फिल्म - आर्टिकल 15


निर्देशक - अनुभव सिन्हा


स्टारकास्ट - आयुष्मान खुराना, सयानी गुप्ता, ईशा तलवार, नामाशी चक्रवर्ती, कुमुद मिश्रा, मनोज पाहवा


रेटिंग - 4 (****)


Article 15 Review: बिना किसी भेदभाव के हर नागरिक को समता का अधिकार हमारे संविधान में दिया गया एक मूलभूत अधिकार है. मगर इससे अलग, एक देश के रूप में भारतीय समाज की हकीकत हमेशा से बहुत क्रूर और असभ्य रही है. पैदा होते ही जाति के आधार पर हर शख्स का वर्गीकरण हो जाता है. दलित/पिछड़ी जातियों में पैदा होने वाले लोगों के माथे पर इसे किसी भयावह गुनाह की तरह हमेशा के लिए चस्पां कर दिया जाता है. आज भी उन्हें अगड़ी जातियों के हाथों से तरह-तरह के अमानवीय बर्तावों से गुजरना पड़ता है. भारतीय परंपरा और सभ्यता की सदियों पुरानी इस कहानी की डरावनी तस्वीर अब भी नहीं बदली है, खासकर ग्रामीण भारत में. अनुभव सिन्हा निर्देशित 'आर्टिकल 15' इसी क्रूरता का अहम सिनेमाई दस्तावेज है.


2014 में उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुए दो नाबालिग लड़कियों के रेप और फिर उन्हें पेड़ पर लटकाकर मार देने देने की शर्मनाक घटना से प्रेरित 'आर्टिकल 15' की खासियत महज ये नहीं है कि ये फिल्म जातिवाद जैसी सदियों पुरानी समस्या पर खुलकर बात करती है. इसकी खासियत इस बात में भी छिपी है कि ये भारतीय समाज को एक अमानवीय समाज में तब्दील करने वाले जातिवाद पर इतने विस्तार से और इतने असरकारक तरीके से बात करती है.


अनुभव सिन्हा का निर्देशन और गौरव सोलंकी के साथ किया गया उनका लेखन इस फिल्म की जान है. जातिवाद की प्राचीन व्यवस्था से उपजे संकट पर कटाक्ष करती इस फिल्म के संवाद आपको झकझोर कर रख देंगे और ये सोचने पर मजबूर कर देंगे कि क्या हमारे पूर्वजों ने इसी तरह के विषमतामूलक समाज की कल्पना की थी? क्या हमारा (ऊंची जातियों का) जन्म, जन्म के आधार पर बात-बात पर दलितों/पिछड़ी जातियों को जलील करने, महज जाति के आधार पर उन्हें गुनहगार मानने और प्रताड़ित करने‌ के लिए हुआ है? उन्हें उनके संवैधानिक हक से महरूम करने के लिए हुआ है?


भेदभाव नहीं करने की नसीहत देने वाले संविधान के आर्टिकल 15 को आधार बनाकर बनाई गई ये बेहद प्रभावशाली फिल्म ऐसे कई सवालों से आपके मन को बैचेन कर देगी और यही बैचेनी फिल्म की सबसे बड़ी कामयाबी के रूप में सामने आती है.


अपने‌ पिता की ख्वाहिश पूरा करने के लिए आईपीएस अफसर बनने का अफसोस आयुष्मान खुराना के चेहरे को देखकर महसूस किया जा सकता है, जो जल्द जातिवाद के जहर में घुली समाज व्यवस्था पर निकलने वाले आक्रोश में तब्दील हो जाती है और फिल्म के अंत तक उसे परेशान करती रहती है. सस्पेंड हो जाने के बावजूद अपने कर्तव्य को निभाने का जज्बा इस पुलिस वाले को हिंदी सिनेमा के बात-बात पर सुपरमैन की तरह बिहेव करने वाले तमाम फिल्मी पुलिसवालों से बेहद अलहदा और संवेदनशील बनाता है.


आयुष्मान खुराना जातियों के कुचक्र को समझने और उसे तोड़ने वाले पुलिस वाले के रोल में बेहद जंचते ही नहीं हैं, बल्कि अपना प्रभाव भी छोड़ जाते हैं. मनोज पाहवा, कुमुद मिश्रा, सयानी गुप्ता के अभिनय का कमाल भी इस फिल्म में देखने को मिलता है. एक क्रांतिकारी दलित शख्स के रूप में फिल्म में कैमियो निभा रहे मोहम्मद जीशान अय्यूब का अभिनय देखकर लगा कि काश! अय्यूब का स्क्रीन टाइम थोड़ा और अधिक होता. एक नरेटर के रूप‌ में भी उनकी सोशल कमेंटरी भी सुनने और सोचने लायक है.


इवान मुलिगन का कैमरा ग्रामीण ज़िंदगी की बेबसी और वीराने को बख़ूबी कैप्चर करता है, तो वहीं यशा रामचंदानी की एडिटिंग और मंगेश धाकड़े का संगीत फिल्म को रोचकता को अपनी चरम पर ले जाने में कामयाब साबित होता है.


'आर्टिकल 15' को मुख्यधारा की हिंदी सिनेमा के इतिहास में अब तक की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक माना जाना चाहिए. भारतीय समाज के इस कुरूप चेहरे को अपने नजदीकी थिएटर के बड़े पर्दे पर देखना न भूलें.