डायरेक्टर: राजा कृष्णा मेनन
रेटिंग: ***
रोज-दौड़ती भागती आज की दुनिया में कभी-कभी ऐसा होता है जब लोग करियर और सपनों को पूरा करने के लिए अपनों को बहुत पीछे छोड़ जाते हैं. इस बात का एहसास उन्हें बहुत बाद में होता है कि सिर्फ पैसों से परिवार खुश नहीं होता बल्कि उन्हें आपका वक्त भी चाहिए होता है. सैफ अली खान की आज रिलीज हुई फिल्म 'शेफ' भी आपको सपनों और अपनों के बीच एक ऐसी ही कहानी दिखाती है. ये फिल्म दिखाती है कि अपने पैशन को पूरा करने के लिए ये जरूरी नहीं है कि आप परिवार को पीछे छोड़ दें बल्कि आप अगर उनकी अहमियत समझते हैं तो उनके साथ और प्यार की बदौलत से आप कुछ भी कर सकते हैं. ये फिल्म को हॉलीवुड की फिल्म ‘शेफ’ से प्रेरणा लेकर बनाई गई है जो कि सिंपल है और दिलचस्प भी. बाप-बेटे ये फैमिली फिल्म आपको ऐसे रोड ट्रिप पर ले जाती है जिसमें डिलिशियस फूड तो है ही साथ ही इसमें बाप-बेटे का प्यार-दुलार और इमोशन भी है.
कहानी-
चांदनी चौक के रोशन कालरा घर से भाग जाता है क्योंकि वो शेफ बनना चाहता है लेकिन घर में इसकी इज़ाजत नहीं. न्यूयॉर्क में वो शेफ बन भी जाता है लेकिन एक दिन एक कस्टमर से हाथापाई की वजह से उसे वहां से निकाल दिया जाता. रोशन अपनी पत्नी से अगल हो चुका है और बेटे अरमान को थोड़ा बहुत टाइम वीडियो कॉल पर देता है. नौकरी से निकाले जाने के बाद वो बेटे से मिलने कोच्चि आता है.
यहां उसे एहसास होता है कि अपने बेटे के साथ गुजारा हुआ पल उसकी ज़िंदगी के सबसे खूबसूरत पल हैं और वो उन्हें खोना नहीं चाहता. रोशन कालरा कहता भी है, ''काम से प्यार...प्यार से काम... इन सब में प्यार को कहीं रह ही गया.'' एक्स-वाइफ राधा मेनन (पद्म प्रिया) के कहने पर वो फूड ट्रक चलाने की प्लॉनिंग करता है. इसके बाद ये फिल्म आपको एक बाप-बेटे के एक इमोशनल जर्नी पर ले जाती है जिससे कुछ लोग खुद भी रिलेट कर पाएंगे.
एक्टिंग
इस फिल्म की सबसे खास बात ये है कि इसमें सैफ अली खान एक हीरो की तरह नहीं बल्कि एक बाप की तरह दिखाया गया है. बाप की भूमिका में सैफ बिल्कुल फिट लगते हैं और एक्टिंग भी अच्छी की है. फिल्म में वो अपने बेटे को चांदनी चौक सहित उन कई जगहों पर ले जाते हैं जहां से उनकी यादें जुड़ी हैं. फिल्म में इन लम्हों को बहुत ही तसल्ली से शूट किया गया है. ये कुछ ऐसे पल हैं जो दिखाते हैं कि 'खाली पैसे देकर कोई बाप नहीं बन जाता.' सैफ के खाना बनाने के सीन को भी बहुत ही आराम से दिखाया गया है. अच्छी बात यही है कि यहां ऐसा नहीं है कि सैफ ने गैस जलाई और डिश तैयार...
इसी साल सैफ फिल्म रंगून में भी नज़र आए थे उनकी भूमिका की तारीफ तो हुई थी लेकिन दर्शकों को ये फिल्म कुछ खास पसंद नहीं आई. हीरो के इमेज से बाहर निकलकर इस फिल्म के जरिए सैफ ने अपने एक्टिंग पर फोकस किया है.
काफी समय बाद इस फिल्म मिलिंद सोमन भी नज़र आए हैं और उन्हें पर्दे पर देखना अच्छा लगा. उनकी भूमिका थोड़ी सी है लेकिन उन्होंने इंप्रेस किया है.
सिंगल मदर की भूमिका में अभिनेत्री पद्मप्रिया जानकीरमन खूब जमी हैं. अकेले घर चलाना और बच्चे को बड़ा करना कोई आसान काम नहीं होता खासकर पति जिम्मेदारियों से भागता हो. ऐसी महिला के अंदर उठ रहे तूफान और हलचल को कई जगहों पर पद्मप्रिया ने अपने चेहरे से बोल जाती हैं. उनके एक्सप्रेशन कमाल के हैं, जब वो हंसती हैं तो खुशी आंखो में दिखती है.
इसके अलावा सैफ के दोस्त की भूमिका में चंदन रॉय सान्याल भी असर छोड़ जाते हैं.
डायरेक्शन
इस फिल्म के डायरेक्टर राजा कृष्णा मेनन हैं जिन्होंने पिछले साल एयरलिफ्ट फिल्म बनाई थी और खूब तारीफें बटोरी थी. करीब दो घंटे की ये फिल्म लंबी तो लगती है लेकिन डायरेक्टर ने सारे सीन को तसल्ली से दिखाया है. कहीं भी कोई जल्दबाजी नहीं है. ऐसा नहीं है कि सीन शुरू होते ही खत्म हो जाते हैं.
कहीं-कहीं बस ये कमी खलती है कि सैफ अली खान इस फिल्म में एक ही डिश बनाते कई बार दिखे हैं. साथ ही फिल्म में कहीं-कहीं कॉमेडी करने की कोशिश की गई है जिसमें हंसी नहीं आती.
क्यों देखें
ये एक फैमिली फिल्म है और देखने लायक है. इसमें पूरा ध्यान खाने और रिलेशन दो ही बातों पर फोकस किया गया है. फिल्म लोगों को आकर्षित करे इसके लिए प्यार, रोमांस, आइटम सॉन्ग इत्यादि जबरदस्ती नहीं डाले गए हैं. ये फिल्म आपको कोच्चि, गोवा और दिल्ली के रोड ट्रिप पर ले जाती है जिसके नज़ारे बहुत ही खूबसूरत हैं. ये एक डिलिशयस फिल्म भी है जिसे आपको परिवार के साथ जरूर देखना चाहिए.