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Baazaar Movie Review: शेयर मार्केट की दिलचस्प कहानी को मजेदार अंदाज में दिखाती है 'बाजार'
Baazaar Movie Review: सैफ अली खान और रोहन मेहरा की फिल्म 'बाजार' एक शानदार फिल्म है. राधिका आप्टे और चित्रांगदा सिंह जैसे कई कलाकारों से सजी इस फिल्म को अगर आप देखने जाने का मन बना रहे हैं तो उससे पहले पढ़ें फिल्म का मूवी रिव्यू...
फिल्म - बाजार
निर्देशक - गौरव चावला
स्टारकास्ट - सैफ अली खान , रोहन मेहरा, राधिका आप्टे, चित्रांगदा सिंह
रेटिंग - 3.5
हिंदी सिने जगत में ऐसी फिल्में कम ही बनती हैं जिन्हें आप एक बार देखना शुरू करो तो बस देखते ही चले जाओ और फिल्म के खत्म होने तक उसके साथ बंधे रहो. सैफ अली खान की बाजार भी एक ऐसी ही फिल्म है. हाल ही में सैफ अली खान ने कहा था कि इस वक्त बॉलीवुड में अच्छा दौर चल रहा है और वो अपनी एक्टिंग को सुधार रहे हैं. कहीं न कहीं आप उनकी फिल्म 'बाजार' देखने के बाद उनसे सहमत जरूर हो जाएंगे. सैफ अली खान की फिल्म 'बाजार' आज बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हुई है. वैसे तो फिल्म सेंसेक्स और बाजार की उठा-पठक की कहानी कहती है. लेकिन पैसों के इस बाजार में इमोशन का भी तड़का लगाया गया है.
निर्देशक गौरव के चावला ने शेयर बाजार की उठा-पठक और कंपनियों की खरीद फरोख्त को इस फिल्म में बेहद सादगी और सरल तरीके से दिखाया है. भले ही आम आदमी शेयर बाजार को इतनी आसानी से न समझ पाता हो लेकिन इस फिल्म को देखने के बाद कम से कम दर्शकों को इसका बेसिक अंदाजा तो हो ही जाएगा.
इस फिल्म से दिवंगत एक्टर विनोद मेहरा का बेटा रोहन मेहरा बॉलीवुड में डेब्यू कर रहा है. फिल्म में उन्हें देखकर आपको एक पल के लिए भी ऐसा नहीं लगेगा कि ये रोहन की पहली फिल्म है. इसके अलावा राधिका आप्टे और चित्रांगदा सिंह ने भी अपने किरदार को अंत तक पकड़ कर रखते हैं.
कहानी
बड़ा आदमी बनने के लिए लाइन क्रॉस करनी पड़ती है... और शकुन कोठारी हर उस लाइन को क्रॉस करने के लिए तैयार है. इसकी कहानी गुजराती बिजनेसमैन शकुन कोठारी (सैफ अली खान) की है. कैसे गुजराती छोकरा शकुन जमीन से उठकर शेयर बाजार का सिकंदर बनना चाहता है और पैसों के लिए धोखा देने से भी नहीं कतराता. उसके लिए उसका पैसा ही उसका धर्म है. शकुन का कहना है कि ''पैसा भगवान नहीं लेकिन उससे कम भी नहीं..''. बचपन में ही ट्रेन के जरिए हीरों की स्मगलिंग करने वाला शकुन कोठारी जिंदगी की मैराथॉन का नहीं बल्कि 100 मीटर रेस का बेस्ट रनर बनना चाहता है.
दूसरी ओर है इलाहाबाद का रिजवान अहमद (रोहन मेहरा ) जिसके सपने तो बड़े हैं लेकिन अभी तक उसने अपना ईमान बेचना नहीं सीखा है. रिजवान अहमद, शकुन कोठारी को अपना खुदा मानता है और उसके जैसा बनने का सपना लिए मुंबई पहुंचता है. यहां से शुरू होता है किस्मत का खेल, कहते हैं के शेयर बाजार के धंधे में किस्मत एक बड़ा किरदार निभाती है.
इलाहाबाद से कुछ बनने की कसम खाकर निकला रिजवान अहमद थोड़े से वक्त में शकुन कोठारी तक पहुंच जाता है और उसका बेहद खास भी बन जाता है. रिजवान के शकुन तक पहुंचने के इस सफर में उसका साथ देती है प्रिया (राधिका आप्टे). प्रिया ही वो शख्स है जो रिजवान अहमद की मैराथॉन को 100 मीटर दौड़ में बदल देती है. शकुन कोठारी रिजवान को अपना बिजनेस पार्टनर बनाता है और इसी बीच SEBI शकुन पर शिकंजा कसने में लग जाती है. सेबी का शिकंजा और बाजार में हो रही उथल-पुथल में शकुन किस तरह खुद को बचाता है और इस रेस में रिजवान अहमद का क्या होता है?. ये जानने के लिए तो आपको थिएटर का रुख करना होगा.
एक्टिंग
सैफ अली खान ने इस फिल्म में एक गुजराती बिजनेसमैन का किरदार निभाया है. इस रोल को उन्होंने इतनी सरलता से प्ले किया है कि ऑनस्क्रीन आपको एक पल के लिए भी ऐसा महसूस नहीं होता कि वो सैफ अली खान हैं. गुजराती भाषा को भी सैफ ने काफी अच्छे से पकड़ा है. इसके अलावा इस फिल्म में से रोहन मेहरा अपनी फिल्मी पारी की शुरुआत करने जा रहे हैं. रोहन मेहरा को पर्दे पर देखकर आपको एक पल के लिए भी ऐसा नहीं लगता कि ये उनकी पहली फिल्म है. इस फिल्म में उनकी परफॉर्मेंस देखकर ये कहा जा सकता है कि वो इस बिजनेस में एक लंबी मैराथॉन दौड़ने वाले हैं. इसके अलावा राधिका आप्टे और चित्रांगदा सिंह ने अपने किरदार को काफी अच्छे से पर्दे पर निभाया है.
निर्देशन
करीब 2 घंटे 20 मिनट लंबी फिल्म में ऑडियंस का फिल्म में इंटरेस्ट बनाए रखना एक चैलेंज है और निर्देशक गौरव चावला इसमें काफी हद तक कामयाब रहे हैं. फिल्म की कहानी को काफी पैक रखा गया है और सभी किरदारों को कहानी में अच्छी तरह से बुना गया है. जिसकी वजह से कहानी आपको बांधे रखती है.
क्यों देखें
- फिल्म की कहानी बहुत इंगेजिंग और वो आपको अंत तक बांधे रखती है.
- शेयर बाजार को लेकर बॉलीवुड में अभी तक इतनी अच्छी और सरल फिल्म नहीं बनी है. फिल्म को इस तरीके से बनाया गया है कि आम आदमी उसे आसानी से समझ सके.
- सैफ अली खान और रोहन मेहरा को ऑनस्क्रीन देखना एक अच्छा अनुभव है.
- फिल्म के डायलॉग काफी दमदार हैं और जब आप फिल्म देखकर निकलेंगे तो गाने नहीं बल्कि डायलॉग आपकी जुबान पर होंगे.
- अगर आपको शेयर बाजार और सेंसेक्स में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है तो शायद आप फिल्म को कम इंजॉय करें.
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