Bade Miyan Chote Miyan Review: 'ऊंची दुकान फीका पकवान'- अक्षय-टाइगर की फिल्म के लिए काफी है ये एक लाइन
Bade Miyan Chote Miyan Review: अक्षय कुमार-टाइगर श्रॉफ की फिल्म बड़े मियां छोटे मियां आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. फिल्म देखने जाने का प्लान बना रहे हैं तो पहले पढ़ लें इसका रिव्यू.
Bade Miyan Chote Miyan Review: अली अब्बास जफर जैसा ब्लॉकबस्टर डायरेक्टर हो, अक्षय कुमार, पृथ्वीराज सुकुमारन और टाइगर श्रॉफ जैसे बड़े बड़े स्टार्स हों और भारत को दुश्मनों के खतरनाक इरादों से नेस्तानाबूद होने से बचाने का मसालेदार, एक्शन से भरपूर और लार्जर दैन लाइफ़ प्लॉट हो तो इन सभी फैक्टर्स को देखते हुए फिल्म 'बड़े मियां छोटे मियां' से एक बेहद दिलचस्प और मनोरंजक फिल्म होने की दर्शकों की उम्मीद बिल्कुल वाजिब है. लेकिन दर्शकों की ऐसी तमाम उम्मीदों पर पूरी तरह से पानी फेर देती है फ़िल्म 'बड़े मियां छोटे मियां'.
कहानी
किसी भी फिल्म की सबसे बड़ी ताकत उसकी कहानी और उसे उम्दा तरीके से बयां करने का अंदाज होता है. फिल्म 'बड़े मियां छोटे मियां' यहीं पर मार खा जाती और पूरी फिल्म के दौरान मनोरंजन के लिहाज से बुरी तरह से लड़खड़ाती हुई नजर आती है. इंसानों को क्लोन कर दुश्मन देशों को मजा चखाने और दुश्मनों देशों की मिसाइली हमलों से भारत को बचाने के लिए बनाए गये आधुनिक 'करण कवच' को तोड़़कर भारत को बर्बाद करने की कहानी में ट्विस्ट और टर्न्स तो बहुत हैं, लेकिन फिल्म की कहानी इस कदर विचित्र और अविश्वसनीय है कि आपको हैरानगी होगी कि आप मनोरंजक फिल्म के नाम पर बड़े पर्दे पर क्या कुछ देख रहे हैं.
'बड़े मियां छोटे मियां' में एक्शन का ओवरडोज है और खराब कहानी के साथ साथ एक्शन सीक्वेंस का अतिरेक भी इस फिल्म के अगेंस्ट जाता है. एक वक्त के बाद आपको बड़े पर्दे लगातार ढंग से पेश की जा रही हिंसा से ऊब होने लगती है और आप फिल्म के खत्म होने का इंतजार करने लगते हैं क्योंकि एक पॉइंट के बाद आपको समझ में आने लगता है कि इस फिल्म में बड़े-बड़े ऐक्शन सीक्वेंसेस और जानलेवा स्टंट्स के अलावा रोचक तरीके से बांधे रखने के लिए कुछ भी नहीं है. एक निर्देशक के तौर पर इस बार अली अब्बास जफर पूरी तरह से निराश करते हैं.
देश को बचाने के नाम पर 'बड़े मियां छोटे मियां' में शुरू से लेकर अंत तक एक्शन का ऐसा तांडव देखने को मिलता है कि दर्शकों को इससे एक मिनट भी सांस लेने की फुर्सत नहीं मिलती है. फिल्म में जितने बड़े पैमाने पर एक्शन सीक्वेंसेस और कत्ल-ए-आम को जगह दी गयी है, उसे देखते हुए आपको ऐसा लगेगा कि मानो आप एक नहीं बल्कि चार-चार एक्शन फिल्मों में होने वाले स्टंट सीन्स को एक साथ एक ही फिल्म में होते हुए देख रहे हैं.
किसी भी देश के खिलाफ साजिश करने और फिर उसे बड़े ही हीरोइक अंदाज में बचाने का कोई फिल्मी फॉर्मूला तय नहीं है. इमैजिनेशन का सहारा लेकर किसी भी देश किसी भी तरह से भी बर्बाद और बचाने की कोशिशें की जा सकती हैं और की जाती रही हैं, लेकिन 'छोटे मियां बड़े मियां' की देशभक्ति का प्लॉट अनकविंसिंग ही नहीं, बल्कि फिल्म की कहानी भी कई जगह पर बचकानी लगती है. फिल्म में इस्तेमाल किये ये स्मार्ट वन लाइनर्स और ह्यूमर भी हंसाने की बजाय खीझ पैदा करते है. फिल्म में हॉलीवुड फिल्मों के स्टाइलाज्ड एक्शन की छाप भी साफ नजर आती है.
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'बड़े मियां छोटे मियां' फिल्म का टाइटल भी 1998 इसी नाम से आई अमिताभ बच्चन और गोविंदा स्टारर कॉमेडी फिल्म 'बड़े मियां छोटे मियां' से प्रेरित है, जिसे इस फिल्म में कुछ सीन्स के जरिए एक्नॉलेज भी किया गया है. लेकिन निर्देशक अली अब्बास जफर की फिल्म ना तो अपने हैरतअंगेज स्टंट सीन्स से प्रभावित कर पाती है और ना ही अपनी कॉमेडी से.
'टाइगर जिंदा है', 'सुल्तान' और 'ब्लडी डैडी' जैसी मनोरंजक और एक्शन से भरपूर बढ़िया फ़िल्में बना चुके निर्देशक अली अब्बास जफर की गिनती ऐसे फिल्मकारों में होती है जिनकी एक्शनपैक्ड फिल्में महज लार्जर दैन लाइफ नहीं होती हैं, बल्कि उनकी फिल्मों की कहानी भी काफी इंट्रेस्टिंग और जज्बाती किस्म की होती हैं. मगर अफसोस की बात है बड़े पर्दे पर 'बड़े मियां छोटे मियां' देखते वक्त यह यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि यह फिल्म भी डायरेक्टर अली अब्बास जफर ने ही बनाई है.
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