Amzad Khan Death Anniversary: दहशत फैलाने वाले 'गब्बर' ने खूब हंसाया भी है, इस फिल्म के लिए मिला था बेस्ट कॉमेडियन का अवॉर्ड
Amzad Khan Death Anniversary: अमजद खान हिंदी सिनेमा के ऐसे अभिनेता हैं, जिन्होंने गब्बर जैसे किरदार से लोगों में दहशत फैलाई है और मां कसम जैसी फिल्म से लोगों को हंसा-हंसाकर लोटपोट भी किया है.
Amzad Khan Death Anniversary: भारतीय सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों में शुमार गब्बर शोले का दमदार किरदार है, जिसे सिल्वर स्क्रीन पर अमजद खान ने जिंदा किया है. डायलॉग डिलीवरी से लेकर चलने का अंदाज सब कुछ सिनेमा देखने वालों के जेहन में आज भी ताजा है. आज उसी 'गब्बर' की पुण्यतिथि है. ‘कितने आदमी थे’, ‘तेरा क्या होगा कालिया’, ‘जो डर गया वो समझो मर गया’. ये महज डायलॉग्स नहीं बल्कि अमजद खान के करियर को परिभाषित करने वाले शब्द थे. हिंदी सिनेमा जगत को शोले के रूप में एवरग्रीन फिल्म मिली तो गब्बर के तौर पर अमजद खान जैसा खलनायक. अमजद ने अपने नाम के मुताबिक ही गौरव के कई पलों से सिने प्रेमियों को नवाजा है.
इस फिल्म के लिए मिला बेस्ट कॉमेडियन का अवॉर्ड
अमजद खान ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने खुद को किरदार में नहीं बांधा. उन्होंने पंखों को फैलाया और कॉमेडी से गुदगुदाया भी. यही वजह थी कि उन्हें हंसाने के लिए बेस्ट कॉमेडियन का फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिल चुका है. जिसके लिए उनको बेस्ट फिल्म का पुरस्कार मिला वह मूवी थी 1985 में आई फिल्म ‘मां कसम’. इसके अलावा भी एक और फिल्म है उनकी जिसमें उनकी कॉमिक टाइमिंग काफी पसंद की जाती है और वो है ‘चमेली की शादी’. इस फिल्म में उन्होंने वकील की भूमिका निभाई थी.
विरासत में मिली थी एक्टिंग
अमजद खान को एक्टिंग विरासत में एक्टिंग मिली थी. उनके पिता जाने माने कलाकार जयंत थे. जयंत बंटवारे के बाद पेशावर से मुंबई शिफ्ट हो गए थे. इसके बाद भारत में ही अमजद खान का जन्म हुआ था.
शुरुआती शिक्षा सेंट एंड्रयूज हाई स्कूल बांद्रा में हुई। इसके बाद उन्होंने आरडी नेशनल कॉलेज से पढ़ाई की. अमजद ने कम उम्र में ही थिएटर का रुख कर लिया था. उन्होंने पिता जयंत के साथ अपनी पहली फिल्म 11 साल की उम्र में की, जिसका नाम नाजनीन (1951) था.
छह साल बाद वह अपनी दूसरी फिल्म अब दिल्ली दूर नहीं (1957) में दिखाई दिए. उस दौरान उनकी उम्र महज 17 साल थी. अमजद खान फिल्म हिंदुस्तान की कसम (1973) में भी नजर आए.
शोले से मिली अलग पहचान
हालांकि साल 1975 में आई रमेश सिप्पी की फिल्म शोले से अमजद खान को अलग पहचान मिली. विलेन गब्बर सिंह का किरदार निभाकर वह रातों-रात हिंदी सिनेमा में छा गए. इसके बाद अमजद खान ने शतरंज के खिलाड़ी (1977), हम किसी से कम नहीं (1977), गंगा की सौगंध (1978), देस परदेस (1978), दादा (1979), चंबल की कसम (1980) , नसीब (1981), सत्ते पे सत्ता (1982), याराना (1981) और लावारिस (1981) जैसी फिल्मों में उन्होंने अहम भूमिका निभाई.
अपने 20 साल के करियर में अमजद खान ने लगभग 130 से अधिक फिल्मों में काम किया. 27 जुलाई 1992 में 'गब्बर' अमजद खान दुनिया को अलविदा कह गए. लेकिन वह अपने पीछे ऐसी विरासत छोड़ गए जिस पर आज भी उनके फैंस को नाज है.
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