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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
अक्षय कुमार नहीं हैं बॉलीवुड के पहले 'पैडमैन', ये है इस मुद्दे को उठाने वाली पहली हिंदी फिल्म
अगर आपको लगता है कि पैडमैन मेंस्ट्रुअल साइकिल पर बनने वाली पहली फिल्म है और अक्षय कुमार पहले रील लाइफ पैडमैन हैं तो आप गलत है.
नई दिल्ली: ''जो औरत का दर्द नहीं समझता भगवान उसे मर्द नहीं समझता, सरकार ने चवन्नी बंद की है लेकिन मैं अठन्नी में दो पैड दूंगा.'' ये डॉयलॉग एक ऐसी फिल्म का है जिसके बारे में आप जानते नहीं होंगे. अगर आपको लगता है कि पैडमैन मेंस्ट्रुअल साइकिल पर बनने वाली पहली फिल्म है, ऐसी फिल्म बनाने वाले आर बाल्कि पहले डायरेक्टर हैं और अक्षय कुमार पहले रील लाइफ पैडमैन हैं तो आप गलत है. पीरियड्स और सेनेटरी पैड्स जैसे मुद्दे पर इससे पहले भी एक फिल्म बन चुकी है जिसका नाम है 'फुल्लू'.
फुल्लू मेंस्ट्रुअल साइकिल जैसे बोल्ड मुद्दे पर बनने वाली हिंदी भाषा की पहली फिल्म है जिसे जून 2017 को दुनियाभर में रिलीज किया गया था. इस मुद्दे को बोल्ड मैं इसलिए कह रही हूं क्योंकि पढ़े-लिखे और सैनेटरी पैड के फायदे जानने के बावजूद हम इसपर बात नहीं करते. सेक्स और पीरियड्स दो ऐसी टॉपिक हैं जिसका जिक्र भी हम आमतौर पर नहीं करते. खुद ब खुद हमारी आवाज इन शब्दों के आने पर हल्की हो जाती है. हालांकि ये फिल्म लोगों तक उस तरीके से नहीं पहुंच पाई जिस तरीके से लोगों के बीच हालिया रिलीज पैडमैन के चर्चे हैं.
क्या है फुल्लू की कहानी
'फुल्लू' फिल्म की कहानी फुल्लू यानि शारिब हाशमी के ईर्द -गिर्द घुमती है. 'फुल्लू' एक बेहद गरीब परिवार का इकलौता बेटा है. उसकी मां गांव में घर-घर जा कर गुदड़ी बेचती है और दिनभर अपने बेटे को कोसती है कि वो शहर जाकर कमाए और अपनी बहन तारा की शादी का दहेज जुटा सके. इनसब जिम्मेदारियों के अहसास से दूर फु्ल्लू गांव की हर महिलाओं का लाडला है. वो गांव भर की महिलाओं का सामान शहर से लाता है. उसे गांव स्वर्ग लगता है इसलिए वो अपनी मां की बात नहीं सुनता.
बेटे को जिम्मेदारियों का अहसास दिलाने और शहर भेजने के लिए फु्ल्लू की मां उसकी शादी बिगनी (ज्योति सेठी) से करा देती है. बिगनी साजो-सज्जा में रहने वाली लड़की है जिसके प्यार में पड़कर फुल्लू दिनभर घर में ही रहता है. एक दिन फुल्लू की मां उसे बहन तारा के झुमके लाने शहर भेजती है. इसके अलावा फुल्लू गांव की एक महिला का सामान खरीदने मेडिकल शॉप पर जाता है जहां पर्ची पर लिखा हुआ सामान दुकान वाला उसे पेपर में लपेट कर काले प्लास्टिक बैग में देता है.
उसे लगता है कि ये कोई मंहगी दवा है लेकिन दुकान वाले से पूछने पर उसे पता चलता है कि ये एक ऐसी चीज है जिसका इस्तेमाल हर महीने महिलाएं करती हैं. दुकान पर बैठी एक महिला डॉक्टर फुल्लू को बताती है कि 70 % महिलाएं कपड़ा या लकड़ी का बुरादा इस्तेमाल करती हैं जो जानलेवा बिमीरियों का कारण होता है. यहां पहली बार फुल्लू को पीरियड्स में नेपकिन के इस्तेमाल के बारे में पता चलता है. यहां से शुरु होती है फुल्लू की महिलाओं की सेहत के लिए जंग.
