मुम्बई: 70 और 80 के दशक में मध्यमवर्ग के नायक के रूप में उभरे अभिनेता अमोल पालेकर ने निर्देशक बासु चटर्जी के साथ रजनीगंधा, चितचोर, छोटी-सी बात, बातों-बातों में,अपने-पराये जैसी छह फिल्मों में बतौर हीरो काम किया. बासु दा ने इन फिल्मों से अमोल पालेकर के जरिए असलियत के करीब खड़े और रोजाना की मुश्किलों से संघर्ष करते नायक का नया चेहरा लोगों के सामने पेश किया. बासु चटर्जी के निधन पर अमोल पालेकर ने उन्हें याद करते हुए उनकी फिल्मों, फिल्में बनाने के तरीके और उनके हुनर पर एबीपी न्यूज़ से विस्तार से बात की. पेश हैं इस बातचीत के मुख्य अंश.
सवाल : रिषिकेश मुखर्जी, बासु भट्टाचार्य और बासु चटर्जी ने लीक से हटकर फिल्में बनाकर सिनेमा को नया आयाम दिया. ऐसे में बासु दा की फिल्मों और फिल्मों के माध्यम से उनसे जुड़ने के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
जवाब : बासु दा ने समानांतर सिनेमा की पृष्ठभूमि से आये थे और उन्होंने अपनी ये पहचान अंत तक कायम रखी. मुख्यधारा के सिनेमा के जितने तत्व हैं. लार्जर दैन लाइफ कैरेक्टर्स, नाटकीय ढंग की कहानियां, हीरो-हीरोइन और उनके खिलाफ खड़ा विलेन; इस तरह के सारे समीकरणों को हटाकर बासु दा ने फिल्में बनाईं. बासु दा ने मुख्यधारा के सिनेमा से जो सबसे अच्छी चीज ली, वो थी संगीत. संगीत भारतीय सिनेमा का आधार स्तंभ रहा है. बासु दा की हर फिल्म का संगीत बेहद मधुर और प्यारा हुआ करता था.
आप चितचोर, अपने-पराये, बातों बातों में आदि सभी फिल्मों के गाने सुनिए तो आपको भी लगेगा कि बासु दा ने एक हीरो के तौर पर मुझे एक से बढ़कर एक गाने दिये. इसके लिए मैं हमेशा उनका शुक्रगुजार रहूंगा. बासु दा हमेशा नई चीजो की खोज में लगे रहते थे. ऐसे में हिंदी गानों के लिए उन्होंने मेरे लिए एक नयी आवाज चुनी. अमोल पालकर के तौर पर मेरी जो पहचान बनी, उसमें येशुदास के गानों का बहुत बड़ा योगदान है. छोटी सी बात में 'जानेमन-जानेमन' गाना है, वो येशुदास का हिंदी में गाया पहला गाना है. इस तरह से बासु दा ने हमारा त्रिकोण बना लिया था. मेरी एक अलग पहचान बनाने में बासु दा का बहुत बड़ा योगदान है.
सवाल: आपके दौर के सभी हीरो की पर्दे पर एक अलग ही छवि हुआ करती थी. ऐसे में बासु दा ने आपको एक आम आदमी की छवि में ढालकर पर्दे पर एक अलग तरह के नायक के तौर पर पेश किया. आपके जरिए उभरे इस नायक की खासियत के बारे में कुछ बताएं?
जवाब: मेरे दौर के जितने हीरो थे, उनकी अपनी अपनी लार्जर दैन लाइफ इमेज थी. अमिताभ बच्चन एंग्री यंग मैन थे, राजेश खन्ना रोमांटिक हीरो थे, धर्मेंद्र हीमैन थे, जीतेंद्र डांस बड़ा अच्छा करते थे. इन सभी की एक लार्जर दैन लाइफ इमेज थी. बासु दा ने इन सभी से परे जाकर मुझे एक आम आदमी की पहचान दी. आप अगर फिर से देखें वो फिल्में तो आपको अचरज होगा कि बासु दा की फिल्मों से पहले हमारी फिल्मों का नायक कभी बस और ट्रेन में सफर नहीं करता था या फिर ऑफिस में काम नहीं करता था, वो सिर्फ प्यार करता था. मेरी ये पहचान आम आदमी को बड़ी अच्छी लगी और मेरे जरिए बासु दा ने जिंदगी का एक बड़ा वास्तविक हिस्सा प्यार से दर्शकों के सामने रखा, जो लोगों ने खूब पसंद किया.
सवाल: आपने बासु दा की कई फिल्मों में काम किया है. ऐसे में आपके द्वारा अभिनीत और बासु दा द्वारा निर्देशित आपकी सबसे पसंदीदा फिल्में कौन-सी हैं?
जवाब : मेरे लिए कोई एक फिल्म चुनना बेहद मुश्किल है. बासु दा की हर फिल्म में अलग तरह की लेयर, अलग तरह की छटा होती थी और हर किरदार में कुछ अलग करने का मौका मुझे मिला. इसीलिए मेरे लिए उनकी किसी एक फिल्म को चुनना मुमकिन नहीं है. हर फिल्म में उन्होंने मुझे कुछ नया खोजने का बेहतरीन मौका दिया."
सवाल : क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप बासु दा द्वारा अभिनय के लिए दिये गये निर्देशों से इत्तेफाक न रखते हों और आपने कहा हो कि मैं किसी सीन को अपनी तरह से करना चाहूंगा?
जवाब: बासु दा बहुत कम बोलते थे, वो सबकुछ अपनी स्क्रिप्ट के जरिए कहते थे. उन्हें जो कहानी फिल्मों के जरिए पेश करनी होती थी, उसका स्क्रीन-प्ले और डायलॉग लिखकर हाथ में देते थे. वो किसी एक्टर को कभी नहीं बताते थे कि सीन में क्या करना है. अगर उनको कोई चीज पसंद नहीं आती तो वो तुरंत 'कट' कहते थे और डांटते थे और कहते थे कि 'ये क्या कर रहे हो है?' बासु दा की ऐसी डांट पूरे सफर में कभी सुनने को नहीं मिली, ये मेरे लिए बहुत खुशी की बात है.