मुंबई: फिल्मकार संजय लीला भंसाली की फिल्म 'पद्मावती' को लेकर चल रहे विवाद पर लेखक अपूर्वा असरानी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि एक कलाकार को ऐतिहासिक या पौराणिक शख्सियतों का अपने अंदाज में विवेचन करने का अधिकार है और अगर किसी को इसपर एतराज हो तो उसे न देखे.
इससे पहले असरानी ने 'एस दुर्गा' को समर्थन किया था, जिसे भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2017 से बाहर कर दिया गया था.
उन्होंने कहा कि उन्हें यह बेहद हास्यास्पद लगता है जब प्रदर्शन कर रहे लोगों को शांत करने के लिये कोई फिल्म निर्माता यह कहता है कि "पहले आप फिल्म देखिये उसके बाद फैसला कीजियेगा." असरानी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में कहा, "मुझे 'क्या आपने प्रतिबंध/सिर कलम करने का आह्वान करने से पहले पद्मावती का एक भी दृश्य देखा है' जैसे स्पष्टीकरण दिये जाने की जरूरत बेहद हास्यास्पद और खुद को हराने जैसी लगती है." उन्होंने लिखा कि फिल्म की कहानी क्या है यह मायने नहीं रखता, एक कलाकार के ऐतिहासिक या पौराणिक शख्सियतों के विवेचन को अस्तित्व में रहने का पूर्ण अधिकार है. अगर लोगों को सामग्री पसंद नहीं है तो उसे न देखें.
'अलीगढ़' के पटकथा लेखक ने कहा, "अगर उनकी आस्था केवल एक फिल्म से ही डगमगा जाए तो उन्हें यह जांचने की जरूरत है कि उनकी आस्था थी भी या नहीं." असरानी ने पोस्ट का अंत करते हुए लिखा, "आईए, असली लड़ाई लड़ें." पिछले दिनों, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के मलयालम फिल्म 'एस दुर्गा' और मराठी फिल्म 'न्यूड' को आईएफएफआई की 'इंडिया पैनोरमा सेक्शन' से बाहर किए जाने का विरोध करने के बाद असरानी खबरों में आए थे.
असरानी ज्यूरी का हिस्सा थे और बाद में ज्यूरी अध्यक्ष सुजॉय घोष और ज्ञान कोरिए के साथ उन्होंने इस्तीफा दे दिया था.