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कभी स्कूल ना जाने वाला और अपनी मां की नजर में निकम्मा फुल्लू पैड इस्तेमाल के बारे में अपने घर और गांव की महिलाओं को मना पाता है , कैसे वो पैड से जुड़ी जानकारियां जुटाता है, किस तरह वो सस्ते सैनेटरी पैड के अपने सपने को पूरा करता है. इस पूरी कहानी को डायरेक्टर अभिषेक सक्सेना ने बेहद रियल तरीके पर्दे पर उतारा है. इस फिल्म में एक गरीब लड़के की मजबूरी औऱ उसके हौसले को बेहद प्यारी तरह दिखाया गया है.
कैसे पैडमैन से अलग है फुल्लू
पैडमैन और फु्ल्लू दोनों ही एक बैकग्राउंड पर बनी फिल्म है. ऐसे में दोनों में बड़ा अंतर तो नहीं है लेकिन फिल्म में कुछ चीजें अलग दिखाई गई है. पैडमैन में लक्ष्मी 'पैडमैन' बन कर उभरता है. गांव उसका खुशी और सम्मान के साथ स्वागत करता है लेकिन फुल्लू में ऐसा नहीं होता. फुल्लू खुद सफल तो होता है लेकिन पैडमैन नहीं बन पाता. फिल्म में ये भी नहीं दिखाया गया है कि फुल्लू ने गांव की महिलाओं की जिंदगी बदली हो लेकिन पैडमैन में लक्ष्मी ना सिर्फ सस्ते पैड बनाता है लेकिन महिलाओं को रोजगार भी देता है. कुल मिलाकर फुल्लू संघर्ष करता है लेकिन नतीजा उतना हिरोइक नहीं होता जितना पैडमैन में दिखाया गया है.
फुल्लू फिल्म में फुल्लू की पत्नी उसके साथ हमेशा खड़ी नजर आती है. हालांकि वो उसके सेनेटरी नैपकीन इस्तेमाल नहीं कर पाती क्योंकि वो प्रेग्नेंट होती है. लेकिन बिगनी यानी फुल्लू की पत्नी भगवान से प्रार्थना करती है कि उसका पति सफल हो सके.
एंटरनेनमेंट के लिहाज से फुल्लू आपको उतना संतुष्ट नहीं करती जितना पैडमैन कर सकती है. पैडमैन से लक्ष्मी के संघर्ष के इतर भी कुछ दिखााया गया है जैसे सोनम कपूर यानी परी और लक्ष्मी का पनपता रोमांस , लक्ष्मी का टुटी-फुटी अंग्रेजी में यूएन में भाषण और भी बहुत कुछ. लेकिन फुल्लू सिर्फ पीरियड्स के मुद्दे पर ही बात करती है और अंत तक टॉपिक से हटती नहीं है.
फिल्म के बारे में क्यों पता नहीं चल सका?
इतने गंभीर विषय पर बनी फिल्म फुल्लू कब आई और गई किसी को पता तक नहीं चला. इसका बड़ा कारण है फिल्म में स्टारडम. अभिषेक सक्सेना की फुल्लू में आर बाल्कि की 'पैडमैन' जैसा कोई बड़ा स्टार नहीं है. पैडमैन में लक्ष्मी की भूमिका में अक्षय कुमार हैं तो वहीं फुल्लू में शारिब हाशमी हैं. अक्षय कुमार स्टार हैं उनके नाम के साथ मुझे ये बताना नहीं होगा कि उन्हें आपने किन-किन फिल्मों में देखा है लेकिन शारिब का नाम आते ही आपको ये नाम गूगल करना होगा.
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शारिब 'जब तक है जान' में शाहरुख खान के लंदन में दोस्त बने हैं. इसके अलावा वो फिल्मिस्तान , स्लमडॉग मिलियनेयर में भी नजर आ चुके हैं. बात ये है कि बॉलीवुड हो या हॉलीवुड स्टार फिल्म को लोगों के बीच ले जाते हैं. ना जाना कितनी ही बेहतरीन फिल्में स्टार ना होने के जनता के बीच नहीं आ पातीं. फु्ल्लू उनमें से ही एक फिल्म है. आज इस फिल्म का जिक्र भी अक्षय कुमार की पैडमैन के साथ आ सका है.
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