Bhagwan Dada 110th Birth Anniversary: आज भगवान दादा अभाजी पलव की 110वीं बर्थ एनिवर्सरी है. भगवान दादा इंडियन फिल्म इंडस्ट्री के महान डायरेक्टर्स में से एक थे. फिल्मों में पहली बार बॉडी डबल का इस्तेमाल करने की बात होती है तो इसका क्रेडिट भगवान दादा को ही दिया जाता है. वो भगवान दादा ही थे जिन्होंने सेट पर शूटिंग के लिए असली नोटों की बारिश करवा दी थी. साथ ही ये वही एक्टर हैं जिनके एक थप्पड़ ने ललिता पवार का चेहरा बिगाड़ दिया था जिसके बाद उन्हें पूरी उम्र विलेन का रोल करना पड़ा था. राज कपूर उन्हें इंडियन सिनेमा का माइकल डगलस कहा करते थे.


कपड़ा मील में किया काम
‘शोला जो भड़के’ और ‘ओ बेटा जी, ओ बाबू जी’गाने तो आपने सुने ही होंगे. ये पॉपुलर सॉन्ग भगवान दादा पर ही फिल्माए गए हैं. भगवान दादा ने चौथी की पढ़ाई करने के बाद कपड़ा मील में काम करना शुरू कर दिया था. पढ़ाई में उनका मन लगता नहीं था ऐसे में वो पिता के साथ जाने लगे, लेकिन उनका मन यहां भी नहीं लगा. उन्हें फिल्मों में काम करने का बड़ा शौक था. उनका ये शौक पूरा किया उनके दोस्त बाबूराव पहलवान ने, बाबूराव ही वो शख्स थे जिसने भगवान दादा को फिल्मों में काम दिलाया था. उनकी पहली फिल्म थी 'बेवफा आशिक'. इस फिल्म में भगवान दादा एक्टर को तौर पर नजर आए थे. हालांकि उनका मन डायरेक्शन में भी था. लिहाजा उन्होंने 1938 में आई फिल्म 'बहादुर किसान' में एक्टिंग भी की और इसे डायरेक्ट भी किया. जिसके बाद उन्होंने अपना एक प्रोडक्शन हाउस भी खोल लिया.


भगवान दादा ने सेट पर करवाई थी पैसों की बारिश
भगवान दादा अपनी फिल्मों में सीन रीयल रखने के लिए कुछ भी करते थे. ऐसे में एक फिल्म के सीन में उन्हें नोटो की बारिश दिखानी थी. ऐसे में उन्होंने सीन को रियल दिखाने के लिए असली नोटों की बारिश करवाई थी. 


भगवान दादा की वजह से ललिता पवार को जिंदगीभर करने पड़े विलेन के रोल
भगवान दादा ही वो एक्टर थे जिनके एक थप्पड़ ने ललिता पवार का चेहरा बिगाड़ दिया था. इससे पहले ललिता पवार फिल्मों में लीड एक्ट्रेस का रोल प्ले किया करती थीं, लेकिन फिल्म के सीन में भगवान दादा द्वारा मारे गए थप्पड़ की वजह से पहले तो वो बेहोश हो गईं. बाद में उन्होंने जब अपना चेहरा देखा तो वो भी खराब हो चुका था. जिसके बाद कभी वो लीड रोल में नजर नहीं आईं.


2 बंगलो और सात कारों के मालिक होने के बाद भी गरीबी में बीता आखिरी वक्त
भगवान दादा के पाल जुहू में समुद्र के किनारे 25 कमरों वाला बंगला था. साथ ही मुंबई में वो दो बंगलो के मालिक भी थे. उन्हें कारों का भी बड़ा शौक था. उनके गैराज में 7 कारें थीं. हर दिन वो सेट पर नई कार के साथ जाया करते थे. हालांकि ये सिलसिला ज्यादा नहीं चला, एक समय ऐसा आया कि उनकी फिल्में लगातार फ्लॉप होने लगीं. उन्होंने फिल्म 'हंसते रहना' बनाना चाही, जिसमें उन्होंने किशोर कुमार को कास्ट किया. ये फिल्म भगवान दादा का ड्रीम प्रोजेक्ट थी. जिसके लिए उन्होंने अपना बंगला और कारें गिरवी रख दी थी, लेकिन किशोर कुमार के नखरों ने इस फिल्म को पूरा नहीं  होने दिया. जिसके चलते भगवान दादा को अपना बंगला और कारें बेचनी पड़ीं. जिसके बाद वो चॉल में शिफ्ट हो गए. यहां गणपति जुलूस निकलता तो भगवान दादा के घर के पास जरूर रुकता, जब भगवान दादा अपना सिग्नेचर स्टेप करते तब ही जुलूस आगे बढ़ता था. 


हार्ट अटैक ने ली जान
भगवान दादा शराब के आदी हो गए थे. कहा जाता है उनके घर में हजारों शराब की बोतलें इकट्ठा हो गई थीं. 4 फरवरी 2002 वो दिन था जब भगवान दादा को हार्ट अटैक आया और उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. उनके कमरे में उनकी लाश मिली थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने भी उनकी मौत पर शौक व्यक्त किया था.


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