Movie Review: कहानी पुरानी है लेकिन संजय दत्त के लिए देखिये 'भूमि'
फिल्म के कई डायलॉग्स आपको याद रहेंगे. मगर स्क्रीनप्ले कई जगहों पर डगमगा जाती है. वहीं अदालत में लड़की की विर्जिनिटी का तर्क देना, बारात का वापस चले जाना, पड़ोसियों का ताना देना और विलेन का आइटम गाने पर शराब पीकर झूमना, थोड़ा घिसा पीटा लगा.
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स्टार कास्ट: संजय दत्त, अदिति राव हैदरी, शरद केलकर शेखर, सुमन
डायरेक्टर: उमंग कुमार
रेटिंग: 2.5 स्टार
इस निर्देशक उमंग कुमार को करियर के शुरुआत में ही फिल्म 'मैरी कॉम' के लिए नेशनल अवार्ड मिला था. ज़ाहिर सी बात है कि ऐसे डायरेक्टर से उम्मीद बढ़ना लाजिमी है. लेकिन यहाँ लगता है कि उमंग कहानी के भंवर में फँस गए. ऐसी कहानी इससे पहले हम रवीना टंडन की 'मातृ' और श्रीदेवी की 'मॉम' में देख चुके हैं. बस उसी कहानी को इस फिल्म में अलग तरीके से दिखाया गया है. उमंग कुमार के लिए यह कहानी चुनना शायद पैटर्न फॉलो करना साबित हुआ.
कहानी
पिता और बेटी की कहानी है भूमि. साधारण और एक दुसरे से बेहद प्यार करने वाले अरुण सचदेव (संजय दत्त) और भूमि (अदिति हैदरी) आगरा में जहाँ रहते हैं वहां इनका जूते का छोटा सा बिज़नेस है. बाप बेटी के नोक झोक, जिगरी दोस्त ताज (शेखर सुमन) के सज़ाक यह परिवार हँसता खिलखिलाता. उनकी जिंदगी बदल जाती है जब भूमि से शादी से ठीक एक दिन पहले गैंग रेप का शिकार हो जाती है. शादी का टूट जाना, अदालत की नाइंसाफी और समाज के तानों को सहने के बाद बाप-बेटी आपने हक की लड़ाई का खुद फैसला करते हैं और अंत में दोषियों को अपने तरीके से सजा देते हैं.
एक्टिंग
सालों बाद संजय दत्त की बड़े परदे पर वापसी न सिर्फ दर्शकों के लिए बल्कि इंडस्ट्री के लिए भी दिवाली की तरह है. संजू बाबा इस उम्मीद पर बिलकुल खरे उतरे हैं. उनका स्क्रीन प्रजेंस, स्टाइल और आत्मविश्वास काबिल-ए-तारीफ है. संजय दत्त का परदे पर एक्शन सीक्वेंस देख कर आपको जोश आएगा वहीं इमोशनल सीन आंखों में आंसू ला देगा. खास तौर पर अदालत में संजय दत्त का मोनोलॉग जो फिल्म का एक अहम हिस्सा है.
अदिति राव हैदरी ने भूमि के किरदार को बखूबी निभाया है. जितना नेचुरल उनका काम था इतना ही नेचुरल लुक. बाप बेटी की भूमिका में संजय दत्त और अदिति की केमिस्ट्री बहुत अच्छी रही. फिल्म में खलनयाक का किरदार निभा रहे शरद केलकर और शेखर सुमन ने भी अच्छा साथ दिया है.
क्यों देखें/ना देखें
फिल्म के कई डायलॉग्स आपको याद रहेंगे. मगर स्क्रीनप्ले कई जगहों पर डगमगा जाती है. वहीं अदालत में लड़की की विर्जिनिटी का तर्क देना, बारात का वापस चले जाना, पड़ोसियों का ताना देना और विलेन का आइटम गाने पर शराब पीकर झूमना, थोड़ा घिसा पीटा लगा. फिल्म देखकर ऐसा नहीं लगेगा कि आप कुछ भी नया देख रहे हैं सिवाय संजय दत्त की दमदार एक्टिंग के...तो अगर आप संजय के फैन हैं तो ये फिल्म देख सकते हैं नहीं तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी.
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