Oscar Awards 2023: 'आरआरआर' और 'छेल्लो शो' को भूल जाएं, ये चार भारतीय फिल्में भी मचा सकती थीं ऑस्कर में धमाल
Oscar 2023 Winners List: ऑस्कर में इस साल भारत की ओर से 'आरआरआर' और 'छेल्लो शो' ने तगड़ी दावेदारी पेश की. हालांकि, ऐसी कई भारतीय मूवी इस लिस्ट में जगह बनाने से रह गईं, जो धमाल मचा सकती थीं.
95th Academy Awards: ऑस्कर अवॉर्ड्स का ऐलान होने में अब बस चंद घंटे बचे हैं. भारत की ओर से आरआरआर, ऑल दैट ब्रीद और द एलिफेंट व्हीस्पर्स शो तगड़े दावेदार के रूप में मैदान में हैं. आरआरआर के नाटू-नाटू गाने को ओरिजिनल सॉन्ग कैटिगरी में ऑस्कर 2023 के लिए नॉमिनेट किया गया है. वहीं, ऑल दैट ब्रीद को डॉक्यूमेंट्री फीचर फिल्म कैटिगरी में नामांकित किया गया है. इसके अलावा द एलिफेंट व्हीस्पर्स को बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म कैटिगरी में नामांकन मिला है. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि कई ऐसी भारतीय फिल्में नॉमिनेशन की फाइनल लिस्ट में जगह बनाने से रह गईं, जो यकीनन धमाल मचा सकती थीं. इनमें से चार सबसे खास फिल्मों के बारे में हम आपको बता रहे हैं.
गार्गी
2022 में रिलीज हुई गार्गी बेहतरीन लीगल ड्रामा फिल्म है, जो आखिरी पलों में इतने शानदार मोड़ लेती है कि दर्शक अपनी कुर्सी से चिपके रह जाते हैं. इस फिल्म में एक महिला के संघर्ष की कहानी दिखाई गई है, जिसे साई पल्लवी ने अपनी अदाकारी के माध्यम से शानदार अंदाज में पेश किया.
झुंड
ऑस्कर में धूम मचाने वाली तीन भारतीय फिल्मों लगान, सलाम बॉम्बे और स्लमडॉग मिलेनियर का निचोड़ झुंड में नजर आता है. नागराज मंजुले ने बेहतरीन अंदाज में इस फिल्म को पेश किया. इस फिल्म को हिंदी सिनेमा के इतिहास को बेहतरीन श्रद्धांजलि कहा जा सकता है. अगर ऑस्कर में झुंड को चुना जाता तो अमिताभ बच्चन को यह पुरस्कार लेते हुए देखने के लिए कौन भारतीय लालायित नहीं होता.
पाडा
मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की बात करें तो इसे मुख्यधारा से एकदम अलग-थलग माना जाता है. शायद यही वजह है कि फिल्म इंडस्ट्री का यह क्षेत्र सबसे ज्यादा क्रिएटिव है. यहां फिल्ममेकर्स का मकसद फिल्म से सिर्फ कमाई करना नहीं होता है, जिसके चलते वह विषयों पर ज्यादा काम करते हैं. पाडा समकालीन भारतीय फिल्म निर्माण का शिखर है. इसका मूल विषय काफी भावुक करता है.
धुन
मैथिली भाषा में बनी महज 50 मिनट की यह फिल्म भावनात्मक रूप से काफी बेहतरीन है. अचल मिश्रा का यह नाटक अपने सम्मोहक मौन और स्टैटिक कैमरावर्क के चलते यह उपनिवेशवाद में मची भेड़चाल का एहसास दिलाती है. हमारे देश के अधिकांश लोग जिस गुस्से और निराशा का अनुभव करते हैं, उसे इस फिल्म में बखूबी दिखाया गया है. पिछले साल की सर्वश्रेष्ठ भारतीय फिल्म द डिसाइपल की तरह यह भी एक बेहतरीन उदाहरण है कि देश के कुछ युवा फिल्ममेकर कितने महत्वाकांक्षी और शैलीगत रूप से मुखर हैं.
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