अभिनेता ने कहा कि सिनेमा आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए होता है और वह समाज के लिए प्रासंगिक अधिकाधिक फिल्में करना अपनी जिम्मेदारी मानते हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘ मेरा मानना है कि सिनेमा समाज को नहीं बदल सकता और न ही कोई क्रांति ला सकता है. सिनेमा शिक्षा का माध्यम है या नहीं इसे लेकर भी मैं पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकता. डॉक्यूमेंटरी शिक्षाप्रद हो सकती हैं लेकिन फीचर फिल्में यह काम नहीं कर सकतीं. लोग उन्हें देखकर भूल जाते हैं. गंभीर प्रकार की फिल्में ही अपने दौर के ब्यौरे के रूप में काम कर सकती हैं.’’
शाह ने कहा कि यही वजह है कि उन्होंने ‘ए वेडनसडे’, उनकी हाल की लघु फिल्म ‘रोगन जोश’ में काम किया. शाह ने कहा, ‘‘ऐसी फिल्मों का हिस्सा बनने को मैं अपनी जिम्मेदारी मानता हूं. मेरे सभी गंभीर काम उस दौर का प्रतिनिधित्व करते हैं. सिनेमा हमेशा रहेगा. इन फिल्मों को 200 वर्ष बाद भी देखा जा सकता है. लोगों को पता होना चाहिए कि वर्ष 2018 में भारत किस तरह का था. ऐसा न हो कि 200 साल बाद उन्हें केवल सलमान खान की फिल्में ही देखने को मिले. भारत उस तरह का नहीं है. सिनेमा भावी पीढ़ियों के लिए होता है.’’ रोगन जोश का प्रदर्शन 20 वें जियो मामी मुंबई फिल्म समारोह में हुआ.