नई दिल्ली: सेंसर बोर्ड एक बार फिर विवादों में हैं. फिल्म विदेश में रिलीज हो चुकी है और अवॉर्ड भी पा चुकी है. लेकिन भारत में सेंसर बोर्ड इसे रिलीज की इजाजत नहीं दे रहा है. फिल्म का नाम है 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का', जिसमें मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रहने वाली चार अलग अलग उम्र की महिलाओं की कहानी है.


फिल्म की डायरेक्टर हैं अलंकृता श्रीवास्तव और निर्माता हैं प्रकाश झा. सेंसर बोर्ड से इजाजत क्यों नहीं मिल रही है ये जानने से पहले ये जानना जरूरी है कि फिल्म में उन चार महिलाओं की क्या भूमिका है. कोंकणा सेन शर्मा, प्लबिता, अहाना और रत्ना पाठक शाह ने इन चार महिलाओं की भूमिका निभाई है,


कोंकणा ऐसे किरदार में हैं जो तीन बच्चों की मां हैं लेकिन जिंदगी से खुश नहीं हैं. प्लबिता कॉलेज छात्रा बनी हैं.. जो पिछड़े माहौल में पली बढ़ी है.. लेकिन उसका सपना पॉप सिंगर बनने का है. अहाना ब्यूटीशियन के किरदार में हैं जो अपने प्रेमी के साथ शहर से भागने की फिराक में है और रत्ना पाठक शाह ऐसी विधवा महिला के किरदार में हैं जिसकी उम्र ढल चुकी है.. लेकिन वो अपनी जिंदगी अपने हिसाब से खुल कर जीना चाहती है.



चारों महिला किरदार एक दूसरे से जुदा हैं.. लेकिन चारों ही दोहरी जिंदगी जी रही हैं.. एक जिंदगी वो जो दुनिया से छिपी हुई है यानि बुर्के के भीतर है। और .. दूसरी वो जो दुनिया के सामने है.

अब देखिए कि सेंसर बोर्ड रिलीज की इजाजत क्यों नहीं दे रहा है. सेंसर बोर्ड को एतराज है कि फिल्म लिपस्टिक अंडर माय बुर्का की कहानी में हकीकत कम औऱ कल्पनाएं ज्यादा हैं.


दूसरा एतराज है कि फिल्म में दिखाए गए यौन दृश्य समाज के हिसाब से ठीक नहीं हैं. बोर्ड का तीसरा ऐतराज है कि फिल्म में समाज के कुछ ऐसे हिस्से को भी छुआ गया है जो काफी संवेदनशील हैं


फिल्म के नाम में बुर्का शब्द को जोड़ने पर भी सवाल उठाया गया है. इसके अलावा फिल्म के कई संवादों में आपत्ति और अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल का भी दावा किया गया है.  हालांकि फिल्म के निर्माता और निर्देशक सेंसर बोर्ड के रवैये पर सवाल उठा रहे हैं.


इस पूरे विवाद पर हमने महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली महिलाओँ से भी बात की. जिससे भी बात हुई सवालों के घेरे में सेंसर बोर्ड ही रहा. अब सवाल ये कि क्या सेंसर बोर्ड सांप्रदायिक चश्मे से देख रहा है या यहां भी राजनीतिक दलों की तरह मुस्लिम तुष्टिकरण हो रहा है.