Kader Khan Death: कादर खान का निधन हो गया है. फिल्म जगत के इस मशहूर अभिनेता ने लंबी बीमारी के बाद कल देर शाम 6 बजे इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उनकी उम्र 81 साल थी. कादर खान तो चले गए लेकिन अपने पीछे छोड़ गए हिन्दी फिल्मों में वह विरासत जो कभी खत्म नहीं होने वाली. विलेन, कॉमेडियन और कई अन्य तरह के किरदारों से पर्दे पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई तो वहीं सैकड़ों फिल्मों के संवाद लिख कर पर्दे के पीछे भी मजबूती से अपने कला और हुनर का प्रदर्शन किया.
कादर खान वही शख़्स थे जिनकी पेट ख़ाली रही लेकिन मुफलिसी से परिवार को निकालने की हसरत आंखों में हमेशा जिंदा रही. कादर खान वहीं शख्स थे जो ज़मीन को बिछौना बनाकर और फ़लक को ओढ़ कर सो जाते थे लेकिन आंखों में पल रहे ख्वाब को कभी मरने नहीं दिया. कादर खान वही सख्स थे जो इतनी परेशानियों के बावजूद किसी के सामने अपनी ग़ुर्बत की कहानी नहीं सुनाई, बल्कि परेशानियों के बावजूद हंसाते रहे.
कादर खान का बचपन बेहद गरीबी में गुजरा था. कादर खान का जन्म साल 1937 में अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था. कादर खान की मां उन्हें पढ़ने के लिए मस्जिद भेजा करती थी. एक वक्त ऐसा भी था जब कादर खान जिंदगी और मुफलिसी से परेशान होकर पढ़ाई छोड़ नौकरी करने जाने लगे थे. लेकिन उनकी मां ने उन्हें इल्म की एहमियत समझाई और बताया की मुफलिसी को सिर्फ इल्म के जरिए खत्म किया जा सकता है. इसके बाद कादर खान ने पढ़ने की ठान ली. कादर खान बॉम्बे युनिवर्सिटी के इस्माइल युसुफ कॉलेज से इंजीनियरिंग ग्रेज्यूएट हैं. फिल्मों में करियर बनाने के पहले, कादर खान एमएच सैबू सिद्दिक कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर थे.
कादर खान ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 1974 में रिलीज हुई फिल्म सगीना से की थी. कहते हैं कि उनका परिवार इतना गरीब था कि वह अक्सर इस हालात के आगे खुद को मजबूर पाते थे. कई बार वह मस्जिद से बाहर निकल कर कब्रिस्तान चले जाते थे. जहां वह जोर-जोर से चिल्लाते थे. वह वहां घंटों बैठा करते थे. कादर खान जब कब्रिस्तान में बैठकर जोर-जोर से रोते थे यह बात एक दिन रोटी फेम एक्टर अशरफ खान तक पहुंची. उन दिनों अशरफ खान को एक नाटक की लिए ऐसे ही लड़के की तलाश थी. उन्होंने कादर खान को रोल दे दिया.
कहते हैं हुनर को मौका खुद तलाश लेती है. कादर खान इसके बाद नाटकों में हिस्सा लेने लगे. एक नाटक में दिलीप कुमार की नजर कादर खान पर पड़ी थी. दिलीप कुमार ने उन्हें अपनी फिल्म सगीना के लिए साइन कर लिया. यहीं से उनका सफर शुरू हो गया. हालंकि इसके बाद उन्होंने दिल दीवाना, बेनाम आदि कई फिल्में कि लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.
1977 में आई फिल्म 'खून, पसीना और स्वाद' में उन्होंने काम किया. इस फिल्म से वह बतौर एक्टर अपना लोहा मनवा चुके थे. इसके बाद 70 से दशक में उन्होंने फिल्मों में संवाद लिखना भी शुरू किया. इसके बाद जो सफर शुरू हुआ तो वह 300 से ज्यादा फिल्मों के बाद ही रुका.
अमिताभ बच्चन ने की मदद
70 के दशक में जब अमिताभ बच्चन फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद में थे उस समय उन्हें कादर खान का साथ मिला था. कादर खान ने ही स्ट्रगल कर रहे अमिताभ बच्चन को 'एंग्री यंग मैन' बना दिया था. वो ऐसा दौर था जब कादर खान अपनी कलम से जो लिख देते थे वो पर्दे पर हिट हो जाया करता था. मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा जैसे निर्देशकों ने कादर खान को स्क्रिप्ट और डायलॉग लिखने के लिए मनाया और कादर को फिल्म इंडस्ट्री में ले आए. कादर ने 'अमर अकबर एंथोनी', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'लावारिस' , 'कालिया', 'नसीब' , 'कूली' जैसी फिल्मों के लिए डायलॉग्स लिखे हैं. इन्हीं फिल्मों के डायलॉगस की वजह से आज बिग बी को 'एंग्री यंग मैन' के तौर पर जाना जाता है.
गोविंदा और कादर खान
कादर खान को उनकी असली पहचान कमेडियन के तौर पर मिली. साल 1983 में प्रदर्शित फिल्म ‘कुली’ कादर खान के कॅरियर की सुपरहिट फिल्मों में से एक मानी जाती है. इसके बाद कादर खान ने गोविंदा के साथ कई बेहतरीन कॉमेडी फिल्मों में काम किया, दोनों ने साथ में दूल्हे राजा, कुली नं.1 और राजा बाबू जैसी फिल्मों में दर्शकों को खूब हंसाया.
300 से ज्यादा फिल्मों में किया काम
कादर खान ने लगभग 300 फिल्मों में अभिनय किया है. मुक्ति, ज्वालामुखी, मेरी आवाज सुनो, जमाने को दिखाना है, नौकर बीबी का, शरारा, कैदी, घर एक मंदिर, गंगवा, जान जानी जर्नादन, घर द्वार, तवायफ, पाताल भैरवी, इंसाफ की आवाज, सूर्यवंशम, हसीना मान जाएगी, फंटूश जैसी कई सुपर हिट फिल्मों में उन्होंने काम किया.
कादर खान को मिले हैं कई बड़े सम्मान
2013 में, कादर खान को उनके फिल्मों में योगदान के लिए साहित्य शिरोमनी अवार्ड से नवाजा गया. इससे पहले कादर खान 1982 और 1993 में बेस्ट डायलॉग के लिए फिल्म फेयर जीत चुके हैं. कादर खान को 1991 को बेस्ट कॉमेडियन का और 2004 में बेस्ट सपोर्टिंग रोल का फिल्म फेयर मिल चुका है.
मंटो और ग़ालिब पर कर रहे थे काम
वक्त के साथ वह रुपहले पर्दे से दूर होते गए. बीमार होने से पहले वह मंटो और ग़ालिब पर काम कर रहे थे. साथ ही कबीर पर भी उनका काम जारी था. गालिब के शेरों को कैसे गाया जाया इस पर उनका काम जारी था. बता दें कि वह ग़ालिब की शेरों को समझाते हुए एख किताब भी लिख चुके हैं. एक फिल्म के संवाद के दौरान वह मिर्ज़ा शौक़ लखनवी के एक शेर को बोलते हैं. आज उनके दुनिया से रुख़्सत होने के बाद वही शेर याद आता है
मौत से किस को रस्तगारी है
आज वो कल हमारी बारी है