(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Bamfaad Review: आदित्य रावल की 'बमफाड़' हो चुकी है रिलीज, कमजोर कहानी और एक्टिंग ने फिल्म को बनाया बोरिंग
आदित्य रावल की फिल्म 'बमफाड़' को डिजिटली ही रिलीज किया गया है. अगर आपने भी अभी तक ये फिल्म नहीं देखी है तो देखने से पहले पढ़ें आखिर कैसी है इस स्टारकिड की ये डेब्यू फिल्म...
Film- Bamfaad
Star Cast- Aditya Rawal , Shalini Pandey Vijay Varma , Jatin Sarna
Director - Ranjan Chandel
Rating - 2 (**)
कोरोना वायरस के चलते देशभर में सिनेमाघरों को तो फिलहाल बंद किया गया है लेकिन इस सब के बीच भी एक स्टारकिड ने बॉलीवुड में डेब्यू कर लिया है. परेश रावल के बेटे आदित्य रावल वैसे तो बड़ी स्क्रीन पर अपना डेब्यू करने वाले थे लेकिन कोरोना वायरस के चलते ऐसा हो नहीं पाया. इन दिनों इंडस्ट्री और दर्शकों दोनों के लिए ही रामबाण बन चुके डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने सभी का काम आसान कर दिया है.
आदित्य रावल की फिल्म 'बमफाड़' को डिजिटली ही रिलीज किया गया है. अगर आपने भी अभी तक ये फिल्म नहीं देखी है तो देखने से पहले पढ़ें आखिर कैसी है इस स्टारकिड की ये डेब्यू फिल्म...
कहानी
कहानी की बात करें तो फिल्म की इलाहाबाद की लोकल राजनीति में उलझी एक 'बमफाड़' प्रेम कहानी है. जिसमें सेंट्रल कैरेक्टर्स हैं नासिर जमाल (आदित्य रावल) और नीलम (शालिनी पाडें) की है. जैसा कि नाम से ही जाहिर हो रहा है कि नासिर मुस्लिम है और नीलम हिंदू. नासिर इलाहबाद के नामी राजनेता का बेटा है. वहीं, नीलम एक गरीब परिवार की लड़की है जो कि वहां के लोकल गुंडे जिगर फरीदी के रहमों करम पर जिंदगी जी रही है.
नासिर जो अपने दोस्तों से बहुत प्यार करता है और बेहद गर्म मिजाजी है, कि मुलाकात एक दिन नीलम से होती है और वो उसे दिल दे बैठता है. लेकिन जिगर फरीदी को इन दोनों की नजदीकियां कुछ रास नहीं आती. इसके अलावा जिगर, नासिर के पिता से भी राजनीति में ईर्ष्या रखता है. नासिर और नीलम की नजदीकियां जिगर को अपने रास्ते के दोनों ही कांटे निकालने का मौका दे देती हैं. अब ऐसे में जिगर एक ऐसी प्लानिंग करता है जिससे नासिर और नीलम की जिंदगी में तूफान आ जाता है.
निर्देशन और लेखन
वैसे तो फिल्म में एक साथ कई गंभीर मुद्दों को उठाने की कोशिश की गई है. लेकिन कहानी में कई सारे ट्विट्स डालने के चक्कर में ये एक कमजोर फिल्म बन कर सामने आई है. फिल्म का निर्देशन रंजन चंदेल ने किया है. रंजन ने इलाहबाद के इंटीरियर्स में जाकर काफी अच्छी तरह से कुछ सीन्स को फिल्माया है. लेकिन वो इस फिल्म को बहुत असरदार नहीं बना पाए. वहीं, अगर शालिनी की बात करें तो शालिनी ने अपने किरदार के साथ काफी हद तक न्याय किया है.
एक्टिंग
एक्टिंग की बात करें तो परेश रावल जैसे मंझे हुए कलाकार के बेटे से दर्शकों की उम्मीदें भी ज्यादा होना लाजमी है. लेकिन आदित्य रावल इसमें बहुत ज्यादा खरे उतरते नजर नहीं आते हैं. फिल्म में उन्होंने इलाहबादी लहजा और बॉडी लेंग्वेज पर तो बहुत अच्छी पकड़ बनाई है लेकिन जहां बात इमोशन्स की आती है वो इसमें जरा कमजोर नजर आते हैं. वहीं, इसके अलावा फिल्म में जतिन सारन ने एक बार फिर अपनी शानदार एक्टिंग का उदाहरण पेश किया है. वहीं, विजय वर्मा की बात करें तो वो भी आदित्य की तरह इस फिल्म में जरा फीके नजर आए हैं. वो स्क्रीन पर अपना जादू चला पाने में नामकाम दिखे.
क्यों देखें/ क्यों न देखें
- आदित्य रावल की ये पहली फिल्म है और बतौर डेब्यूडेंट उन्हें एक मौका दिया जा सकता है. साथ ही उनके साथ शालिनी पांडे ने काफी अच्छा काम किया है. इस लिहाज से फिल्म को एक बार देखा जा सकता है.
- फिल्म में प्रेम कहानी को दिखाने की कोशिश की गई है लेकिन दोनों ही कैरेक्टर्स की कैमेस्ट्री इस कॉन्सेप्ट को जस्टीफाई नहीं करती.
- एक्टिंग के लिहाज से भी देखें तो इसमें दर्शकों के हाथ निराशा ही हाथ लगेगी. फिल्म में अच्छे एक्टर्स को भी बहुत अच्छे से इस्तेमाल नहीं किया गया.
- वहीं, कहानी की बात करें तो कहानी आपको बिल्कुल भी अपील नहीं करती. इसमें काफी सारे फ्लेवर डालने के चक्कर में कहानी खिचड़ी बन गई है और कुछ भी आपको मजेदार नहीं लगता.