Imtiaz Ali: इश्क करने का नया अंदाज उन्होंने ईजाद किया. फिर उसे मुकम्मल करने का तरीका भी समझाया. बात हो रही है बचपन में चोरी-चोरी सिनेमा देखकर बड़े होने वाले इम्तियाज अली की, जिनका आज बर्थडे है.अपनी कामयाबी के बारे में उन्होंने इस कदर 'सोचा न था', फिर उन्होंने बॉलीवुड में 'आहिस्ता-आहिस्ता' अपने कदम बढ़ाए. बस जैसे ही उन्होंने सिनेमा को दिल से 'जब वी मेट' कहा तो फैंस ने उनके 'लव आज कल' को समझते हुए उन्हें 'रॉकस्टार' बना दिया.
बात किसी और की नहीं, बल्कि इश्क के किस्सों को रुपहले पर्दे पर मुकम्मल करने वाले एक ही शख्स की है. यह शख्स कोई और नहीं, बल्कि वह इम्तियाज अली हैं, जिन्होंने बचपन में छिप-छिपकर सिनेमा देखा. और जब फिल्मों में काम करने का मौका मिला तो उन्हें बड़े पर्दे पर 'फांसी' दे दी गई. आज इम्तियाज अली का बर्थडे है तो आइए उनकी जिंदगी के चंद लम्हों से रूबरू होते हैं.
जमशेदपुर में हुआ था इम्तियाज का जन्म
16 जून 1971 के दिन झारखंड के जमशेदपुर में जन्मे इम्तियाज अली भले ही आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. अगर उनके फूफा के थिएटर नहीं होते तो शायद फिल्मी दुनिया में कदम रखने का कीड़ा उन्हें कभी नहीं काटता. दरअसल, इम्तियाज की मां हाउसवाइफ थीं, जबकि पिता सिंचाई विभाग में इंजीनियर थे. जमशेदपुर में जन्म के बाद इम्तियाज पटना चले गए और वहां सेंट जेवियर्स में 8वीं तक की पढ़ाई की. इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए जमशेदपुर लौट आए.
फिल्मों के प्रति ऐसे बढ़ी थी रुचि
इम्तियाज के सपनों ने जमशेदपुर में ही जन्म लेना शुरू किया. यहां वह अपने फूफा के घर में रहते थे, जिनके तीन थिएटर स्टार, जमशेदपुर और करीम थे. इनमें एक थिएटर की दीवार को घर से सटी हुई थी. वैसे तो इम्तियाज के घरवाले इतने सख्त थे कि उन्हें पढ़ने-लिखने वाले बच्चों का टॉकीज में जाना पसंद नहीं था. हालांकि, उनके घर में एक खिड़की ऐसी थी, जिससे टॉकीज के पर्दे का छोटा-सा हिस्सा दिखता था. यह हिस्सा भी खास एंगल से नजर आता था. बस इसी एंगल से चोरी-छिपे फिल्में देखते-देखते इम्तियाज ने सिनेमा की कहानियों में नए एंगल डालने का तरीका सीख लिया.
दिल्ली में मिला थिएटर का साथ
इम्तियाज जब पढ़ाई के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदू कॉलेज पहुंचे तो थिएटर में भी हिस्सा लेने लगे. यहां वह नाटक लिखने के साथ-साथ उन्हें डायरेक्ट भी करते थे. इसके बाद वह अपने सपने पूरे करने के लिए मुंबई पहुंच गए और 'कुरुक्षेत्र' और 'महाभारत' आदि सीरियल का निर्देशन किया. साल 2005 में बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म 'सोचा न था' रिलीज हुई, लेकिन खास कमाल नहीं कर सकी. साल 2006 में आई अगली फिल्म 'आहिस्ता आहिस्ता' को भी खास प्रतिक्रिया नहीं मिली. 2007 में इम्तियाज ने 'जब वी मेट' बनाई तो उनकी किस्मत बदल गई. इसके बाद उन्होंने 'रॉकस्टार', 'हैरी मेट सेजल', 'हाइवे' और 'लव आज कल' जैसी फिल्में बनाईं.
जब इम्तियाज को दी गई थी 'फांसी'
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बॉलीवुड का यह मशहूर डायरेक्टर एक्टिंग की दुनिया में भी हाथ आजमा चुका है. दरअसल, उन्होंने अनुराग कश्यप की फिल्म 'ब्लैक फ्राइडे' में याकूब मेनन का किरदार किया था. याकूब मेमन मुंबई बम धमाकों के मुख्य आरोपी टाइगर मेमन का छोटा भाई था. याकूब सरकारी गवाब बना था, लेकिन उसे बाद में फांसी की सजा दी गई थी.
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