फिल्म में शाहिद कपूर वकील के किरदार नें दिखाई देने वाले हैं. शाहिद के बचपन का दोस्त एक लोकल प्रिंटिंग प्रेस की मशीन लगता है जिसका बिजली का बिल इतना ज्यादा होता है कि वो टेंशन में आकर आत्महत्या कर लेता है. इसके बाद शाहिद कपूर अपनी वकालत के जरिए अपने दोस्त का इंसाफ दिलाने के लड़ाई में जुट जाते हैं. फिल्म की कहानी समाजिक मुद्दे से जुड़ी है. इस फिल्म को श्रीनारायण सिंह ने डायरेक्ट किया है वहीं भूषण कुमार ने इस फिल्म को प्रोड्यूस किया है.
फिल्म को लेकर क्रिटिक्स की क्या राय है ये भी जरा जान लेते हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स ने फिल्म को 2.5 स्टार दिए हैं. अपने रिव्यू में उन्होंने मेंशन किया है कि भले ही फिल्म पावर कट के मुद्दे को लेकर बनाई गई है. लेकिन फिल्म के शुरुआती 1 घंटे में तो आपको बस इतना ही समझ आता है कि बिजली की थोड़ी-बहुत किल्लत है जो कि देश में कहीं भी आम बात है. जो बात फिल्म के तीन मिनट के ट्रेलर में समझ आ जाती है, निर्देशक ने उसे समझाने में एक घंटे से भी ज्यादा का वक्त लिया. वहीं, इंटरवल के बाद अचानक से फिल्म की कहानी विरोध प्रदर्शन पर शिफ्ट हो जाती है. इसके बाद की पूरी कहानी लंबे भाषणों और कोर्टरूम ड्रामा के ईर्दगिर्द घूमती नजर आती है.
इंडियन एक्सप्रेस ने भी फिल्म को 2.5 दिए हैं. एक्सप्रेस ने अपने रिव्यू में कहा है कि ये एक अच्छी इंटेशन से बनाई गई फिल्म जरूर है लेकिन इसमें कई जगह एक मुद्दे पर बात करते हुए कई अन्य मुद्दों को नजर अंदाज कर दिया गया है. उदाहरण के लिए फिल्म में सरकार के अत्याचार और बिजली कंपनियों की अनियमितताओं का जिक्र किया है तो वहीं दूसरी ओर फिल्म में ह्यूमर के नाम पर सेक्सिस्ट जोक क्रैक किए जा रहे हैं. जिनमें से एक जोक ट्रेलर में दिखाया गया है जिसमें शाहिद कोर्ट रूम में यामी को कहते दिखते हैं कि आपके होते हुए फिगर की बात हम कैसे कर सकते हैं.
डीएनए ने फिल्म को 5 में से 3.5 स्टार दिए हैं. फिल्म एक बेहद संजीदा और मौलिक अधिकार के मुद्दे को तो उठाती है लेकिन अगर एंटरटेनमेंट की बात करें तो फिल्म इसमें जरा कमजोर नजर आती है. हिंदी सिनेमा में अक्सर देखा गया है कि सोशल मुद्दों को लेकर बनाई जाने वाली फिल्में अपनी सोशल कॉज में इतना ज्यादा उलझ जाती हैं कि वो कहानी कहना भूल ही जाते हैं. ऐसा ही कुछ शाहिद की इस फिल्म के साथ भी हुआ है.