फिल्मकार नंदिता दास का कहना है कि उन्हें अभिनय और निर्देशन दोनों में मजा आता है लेकिन कैमरे के पीछे वह अधिक रचनात्मक महसूस करती हैं. अदाकारा एवं फिल्मकार ने कहा कि निर्देशन से उन्हें गंभीर एवं विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को रेखांकित करने में मदद मिलती है.


नंदिता ने कहा, ‘‘ निर्देशन, अभिनय की तुलना में ज्यादा मुश्किल है. निर्देशन काफी समय लेने वाला और चुनौतीपूर्ण है... यह रचनात्मक और भावनात्मक रूप से बहुत परिपूर्ण है. लेकिन दोनों की अपनी विशेषताएं हैं इसलिए मैं दोनों में से किसी एक का चयन नहीं कर सकती और मैं दोनों को ही करना चाहूंगी.’’





‘‘फ़िराक़’’ और ‘‘मंटो’’ जैसी फिल्मों के लिए आलोचकों की सराहना बटोर चुकीं नंदिता मानती हैं कि हम जो भी कहानी कहना चाहते हैं, उसे कहने से हमें डरना नहीं चाहिए. ‘‘आपको अपनी बात कहने का साहस होना चाहिए. जब मैंने ‘फायर’ की तब मैं नहीं जानती थी कि मुझे कलाकार के तौर पर दूसरी फिल्म मिलेगी या नहीं. यही स्थिति ‘फ़िराक़’ के लिए थी. कोई अनुमान नहीं था कि निर्देशन करूंगी या नहीं.’’





उन्होंने कहा, "हम अक्सर सोचते हैं कि फिल्म में केवल मनोरंजन होना चाहिए, लेकिन मुझे लगता है कि दर्शकों को विषय से जोड़ना जरूरी है. अगर दर्शक जुड़ जाते हैं तो फिर उन्हें इसका अहसास नहीं होता कि फिल्म में गाने या नृत्य हैं या नहीं."


नंदिता अब फिल्म ‘‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है?’’ में नजर आएंगी. इसके बारे में उन्होंने कहा कि यह फिल्म अल्बर्ट के गुस्से के माध्यम से समाज के विभिन्न वर्गों का संघर्ष दिखाती है.