Flashback Friday: पर्दे पर उनकी एंट्री होते ही लोग तालियां बजाते थे. सिंगल स्क्रीन का जमाना था तो लोग सीटियां बजा-बजाकर पूरा माहौल सीटीमय कर देते थे. उनके चलने का अंदाज ऐसा होता था जैसे कोई 'लीडर' चल रहा हो. उनकी हर बात निराली होती थी. चश्में से झांकती गुस्से में भरी आंखें, बेलबॉटम जींस और फैशन से भरी रंगीन शॉर्ट जैकेट, ये सब कुछ उन्हें पर्दे पर भगवान बना देता था.


ये तो सिर्फ आउटलुक की बात है. स्टारडम और एक्टिंग दोनों ही मामले में ये उस्ताद थे. सामने किसी को भी टिकने नहीं देते थे. जो सामने आया पर्दे पर उसे ये खा ही गए. अगर आप सोच रहे हैं कि हम किसकी बात कर रहे हैं तो जवाब है कि हम 'किसकी' नहीं 'किनकी' बात कर रहे हैं.






बात एक समय पर सामने आए दो लीजेंड- विनोद खन्ना और अमिताभ बच्चन की


असल में हम दो समकालीन और एक-दूसरे के कंपटीटर की बात कर रहे हैं. जिन्होंने सिर्फ एक ही समय पर अलग-अलग फिल्मों से अपने स्टारडम में चार चांद ही नहीं लगाए, बल्कि एक साथ मिलकर भी कई सुपरहिट फिल्में दीं. ये नाम हैं इंडस्ट्री के दो सुपरस्टार्स के- अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना.


अब जब दो महारथी एक साथ एक ही मैदान पर अपनी ताकत दिखाने में लगे हों, तो ऐसा मुमकिन तो नहीं कि उनका सामना एक-दूसरे से न हो. यही हुआ अमिताभ और विनोद खन्ना के बीच. आज हम उन दोनों के बीच चले उस कोल्डवॉर पर बात करेंगे, जिसे दोनों ने सार्वजनिक रूप से कभी माना तो नहीं...लेकिन फिल्मी दुनिया की गॉसिप में उनके किस्सों का अपना एक हिस्सा रहा है.


दोनों के करियर की शुरुआत हुई थी आसपास- एक बना एंग्री यंगमैन तो दूसरा विलेन से हीरो


बात शुरू करते हैं दोनों के करियर के शुरुआत की. जहां अमिताभ 1969 में पहली फिल्म 'सात हिंदुस्तानी' में नजर आए और काफी फ्लॉप फिल्मों के बाद उनकी पहली हिट फिल्म 'जंजीर' 1973 में रिलीज हुई. वहीं विनोद खन्ना उसके पहले ही इंडस्ट्री में अपने पांव जमा चुके थे. वो स्टार पहले ही बन चुके थे. उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत विलेन के तौर पर की थी. लेकिन, उनकी कद-काठी और चेहरा देखकर उन्हें फिल्मों में हीरो का रोल मिलने लगा था.


विनोद खन्ना ने 1968 में 'मन का मीत' से करियर की शुरुआत की थी. फिल्म में लीड हीरो का रोल सुनील दत्त ने निभाया था. इसके बाद 'मस्ताना','मेरा गांव मेरा देश','आन मिलो सजना','पूरब और पश्चिम', 'एलान' और 'सच्चा झूठा' जैसी फिल्मों में भी उन्होंने नेगेटिव रोल प्ले किया. लेकिन गुलजार की नजर जब उन पर पड़ी तो उन्होंने विनोद को हीरो बना दिया. विनोद को 'मेरे अपने' और 'अचानक' जैसी फिल्मों के लिए साइन कर लिया गया. दोनों फिल्मों से उन्हें अब हीरो के तौर पर भी पहचान मिलने लगी.


मतलब दोनों का स्टारडम फेज लगभग एक ही समय पर शुरु हुआ. दोनों की एक के बाद एक हिट फिल्में आनी शुरू हो गईं. दोनों की अपनी-अपनी फैन फॉलोविंग बन गई. फैंस के बीच में ये बहस का मुद्दा भी बन गया कि दोनों में बेहतर कौन है.


