जब भी कभी जिक्र रावण का होता है तो जहन में चेहरा रामायण सीरियल के अरविंद त्रिवेदी का ही आता है. उनका बचपन उज्जैन में बीता. वो बचपन से ही खूब रामलीला देखते थे लेकिन एक किरदार वो बिल्कुल नहीं करना चाहते थे और वो था रावण का.
अरविंद त्रिवेदी के भाई गुजराती फिल्मों और गुजराती नाटकों में काम करते थे तो उन्होंने भी सोचा कि भई चलो अभिनय किया जाए. उन्हें अभिनय का शौक तो था ही. वो राम लीलाएं भी देखते थे.तो अभिनय शुरू किया. उन्हें हिंदी फिल्म भी मिली. उनकी पहली हिंदी फिल्म थी 'पराया धन', उसके बाद और भी हिंदी फिल्में मिली.
अरविंद त्रिवेदी फिल्में कर रहे थे, लेकिन मन में एक कुलबुलाहट थी कि कुछ और करना है. वो चाहते थे कुछ ऐसा करें जो अलग हो जिससे एक पहचान मिले. जिससे उनका कुछ नाम हो उन्हें पता चला कि रामानंद सागर रामायण बना रहे हैं. तो वो पहुंच गए ऑडिशन देने, लेकिन इसमें एक दिक्कत थी. वो एक ही किरदार करना चाहते थे और वो किरदार था केवट का..केवट..जिन्होंने श्रीराम और माता सीता को गंगा पार कराई थी. रामानंद सागर ने पूछा कि कौनसा किरदार करना चाहेंगे तो अरविंदा त्रिवेदी ने कहा कि भई मैं तो केवट का किरदार करना चाहता हूं.
केवट का किरदार निभाना चाहते थे अरविंद
अरविंद त्रिवेदी को केटव के किरदार के ऑडिशन के लिए बुलाया गया और वो पहुंच गए ऑडिशन देने . वहां उन्होंने देखा कि रावण के किरदार के लिए ऑडिशन चल रहा है. करीब 300 लोगों का ऑडिशन हो रहा है. उनसे कहा गया कि आप अभी बैठिए. इन 300 लोगों का ऑडिशन हो जाए तो फिर आपका ऑडिशन लिया जाएगा. 300 लोगों का ऑडिशन खत्म हुआ तब तक अरविंद त्रिवेदी इंतजार करते रहे. उसके बाद रामानंद सागर से मुलाकात हुई. उन्हें एक स्क्रिप्ट पढ़ने को दी गई. अरविंद त्रिवेदी ने ऐसे ही स्क्रिप्ट पढ़ी और बोले ये तो केवट की स्क्रिप्ट नहीं है. मतलब केवट के लिए तो ऑडिशन ले ही नहीं रहे हैं आप .तो एकदम से रामानंद सागर बोले कि मुझे मेरा लंकेश मिल गया.
300 लोगों की भीड़ में बिना ऑडिशन मिला रावण का रोल
अरविंद त्रिवेदी हैरान हो गए कि कहां मिल गया लंकेश. 300 लोग तो ऑडिशन देकर जा चुके हैं और मैंने तो एक भी डायलॉग नहीं बोला तो लंकेश कहा से मिल गए. उन्होंने कहा तुम ही हो मेरे लंकेश. अरविंद त्रिवेदी ने कहा कि रामानंद सागर जी मैंने तो एक भी डायलॉग नहीं बोला और रावण तो बहुत धमाकेदार, जोरदार तरीके से डायलॉग बोलता है और ये जो लोग ऑडिशन देने आए थे. ये छह छह फीट लंबे ऊंचे और जोर से जो है संवाद बोलने वाले लोग थे तो मैं कहां से रावण का किरदार कर सकता हूं.
रामानंद सागर ने कहा कि देखिए मुझे मेरे लंकेश के लिए एक ऐसा कैरेक्टर चाहिए जिसमें सिर्फ शक्ति ही ना हो. भक्ति भी हो. उसके चेहरे पर अभिमान ही ना हो..तेज भी हो और तुम्हारी चाल से ही मुझे पता चल गया कि तुम मेरे रावण बन सकते हो. इसके बाद रामानंद सागर ने अरविंद त्रिवेदी को गले लगा लिया. रामानंद सागर के बारे में कहा जाता है कि वो किसी को गले बहुत मुश्किल से लगाते थे तो अरविंद त्रिवेदी की किस्मत खुल गई.
रावण वध पर गांव में मनाया गया शोक
वैसे तो लोग रावण से बहुत नफरत किया करते थे लेकिन अरविंद त्रिवेदी के घर में उनके मौहल्ले में, उनके गांव में बहुत इज्जत थी उनकी. लोग उन्हें रावण के नाम से ही बुलाते थे. उनकी पत्नी को रावण की पत्नी मंदौदरी के नाम से बुलाते थे. उनके बच्चों को रावण के बच्चों के नाम से बुलाते थे. उन्होंने देखा कि रावण के किरदार से भी मुझे बहुत इज्जत मिली. जिस दिन रामायण में रावण का वध हुआ उस दिन अरविंद त्रिवेदी के गांव में शोक मनाया गया था.
सोचिए इस हद तक लोग अरविंद त्रिवेदी को प्यार करते थे उनके गांव में कि रावण वध जब सीरियल में हुआ तो पूरे गांव में शोक मनाया गया.
राम भक्त हैं अरविंद त्रिवेदी
अरविंद त्रिवेदी आज भी ज्यादातर वक्त राम नाम लेकर गुजारते हैं. अरविंद त्रिवेदी श्रीराम के बहुत बड़े भक्त हैं. आज से नहीं बचपन से हैं. इसलिए तो वो केवट का किरदार करना चाहते थे तो आज भी अरविंद त्रिवेदी अपना ज्यादातर वक्त राम नाम के साथ बिताते हैं और वो यही चाहते हैं कि जब तक रहें राम नाम के साथ ही जिंदा रहें.