इस वक़्त पूरी दुनिया कोरोना वायरस से लड़ाई में जुटी है. जहां लाखों लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और जान भी गंवा चुके हैं. इस मुश्किल दौर के बीच दुनिया भर के लोगों को उम्मीद है कि कोरोना की वैक्सीन आएगी और फिर कुछ दिनों बाद ज़िंदगी पहले की तरह ही पटरी पर आ जाएगी. कुछ ऐसे ही वतन वापसी की उम्मीद के साथ इससे ज़्यादा ख़तरनाक हालातों में बग़दाद में फंसे बिहार के परिवार की कहानी है Zee 5 पर रिलीज़ हुई फिल्म 'चिंटू का बर्थडे'.


कहानी: अप्रैल 2004, अमेरिका-इराक युद्ध के बीच अमेरिकी सेना को इराक़ में एक साल पूरा हो चुका है. सद्दाम हुसैन पकड़ा जा चुका है और उसके ट्रायल का इंतज़ार है. इस माहौल के बीच भारत सरकार का दावा है कि इराक़ से सारे भारतीयों को वापस भारत लाया जा चुका है. लेकिन बग़दाद में बिहार के रहने वाले वाटर प्यूरीफायर के सेल्समैन मदन तिवारी का परिवार फंसा हुआ है और भारत वापस आने के लगातार प्रयास कर रहा है. बग़दाद में युद्ध के माहौल के बीच तिवारी परिवार अपने बेटे चिंटू (वेदांत राज छिब्बर) का छठवां बर्थडे धूमधाम से मनाना चाहता है. चिंटू के माता-पिता (विनय पाठक और तिलोत्तमा शोम), नानी (सीमा पाहवा) और बहन (बिशा चतुर्वेदी) उसके बर्थडे को यादगार बनाने के लिए प्लान करते हैं.



स्कूल जाने की तैयारी के बीच चिंटू के पिता उसे स्कूल में बांटने के लिए टॉफ़ियां देते हैं. उसकी मां उसके लिए लाए गए नए कपड़ों के बारे में बताती हैं. इसी बीच ख़बर आती है कि बग़दाद में धमाका हो गया है और स्कूल बंद कर दिये गए हैं. इस ख़बर के साथ ही चिंटू उदास हो जाता है. परिवार के लोग उसका बर्थडे घर पर ही धूमधाम से मनाने का फ़ैसला करते हैं. चिंटू के फ़रमाइश के मुताबिक़ घर पर ही केक बनाकर उसके दोस्तों को बुलाए जाने का प्लान होता है. लेकिन बम धमाकों और गोलियों की आवाज़ के बीच एंट्री होती है दो अमेरिकी सैनिकों की जो परिवार को संदिग्ध मानते है. बाहर युद्ध के हालात और घर में दो अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी की बीच क्या मन पाता है चिंटू का बर्थडे ? यही फ़िल्म में बहुत ही बेहतरीन ढंग से दिखाया गया है.


एक्टिंग: फ़िल्म में मुख्य किरदार चिंटू (वेदांत राज छिब्बर) अपनी एक्टिंग से आपको चौंका देगा. मासूमियत भरे वेदांत के अंदाज़ से आप उसके फ़ैन हो जाएंगे. बेटे के बर्थडे के दिन घर में अमेरिकी सैनिकों की ज़्यादती से बेबस बाप के किरदार को विनय पाठक ने बख़ूबी निभाया है. तिलोत्तमा शोम ने चिंटू की मां के किरदार के साथ पूरा न्याय किया है. चिंटू की नानी के किरदार में सीमा पाहवा की परफ़ॉर्मेंस काफ़ी दमदार है. वो बग़दाद में फंसे होने के लिए मदन (विनय पाठक) को ज़िम्मेदार मानती हैं और इस दौरान के डॉयलॉग भी काफ़ी प्रभावित करने वाले हैं.


डायरेक्शन और सिनेमेटोग्राफी: फ़िल्म की कहानी और भी दमदार बनाते हैं डायरेक्शन और सिनेमेटाग्राफी. बिहार की बोली-भाषा और हनुमान चालीसा की बीच सुबह के एक सीन से फ़िल्म की शुरूआत होती है. कुछ देर बाद ही आपको पता चलता है कि यह बग़दाद में फंसा एक भारतीय परिवार है. फ़िल्म की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है आप ख़ुद को उस परिवार के साथ खड़ा महसूस करते हैं. फ़िल्म में कैमरे का शानदार काम भी आपको देखने को मिलेगा.



फ़िल्म की शुरूआत में चिंटू अपने परिवार के बग़दाद आने की कहानी को एनिमेशन के ज़रिए सुनाता है. यह आपको ज़रूर पसंद आएगा. फ़िल्म में चिंटू (वेदांत) का अपने बर्थडे न मनाने के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति को ज़िम्मेदार मानने वाला मासूमियत भरा डायलॉग हो या फिर मदन (विनय पाठक) के ज़िम्मेदारी भरे डायलॉग, सब आपको भावुक कर देंगे.


अमेरिका- इराक युद्ध के हालातों के बीच जटिल परिस्थितियों में फँसे भारतीय परिवार की कहानी को बड़ी आसान ढंग से कह दिया गया है. चिंटू की मासूमियत, उसके मां-बाप की भारत न जाने पाने की बेबसी और उसकी परेशान नानी के किरदारों से सजी यह फ़िल्म आपको ज़रूर पसंद आएगी. इस वीकएंड फ़िल्म को आप जब देखना शुरू करेंगे तो नम आँखों के साथ इसे ख़त्म करके ही उठ पाएंगे. और हाँ, यह फ़िल्म आपको कोरोना वायरस महामारी के बीच सकारात्मक होकर जीने की सीख भी ज़रूर देगी.


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