नई दिल्ली: अमेरिकी कॉमिक्स का एक बहुत प्रसिद्ध कैरेक्टर है डेयरडेविल. वो अंधा है लेकिन फिर भी ऐसे स्टंट करता है जिससे इस बात पर भरोसा करना मुश्किल हो जाता है. साल 2018 में बॉलीवुड फिल्म अंधाधुन में आयुष्मान खुराना ने एक अंधे का रोल निभाया है. जब फिल्म खत्म होती है तो भरोसा ही नहीं होता कि आयुष्मान का कैरेक्टर वाकई अंधा है. आज नेशनल फिल्म अवार्ड 2019 की घोषणा हो गई है और अंधाधुन को बेस्ट हिन्दी फिल्म चुना गया है. वैसे इस बात की संभावना भी बहुत थी क्योंकि साल 2018 में जो फिल्में आई थीं उनमें से बहुत कम ही ऐसी थीं जो अंधाधुन का मुकाबला कर सकती थीं.


ये फिल्म आपको कुर्सी से बांध देती है. ये बेहद स्लो फिल्म है लेकिन कहीं भी बोर नहीं करती. इसका प्रजेंटेशन काफी अलहदा है और दर्शक इसी में खोकर रह जाता है. ये पहली बार नहीं है कि श्रीराम राघवन ने ऐसी कोई कमाल की फिल्म बनाई है. उन्होंने हमेशा अपने काम से चौंकाया है.



साल 2004 में आई थी- एक हसीना थी. इस फिल्म ने सैफ और उर्मिला के करियर को काफी ऊंचाई दी थी. इस फिल्म का अंत भी बेहद ही चौंकाने वाला था. पहली बार बॉलीवुड में इस तरह किसी फिल्म को अंत दिया गया था. उर्मिला, सैफ को चूहों से भरी एक गुफा में मरने के लिए छोड़ देती है और आखिर सैफ को चूहे नोच खाते हैं.


इसके बाद आई थी टैक्सी नंबर नौ दो ग्यारह. लगा था कि इस बार राघवन चीजों को सीधा ही रखेंगे लेकिन ये फिल्म भी काफी चौंकाती है. जॉन अब्राहम और नाना पाटेकर ने कमाल की एक्टिंग की थी और फिल्म के गाने भी बेहद कमाल के थे.


2007 में आई जॉनी गद्दार ने तो राघवन को ऐसी फिल्मों का सिरमौर बना दिया. इस फिल्म में नील नितिन मुकेश और धर्मेंद्र सहित सभी लोगों ने कमाल की एक्टिंग की थी और इस फिल्म का अंत भी बेहद चौंकाने वाला था. नील पैसों के लिए कत्ल करता है और अंत में एक धोखे में मारा जाता है.



बात अगर 2012 में आई एजेंट विनोद की करें तो ये बाकी फिल्मों के मुकाबले थोड़ा हल्की लगती है लेकिन कुछ सीन और गाने वाकई काफी अच्छे हैं. सैफ और करीना के कैरेक्टर को लेकर खासी मशक्कत की गई है जो साफ तौर पर दिखाई भी देती है.


2015 में आई बदलापुर जिसने नवाजुद्दीन सिद्दीकी और वरुण धवन को चर्चा में ला दिया था. फिल्म जब शुरु होती है तो लगता है कि बॉलिवुड मसाला फिल्म होगी लेकिन अंत होते होते ये फिल्म भी आपको चौंका जाती है.



श्रीराम राघवन ने हर फिल्म में चौंकाया है, हर फिल्म का अंत कुछ ऐसा है कि आप जब सिनेमाघर से बाहर निकलते हैं तो फिल्म के चरित्रों के बारे में आपका दिमाग सोच रहा होता है. अंधाधुन में भी राघवन ने यही किया है, उन्होंने इस कदर चौंकाया है कि लोगों के दिलोदिमाग पर आयुष्मान का कैरेक्टर छा गया.


फिल्म साफ नहीं करती कि तब्बू के साथ क्या हुआ, आयुष्मान आखिर कैसे बचा, वो अंधा है भी या नहीं, वो सारे सवाल देखने वाले पर छोड़ देते हैं और यहीं फिल्म का शिल्प लाजवाब हो जाता है. फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर हो या फिर तब्बू का सधा हुआ अभिनय. तब्बू के पति की भूमिका में अनिल धवन हो या फिर डॉक्टर स्वामी के रोल में जाकिर हुसैन... सभी ने मिल कर ऐसा तिलिस्म रचा है आप इससे बाहर निकल ही नहीं पाते.


इसके अलावा बिंबों और प्रतीकों का ऐसा संसार रचा गया है जो आपको बांध लेता है. जमीन पर फैला खून, अंधा खरगोश, बंदूक की गोली. हर प्रतीक और बिंब जैसे कुछ कहते हैं और यही कारण है कि 2018 की बेस्ट फिल्म चुनी गई है अंधाधुन.