गरीबी पर बनी फिल्म: बिमल रॉय की 'दो बीघा ज़मीन', जिसे दुनिया ने सराहा
Bollywood Film Do Bigha Zamin: किसानों की हालत और शोषण के इर्द गिर्द कई फिल्मों का निर्माण हुआ. इन्हीं बेहतरीन फिल्मों में से एक फिल्म बिमल रॉय की दो 'बी बीघा ज़मीन' है.
Do Bigha Zamin: देश की आज़ादी के बाद कई दशकों तक हिंदी सिनेमा में गरीबी, किसानों की हालत और शोषण के इर्द गिर्द कई फिल्मों का निर्माण हुआ. कहते हैं फिल्में समाज का आईना होती हैं, यही वजह है कि कृषि प्रधान देश में किसानों की बदहाली और गरीबी के विषय पर कई यादगार फिल्में बनाई गईं. इन्हीं बेहतरीन फिल्मों में से एक फिल्म बिमल रॉय की दो 'बी बीघा ज़मीन' है. 1953 में आई इस फिल्म के सिनेमा के चाहने वाले आज भी पसंद करते हैं.
दो बीघा ज़मीन में शम्भू (बलराज साहनी) नाम के किसान की कहानी को दिखाया गया. उसकी दो बीघा जमीन पर गांव के जमींदार हरनाम सिंह की नजर होती है क्योंकि उसे अपनी जमीन पर शहर के कारोबारियों के साथ मिलकर अच्छा मुनाफा कमाने के लिए मिल लगानी है. उसकी जमीन के बीचों बीच शम्भू की दो बीघा जमीन आ रही है. हरनाम सिंह, शम्भू से जमीन के लिए कहता है, लेकिन शम्भू के इंकार कर देने के बाद वह शम्भू से अपना कर्ज वापस मांगता है. मामला कोर्ट तक चला जाता है, कोर्ट आदेश देता है कि शम्भू तीन महीने के अंदर हरनाम सिंह कर्ज वापस करे.
कर्ज़ चुकाने के लिए शंभू कोलकाता में जाकर रिक्शा तक चलाता है लेकिन वो पैसे जमा नहीं कर पाता. जब वह वापस आता है तो उसकी ज़मीन बिक चुकी होती है और पिता पागल हो चुका है. यहां तक कि वो अपनी ज़मीन से एक मुट्ठी मिट्टी तक नहीं ले पाता. ये कहानी उस दौर में ज़मींदारों की असलियत को बयां करती है. खास बात ये है कि बलराज साहनी ने अपने किरदार को हकीकत के करीब रखने के लिए कोलकाता में खुद रिक्शा चलाया था.
फिल्म में बलराज साहनी के अलावा निरुपा रॉय, मुराद, मीना कुमारी, जगदीप और नज़ीर हुसैन जैसे कलाकार दिखाई दिए थे. ये सालल 1953 में सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई थी. इस फिल्म को दुनियाभर में तारीफें मिली और कई अवॉर्ड इसने अपने नाम किए थे. फिल्म को कांस में अवॉर्ड मिला था. इसके अलावा दो राष्ट्रीय और 11 फिल्मफेयर अवॉर्ड भी इसकी झोली में गए थे.
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