नई दिल्ली: बॉलीवुड की सफल और यादगारों फिल्मों की बात आती है तो इसमें एक नाम फिल्म 'शोले' का भी आता है. यह एक ऐसी फिल्म थी जिसका हर एक कैरेक्टर और उसके द्वारा बोले गए डायलॉग दोनों ही लोकप्रिय हुए. इस फिल्म में ऐसा ही एक किरदार था जेलर का. जी हां अंग्रेजों के जमाने का जेलर. इस कैरेक्टर को जब याद करते हैं तो चेहरे पर अपने आप ही एक हंसी उभर आती है. यही इस कैरेक्टर की सफलता है. इस रोल को निभाया था मशहूर हास्य अभिनेता असरानी ने.
असरानी ने अपने फिल्मी करियर में वैसे तो 300 से अधिक फिल्मों में काम किया. लेकिन शोले के जेलर के रूप में उन्हें जो ख्याति मिली बाद में वही उनकी पहचान भी बन गई. शोले फिल्म से पहले भी असरानी ने कई फिल्मों में काम किया उनकी पहली फिल्म 1967 में आई थी जिसका नाम था 'हरे कांच की चूड़ियां'. इस फिल्म से उन्हें कोई खास फायदा नहीं हुआ. इसके बाद ऋषिकेश मुखर्जी ने 1969 में 'सत्यकाम' में अवसर दिया. असरानी के काम को सबसे पहले नोटिस किया गया फिल्म 'मेरे अपने से', इस फिल्म में विनोद खन्ना,शत्रुघन सिन्हा और मीना कुमारी भी थीं.
ऐसे बने जेलर अंग्रेजों के जमाने के जेलर
'शोले' फिल्म की जब कास्टिंग चल रही थी तब जेलर के रोल के लिए असरानी का चयन किया गया. 'शोले' की पटकथा लिखने वाले सलीम और जावेद ने असरानी को बुलाया और रोल के बारे में जानकारी दी. दोनों ने असरानी को 'वर्ल्ड वॉर सेकेंड' नाम की एक किताब दी. इस किताब पर जर्मनी के तानाशाह 'अडोल्फ हिटलर' की एक फोटो छपी हुई थी. सलीम-जावेद ने असरानी से कहा कि जेलर के रूप में उन्हें ऐसा ही लुक चाहिए. असरानी ने इस रोल को चुनौती के रूप में लिया और हां कर दी.
इसके बाद फिल्म के कॉस्ट्यूम डिजाइनर अकबर गब्बाना और बालों के लिए कबीर को बुलाया गया. लेकिन बात इतने से नहीं बन रही थी. असरानी ने हिटलर के बारे में अधिक से अधिक जानकारी जुटाना शुरू कर दिया. इसमें उनकी मदद की फिल्म इंस्टीट्यूट पुणे ने. यहां से असरानी ने अभिनय की पढ़ाई की थी. इस संस्थान में हिटलर की आवाज की एक रिकार्डिंग रखी थी.
असरानी ने इस आवाज को कई बार सुना. इसमें हिटलर जिस अंदाज में 'आई एम आर्यन' कहता है इसी की नकल करते हुए असरानी ने फिल्म डायलॉग बोला 'हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं'. जब पर्दे पर उनकी एंट्री हुई और जब ये डायलॉग दर्शकों ने सुना तो जमकर तालियां बजाईं. असरानी ने इस छोटे से रोल को अपने अभिनय से अमर बना दिया.