सुनते ही वो घबरा जाता है और ब्रिगेडियर सैयद (शिशिर शर्मा ) के छोटे बेटे बेटे इक़बाल सैयद( विक्की कौशल ) से अपनी बेटी सहमत के निकाह की बात रख देते हैं.




कश्मीर वापस आकर वो अपनी पत्नी (सोनी राजदान) को इस बारे में बताते हैं और सहमत को दिल्ली से कश्मीर बुला लेते हैं. वाहिद अपनी बेटी सहमत को इस बारे में बताते हैं और सहमत पिता की बात मान लेती है. पाकिस्तान भेजे जाने से पहले सहमत को ट्रेनिंग देते हैं इंटेलिजेंस ऑफिसर खालिद मीर (जयदीप अहलावात). ट्रेनिंग के दौरान सहमत को एक अलग ही दुनिया के बारे में बताया और सिखाया जाता है. जिसे सीखने में उसकी मदद करती है उसकी किसी भी नंबर को याद कर लेने की आदत. सहमत और इकबाल का निकाह हो जाता है वो कश्मीर से पाकिस्तान आ जाती है. इसके बाद शुरू होता है सहमत का सफर... शुरुआत में तो सहमत को सब अच्छा लगता है और वो आसानी से जानकारियां जुटा लेती है.


शादी के बाद इकबाल से सहमत की नजदकियां बढ़ जाती हैं और दोनों एक दूसरे को मोहब्बत करने लगते हैं. फिल्म की कहानी में अहम मोड़ तब आता है जब सैयद परिवार का एक नौकर सहमत के लिए मुश्किलें बढ़ाने लगता है. शादी के बाद से ही सैयद खानदान के नौकर को सहमत पर शक हो जाता है और यही शक वक्त-वक्त पर सहमत की मुश्किलें बढ़ाता है और फिर एक दिन उसी के कारण सहमत का राज खुल जाता है...इसके बाद क्या होता सहमत और इकबाल क्या करते हैं अपने-अपने देश के लिए, ये दोनों अपनी मोहब्बत को देश के लिए कुर्बान करते हैं या नहीं औऱ इस प्रेम कहानी का अंत क्या होता है इसके लिए तो आपको फिल्म देखने के लिए थिएटर का रुख करना होगा.




डायरेक्शन 


फिल्म की कहानी जितना संजीदा है मेघना गुलजार ने इसका निर्देशन भी इतनी ही संजीदगी के साथ किया है. फिल्म में न तो किसी भी किरदार को हिरोइक दिखाने की कोशिश की गई है और न ही किसी को नीचा दिखाने की कोशिश की गई है. फिल्म में दोनों ही मुल्कों के लोगों के उनके अपने देश के प्रति प्रेम और वफादारी दिखाई गई है. फिल्म का निर्देशन इतने बेहतरीन तरीके से किया गया है कि आपको एक पल के लिए भी ऐसा महसूस नहीं होगा कि फिल्म कहानी से बाहर जा रही है या फिर किसी घटना या भावना को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जा रहा है. फिल्म में लोकेशन्स का भी खास खयाल रखा गया है जिससे फिल्म से कनेक्ट करना और भी आसान हो जाता है.



एक्टिंग


फिल्म में आलिया भट्ट मुख्य किरदार में हैं और बाकी सभी किरदार उसके इर्द-गिर्द घूमती है. आलिया भट्ट ने अपने किरदार को बेहद परिपक्वता के साथ पर्दे पर उतारा है. फिल्म में आलिया के किरदार में जहां एक तरफ 20 साल की लड़की की मासूमियत दिखती है तो वहीं दूसरी ओर उसमें देश के लिए कुछ भी कर गुजरने का जज्बा भी दिखता है. वहीं, अन्य किरदारों की बात करें तो विक्की कौशल ने भी अपना किरदार बखूबी निभाया है. इसके अलावा सोनी राजदान, जयदीप अहलावत, रजित कपूर, शिशिर शर्मा और अश्वंथ भट्ट भी सशक्त व अच्छी भूमिकाएं निभाते नजर आ रहे हैं. फिल्म में बहुत अधिक किरदारों को जगह नहीं दी गई है केवल वही किरदार नजर आ रहे हैं जिनका कहानी से ताल्लुक है.



क्यों देखें फिल्म 




  • फिल्म को देखने के कई कारण जिनमें से एक है इस कहानी की असल जिंदगी के किरदार से जुड़ा हुआ होना. ये फिल्म एक सच्ची कहानी पर आधारित है. एक ऐसी लड़की जिसने 1971 के भारत-पाक युद्ध में बेहद अहम भूमिका निभाई थी और देश को जीत दिलाने में मदद की थी.

  • लंबे समय से बॉलीवुड में इतनी बेहतरीन कहानी पर इतने सटीक निर्देशन के साथ फिल्म नहीं बनी है.

  • आलिया भट्ट की ये अब तक की सबसे बेहतरी परफॉर्मेंस है. जिसे देखने के लिए थिएटर्स का रुख किया जा सकता है.

  • ...और सबसे अहम कारण है कि लंबे समय से देशभक्ति पर इतनी बेहतरीन फिल्म नहीं बनी है. अगर हम बीते वक्त की बात करें तो हमें 1997 में आई फिल्म बॉर्डर याद आती है. हालांकि इस फिल्म का उससे कोई मुकाबला नहीं लेकिन देशभक्ति का जज्बा इसमें उससे भी एक कदम आगे ही दिखता है.