नई दिल्ली: फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप ने साल 2012 में एक फिल्म बनाई थी ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर 2’. इस फिल्म में रामाधीर सिंह नाम का एक किरदार था जिसे मशहूर निर्देशक और एक्टर तिग्मांशु धूलिया ने निभाया था. फिल्म में रामाधीर का एक डायलॉग है जो काफी मशहूर हुआ था. रामाधीर कहते हैं, हिंदुस्तान में जब तक सिनेमा है, लोग #%*& बनते रहेंगे.


यहां पर इस डायलॉग का जिक्र इसलिए करना पड़ा, क्योंकि इस वक्त हिंदुस्तान में एक फिल्म को लेकर विरोध इतना ज्यादा बढ़ गया है कि कुछ लोग इतिहास (जिसकी हकीकत पर इतिहासकारों का मतभेद है) की एक महिला के सम्मान के लिए जीती जागती और सेहतमंद महिला की जान लेने पर उतारूं हो गए हैं.


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जिस राजपूत समुदाय की मिसाल शौर्य और वीरता के लिए दी जाती रही है वही राजपूत समाज आज एक महिला की नाक और गला काटने की बात कर रहा है. इन सजाओं का ऐलान उस गुनाह के लिए किया गया, जिसे अभी तक कोई साबित नहीं कर पाया है. जी हां, संजय लीला भंसाली की जिस फिल्म के विरोध में इतना हंगामा मचा हुआ है उस फिल्म को अब तक इसके विरोधियों ने देखा तक नहीं है.


लेकिन क्या ‘पद्मावती’ फिल्म के विरोधियों को इस बात का ज़रा भी इल्म है कि रानी पद्मिनि पर बनी ये फिल्म कोई पहली फिल्म नहीं है बल्कि देश में इससे पहले भी दो और फिल्में इन्हीं किरदारों को लेकर बनाई चुकी हैं. इससे पहले भी अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मिनि पर फिल्म बनाई गई थी, लेकिन उस दौर में फिल्म का किसी तरह का कोई विरोध नहीं हुआ था.


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रानी पद्मिनि पर सबसे पहले तमिल में बनी थी फिल्म 


रानी पद्मिनि की कहानी पर साल 1963 में तमिल फिल्मों के निर्देशक नारायण मूर्ति ने एक फिल्म बनाई थी, जिसका नाम ‘चित्तौड़ रानी पद्मिनी’ रखा गया था. आज जिस किरदार को निभाने के चलते दीपिका को इतनी धमकियां मिल रही है उसी किरदार को इस तमिल फिल्म में मशहूर अभिनेत्री वैजयंती माला ने निभाया था.


फिल्म ‘चित्तौड़ रानी पद्मिनी’ में भी रानी पद्मिनि और अलाउद्दीन खिलजी की कहानी को ही दिखाया गया था. इस फिल्म में अभिनेता शिवाजी गणेशन ने चित्तौड़ के राजा रतन सिंह का रोल निभाया था. गौरतलब है कि इस तमिल फिल्म के निर्माताओं ने फिल्म को ऐतिहासिक फिक्शन करार दिया था.



(तस्वीर: विकिपीडिया)

इस फिल्म में रानी पद्मिनि और अलाउद्दीन खिलजी का कभी आमना सामना नहीं हुआ. बता दें कि इस फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी, रानी पद्मिनि से मिलने को काफी बेताब रहे, लेकिन रानी ने अंजान शख्श के सामने आने के बजाय सती होने का रास्ता चुना.


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1964 में हिंदी में बनी फिल्म महारानी पद्मिनि’


तमिल फिल्म बनने के एक साल बाद ही रानी पद्मिनि की कहानी पर हिंदी सिनेमा में एक फिल्म बनाई गई. फिल्म का नाम रखा गया ‘महारानी पद्मिनि’. इस फिल्म के निर्देशक जसवंत झावेरी थे. फिल्म में रानी पद्मिनि का किरदार अभिनेत्री अनिता गुहा ने निभाया था.


इस फिल्म की कहानी तमिल फिल्म से अलग थी. इसमें दिखाया गया था कि अलाउद्दीन खिलजी का सेनापति मलिक काफूर खिलजी को रानी पद्मिनि के इश्क में फंसाकर खुद दिल्ली की गद्दी पर राज करना चाहता है. चालबाज सेनापति के झांसे में आकर खिलजी, रानी पद्मिनि से इश्क कर बैठता है.



(तस्वीर: यू ट्यूब)

लेकिन फिल्म के अंत में दिखाया गया है कि अलाउद्दीन खिलजी, रानी पद्मिनि को अपनी बहन मान लेता है. यही नहीं राजा रावल रतन सिंह को फिल्म के आखिर में खिलजी के बाहों में दम तोड़ते हुए दिखाया गया है.



60 के दशक में आई इन दोनों फिल्मों पर कोई विवाद नहीं हुआ था

संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावती’ इन दोनों फिल्मों से कितनी अलग है, ये तो इसकी रिलीज के बाद ही पता चल पाएगा, लेकिन फिल्म कि रिलीज से पहले ही इसपर आरोप लग रहे हैं कि इसमें रानी पद्मावती के किरदार को गलत ढंग से पेश किया गया है. फिल्म पर आरोप है कि इसमें इतिहास के साथ भी छेड़छाड़ की गई है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.


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आज की ‘पद्मावती’ पर जितना भी विवाद हो रहा हो लेकिन ये बात भी सच है कि 60 के दशक में बनी इन दोनों फिल्मों को लेकर किसी तरह का विरोध देखने को नहीं मिला था.