Ajmer 92 Movie Controversy: सबसे पहले द कश्मीर फाइल्स, फिर द केरल स्टोरी और अब अजमेर 92... मनोरंजन की पहचान बन चुकी फिल्मी दुनिया अब अतीत के उन पन्नों को उधेड़ने का दावा करने लगी है, जिनकी गूंज शायद लोगों के जेहन से मिट चुकी थी. मसला यूं है कि जुलाई में अजमेर 92 फिल्म रिलीज होने वाली है. दावा किया जा रहा है कि इस फिल्म में 1990 से 1992 के दौरान राजस्थान के अजमेर में हुए देश के सबसे बड़े स्कैंडल को दिखाया गया है. आइए आपको बताते हैं कि आखिर उस दौरान अजमेर में क्या हुआ था? जो कुछ भी हुआ था, वह सामने कैसे आया था और यह फिल्म हकीकत के कितने करीब है? इसका विरोध कौन-कौन कर रहा है?
ऐसे शुरू हुई थी कहानी
साल 1992... तारीख 21 अप्रैल... उस दिन सुबह सूरज निकला तो पूरे अजमेर में दहशत का माहौल था. दरअसल, स्थानीय दैनिक अखबार नवज्योति की एक खबर ने पूरे शहर में हलचल मचा दी थी. युवा रिपोर्टर संतोष गुप्ता ने शहर की करीब 100 स्कूली छात्राओं को बलात्कार के बाद ब्लैकमेल किए जाने का खुलासा किया था. इनमें से कई छात्राओं ने तो मौत को गले लगा लिया था. खबर में दावा किया गया था कि अजमेर के अलग-अलग स्कूलों में पढ़ने वाली 17 से 20 साल की 100 से ज्यादा छात्राओं को बहला-फुसलाकर जाल में फंसाया गया. उनकी न्यूड तस्वीरें खींची गईं और ब्लैकमेल करके उनका यौन शोषण किया गया. भले ही वह जमाना सोशल मीडिया का नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे इस खबर ने पूरे देश में हलचल मचा दी.
एक-एक करके शिकार बनी थीं 100 से ज्यादा लड़कियां
नवज्योति अखबार ने कई पीड़ित छात्राओं के बयान भी अखबार में प्रकाशित किए थे. उन्होंने बताया था कि शहर के रसूखदार परिवारों के कुछ लड़कों ने एक छात्रा को अपना शिकार बनाया और उसके आपत्तिजनक फोटो खींच लिए. इन तस्वीरों को पूरे शहर में बांटने की धमकी देकर ब्लैकमेल किया गया. फोटो डिलीट करने के बदले छात्रा से दूसरी सहेली को लाने के लिए कहा गया. इस तरह यह सिलसिला बढ़ता चला गया और 100 से ज्यादा लड़कियां वहशियों की शिकार बन गईं.
काली करतूत में शामिल थे कई रसूखदार
राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने मामले की जांच कराने का आश्वासन दिया. जांच के बाद मामला अदालत तक पहुंचा और 18 आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया. इनमें मुख्य आरोपी फारुक चिश्ती, नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती थे. ये तीनों यूथ कांग्रेस में अहम पदों पर थे. साथ ही, अजमेर के चर्चित चिश्ती परिवार से भी तीनों आरोपियों का ताल्लुक था. बता दें कि इस मामले में आठ दरिंदों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. इनमें से चार को राजस्थान हाई कोर्ट ने 2001 में बरी कर दिया. बाकी चार आरोपी यह मामला सुप्रीम कोर्ट ले गए, जहां साल 2003 में उनकी सजा घटाकर 10 साल कर दी गई. गौर करने वाली बात यह है कि इस मामले के कई आरोपी अब तक फरार हैं.
हकीकत के कितने करीब है फिल्म?
अब सवाल उठता है कि यह फिल्म हकीकत के कितने करीब है? जानकारों का मानना है कि फिल्म की कहानी का आधार नवज्योति अखबार में प्रकाशित खबरें और पीड़ित छात्राओं के बयान हैं. ऐसे में फिल्म को हकीकत के काफी करीब माना जा रहा है. साथ ही, पुलिस प्रशासन के साथ-साथ न्याय व्यवस्था पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.
कौन-कौन कर रहा है विरोध?
अजमेर कांड पर बनी इस फिल्म की रिलीज डेट की जानकारी मिलते ही खादिम समुदाय के साथ-साथ मुस्लिम समाज की कई संस्थाएं भी इसका विरोध कर रही हैं. इस फिल्म को लेकर अजमेर दरगाह कमेटी ने चेतावनी दी है. दरगाह कमेटी का कहना है कि अगर फिल्म में अजमेर शरीफ दरगाह और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी. वहीं, इस फिल्म को राजनीति से भी जोड़ा जा रहा है. दरअसल, अजमेर दरगाह अंजुमन कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती का कहना है कि जहां भी चुनाव होते हैं, उससे पहले इस तरह की फिल्में बनाई जा रही हैं. हालांकि, कर्नाटक चुनाव में जनता ने द केरल स्टोरी को रिजेक्ट कर दिया था.