70-80 का दशक ऐसा था जब इन दोनों लीजेंड ने अलग-अलग कई मल्टीस्टारर फिल्मों में काम किया. इनमें से कई फिल्में ऐसी थीं, जिनमें विनोद खन्ना और अमिताभ दोनों एक साथ भी नजर आए. जैसे कि परवरिश, अमर अकबर एंथोनी, हेरा फेरी, मुकद्दर का सिकंदर, खून पसीना, रेशमा और शेरा. 


अमिताभ से ज्यादा फीस लेने लगे थे विनोद खन्ना
विनोद खन्ना और अमिताभ जब भी पर्दे पर दिखे. उनके बीच ऐसी दोस्ती दिखी कि लोगों को याद रह गई. लेकिन क्या ये दोस्ती पर्दे के बाहर भी ऐसी थी? खबरों की मानें तो विनोद खन्ना ने फिल्म हेरा-फेरी के लिए अमिताभ से 1 लाख ज्यादा फीस ली थी. वजह बताई जाती है कि विनोद खन्ना ये जाहिर करना चाहते थे कि वो अमिताभ से बड़ स्टार हैं. मेकर्स मान भी गए. जहां अमिताभ को 1.5 लाख रुपये मिले वहीं विनोद ने अपने रोल के लिए 2.5 लाख रुपये लिए.


जब अमिताभ पर लगने लगे विनोद खन्ना का स्क्रीनटाइम कटवाने के आरोप
विनोद खन्ना जब भी अमिताभ के साथ फिल्मों में दिखे उनके रोल अमिताभ से ज्यादा पॉवरफुल रहे. उनका स्क्रीनटाइम भी अमिताभ से ज्यादा होता था. इसी दौरान अमिताभ पर ये आरोप लगने लगे कि वो विनोद खन्ना के रोल कटवाते हैं. हालांकि, इस बारे में विनोद खन्ना और अमिताभ बच्चन ने कभी बात नहीं की.


विनोद खन्ना और अमिताभ का क्या कहना था एक-दूसरे के बारे में?
विनोद खन्ना ने खुद कहा था कि हमारे बीच कोई दुश्मनी नहीं थी. हम एक समय पर फिल्में कर रहे थे. इसलिए हम कंपटीटर जरूर थे. वहीं विनोद ने जब बॉलीवुड से ब्रेक लिया तो अमिताभ ने कहा था कि शत्रुघ्न सिन्हा और विनोद खन्ना ने पॉलिटिक्स जॉइन कर ली है. वो वहां अच्छा कर रहे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि ये लोग मुझे बॉलीवुड में अकेला छोड़ गए हैं.


अमिताभ को स्टारडम देने में विनोद खन्ना का था अहम रोल
जब दोनों ही अपने करियर के पीक पर थे. अचानक से विनोद खन्ना बॉलीवुड छोड़कर संन्यास की ओर रुख कर गए. वो अमेरिका में ओशो के आश्रम चले गए. ओशो ने उन्हें नया नाम स्वामी विनोद भारती दे दिया. हालांकि, वो करीब 5 साल बाद फिर से बॉलीवुड में 'इंसाफ से वापसी' से लौटे. लेकिन तब तक अमिताभ बहुत बड़े स्टार बन चुके थे. और जैसा कि बॉलीवुड के लिए कहा जाता है कि जो दिखता है वो बिकता है. विनोद खन्ना दिखना ही बंद हो गए, लेकिन अमिताभ दिखते रहे. ऐसे में अमिताभ को सबसे बड़ा कंपटीशन देने वाले विनोद खन्ना ने खुद ही अमिताभ की राह आसान कर दी. 


आज विनोद खन्ना इस दुनिया में नहीं हैं. लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया. उन्होंने हाल के दौर की कई फिल्मों, जैसे कि वॉन्टेड और दिलवाले जैसी फिल्मों में काम भी किया. वहीं अमिताभ आज बॉलीवुड के सबसे बड़े अभिनेता के तौर पर जाने जाते हैं. उनका स्टारडम हर रोज और चमकीला होता जा रहा है. दोनों की राइवलरी को लेकर बातें कुछ भी हों, लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि दोनों ही बॉलीवुड के लीजेंड हैं और दोनों को उनके काम के लिए 50 साल बाद के बॉलीवुड में भी जाना जाएगा.


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