Guru Dutt Unknown Facts: सिनेमा में अगर जादू है तो बस वह हैं... सिनेमा में अगर करिश्मा है तो बस वह ही हैं... दरअसल, वह ऐसा 'प्यासा' बनकर रह गए, जो ताउम्र सुकून की तलाश में भटकते रहे. उनकी जिंदगी 'कागज के फूल' ऐसे बन गई, जिनकी खुशबू से सिनेमा की दुनिया न सिर्फ रौशन है, बल्कि आज तक महक रही है और अनंतकाल तक महकती रहेगी.
अगर आप भी सिनेमा से इश्क करते हैं तो यकीनन समझ गए होंगे कि जिक्र किसका हो रहा है. अगर नहीं समझे तो हम ही बता देते हैं कि जिस अजीम-ओ-शाह शख्स की हम बात कर रहे हैं, वह कोई और नहीं... सिर्फ गुरु दत्त हैं... सिनेमा की दुनिया का यह बेशकीमती सितारा साल 1925 में आज ही के दिन यानी 9 जुलाई को इस सरजमीं पर उतरा था. आइए जन्मतिथि के मौके पर आपको उनकी भटकती जिंदगी के चंद किस्सों से रूबरू कराते हैं..
यह था गुरु दत्त का असली नाम
गुरु दत्त के नाम से दुनियाभर में शोहरत हासिल करने वाले इस शख्स का असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था. दरअसल, ब्रिटिश भारत के पादुकोण (अब कर्नाटक) में जन्मे गुरु दत्त का नाम एक हादसे के बाद बदल दिया गया था. उनके पिता शिवशंकर राव पादुकोण हेडमास्टर और बैंकर थे, जबकि मां वसंती टीचर और लेखिका थीं. उनके माता-पिता करवार में रहते थे, लेकिन नौकरी के चक्कर में उनके तबादले होते रहते थे. गुरु दत्त का शुरुआती बचपन कोलकाता के भवानीपुर में गुजरा, जिसके चलते वह काफी अच्छी बंगाली बोल लेते थे. कहा जाता है कि वह बचपन से ही काफी जिद्दी थे. एक बार जो ठान लेते थे, पूरा करके ही मानते थे. जो चीज पसंद नहीं आई तो उसे ऐसा छोड़ा कि उसकी तरफ कभी रुख ही नहीं किया.
फिल्मी दुनिया में ऐसे रखा था कदम
गुरु दत्त को बचपन से ही सिनेमा और एक्टिंग का शौक था. यही वजह रही कि उन्होंने 1942 की शुरुआत में उदय शंकर के अल्मोड़ा स्थित स्कूल ऑफ डांसिंग एंड कोरियोग्राफी में पढ़ाई की, लेकिन कंपनी की एक महिला प्रमुख से नाम जुड़ने के बाद उन्हें निकाल दिया गया. इसके बाद कलकत्ता (अब कोलकाता) की एक कंपनी में टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी की, लेकिन यहां उनका मन नहीं लगा. कुछ समय बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और अपने पैरेंट्स के पास मुंबई चले गए. उस दौरान उनके चाचा ने उन्हें तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर प्रभात फिल्म कंपनी में बतौर सहायक निर्देशक लगवा दिया, जिसके बाद फिल्मों की दुनिया में गुरु दत्त का सफर शुरू हो गया.
महज आठ फिल्मों से कमा लिया नाम
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सिनेमा की दुनिया के दिग्गजों में शुमार गुरु दत्त ने अपने करियर में सिर्फ आठ हिंदी फिल्में बनाईं, लेकिन इन सभी ने कल्ट सिनेमा का तमगा हासिल किया. दरअसल, गुरु दत्त अपनेआप में खूबियों की खान थे. वह एक्टर, डायरेक्टर, प्रॉड्यूसर, कोरियोग्राफर और राइटर तक की जिम्मेदारी खुद ही निभाते थे. यही वजह रही कि उन्हें भारतीय सिनेमा के महान फिल्म निर्माताओं में गिना जाता है. गुरु दत्त ने बॉलीवुड को प्यासा, साहब बीवी और गुलाम, कागज के फूल, चौदहवीं का चांद जैसी क्लासिक फिल्में दीं.
ढहा दिया था अपना ही घर
पर्दे पर भले ही गुरु दत्त के सितारे हमेशा चमकते रहे, लेकिन निजी जिंदगी को लेकर वह काफी परेशान रहे. दरअसल, साल 1953 में उन्होंने सिंगर गीता दत्त से शादी की, लेकिन उनकी शादीशुदा जिंदगी ज्यादा अच्छी नहीं रही. गीता और गुरु दत्त के विचार मेल नहीं खाते थे. हालांकि, कुछ लोगों का कहना था कि गुरु दत्त की जिंदगी में वहीदा रहमान ने दस्तक दे दी थी, जिसका असर उनकी शादीशुदा जिंदगी पर पड़ा था. हालांकि, गीता से रिश्ते सुधारने के चक्कर में गुरु दत्त ने एक दफा तो ऐसा कदम उठा लिया था कि हर कोई हैरान रह गया था. हुआ यूं था कि अपने बर्थडे के दिन उन्होंने पाली हिल इलाके में स्थित अपने ही आलीशान मकान को गिरवा दिया था. दरअसल, उस मकान में एक पेड़ था और गुरु दत्त को लगता था कि उस पर कोई भूत रहता है, जिसके चलते उनकी शादीशुदा जिंदगी में दिक्कतें आ रही हैं.
मौत को लेकर रहस्य आज तक बरकरार
साल 1964 में 10 अक्टूबर के दिन महज 39 साल की उम्र में गुरु दत्त ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था. उनका शव मुंबई के पेड्डर रोड स्थित किराए के घर में मिला था. उनकी मौत आज तक एक रहस्य ही है, क्योंकि कुछ लोग इसे हादसा कहते हैं तो कई आत्महत्या करार देते हैं. आत्महत्या के पीछे तर्क यह दिया जाता है कि गुरु दत्त पहले भी दो बार अपनी जान लेने की कोशिश कर चुके थे. हालांकि, जानकारों का कहना है कि ज्यादा शराब पीने और नींद की गोलियों के ओवरडोज की वजह से उनकी मौत हुई थी.