नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर आधारित फिल्म ‘गुमनामी’ को लेकर एक नया विवाद छिड़ गया है. सुभाष चंद्र बोस परिवार के 32 सदस्यों ने निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी पर आरोप लगाया है कि फिल्म निर्माता ने सेंसर बोर्ड की मंजूरी पाने के लिए फिल्म का नाम ‘गुमनामी बाबा’ से बदलकर ‘गुमनामी’ रख दिया है.
बोस के लापता होने की घटना पर बनी फिल्म पहले से ही विवादों में है. निर्देशक ने बोस द्वारा स्थापित ‘ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक’ के कार्यालय में रविवार को फिल्म के ट्रेलर की स्क्रीनिंग की थी. निर्देशक ने स्वतंत्रता सेनानी के कुछ वंशजों द्वारा लगाए गए आरोपों को असत्य करार दिया है.
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फिल्म को अगस्त के आखिरी हफ्ते में सीबीएफसी से मंजूरी मिली थी. यह फिल्म 2 अक्टूबर को सिनेमाघरों में रिलीज होगी. नेताजी की भतीजी चित्रा घोष, उनके भतीजे द्वारका बोस और बोस परिवार के 30 अन्य सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित एक बयान में सोमवार को कहा गया है, ‘‘पिछले एक साल से, जब से श्रीजीत मुखर्जी ने फिल्म ‘गुमनामी बाबा’ की घोषणा की है, उन्होंने कहा था कि यह फिल्म चन्द्रचूड़़ घोष और अनुज धर की पुस्तक ‘कॉनन्ड्रम’ पर आधारित है. अब उन्होंने (श्रीजीत मुखर्जी ने) सेंसर बोर्ड से मंजूरी लेने के लिए अचानक अपना रुख बदल लिया है और कहते हैं कि फिल्म न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट पर आधारित है. उन्होंने फिल्म का नाम भी बदल दिया है.’’
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आरोप से इनकार करते हुए, मुखर्जी ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा, ‘‘क्या सरासर बकवास और झूठ का एक पुलिंदा है. टीजर पोस्टर सहित सभी घोषणाओं में पहले दिन से ही फिल्म का नाम गुमनामी है. कॉनन्ड्रम नहीं, बल्कि मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को पटकथा का आधार बनाने का निर्णय फिल्म की शूटिंग से काफी पहले लिया गया था, जो इस विवाद से कई महीने पहले की बात है. मुखर्जी ने रविवार को कहा था कि एआईएफबी के वरिष्ठ नेताओं ने ट्रेलर देखा और वे फिल्म का प्रीमियर देखने के लिए सहमत हुए हैं.
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फिल्मकार ने कहा, ‘‘एआईएफबी का 20 सदस्यीय प्रतिनिधि यह तय करेगा कि ‘गुमनामी’ ने नेताजी के प्रशंसकों और लोगों की भावनाओं को आहत किया है या नहीं.’’ एआईएफबी के वरिष्ठ नेता नरेन डे, हरिपद विश्वास, देवव्रत विश्वास, नरेन चटर्जी रविवार को राज्य पार्टी मुख्यालय में स्क्रीनिंग समारोह में मौजूद थे.