बहुमुखी प्रतिभा की धनी क्लासिकल सिंगर डॉ. प्रभा अत्रे का 92 साल की उम्र में निधन, भारत सरकार की ओर से कई बार की जा चुकी हैं सम्मानित
Classical Singer Dr Prabha Atre: वो चाहतीं तो सफल डॉक्टर भी बन सकती थीं. लेकिन उन्होंने अपने दिल की सुनी और संगीत को चुना. उनका खुद से वादा था कि वो अंतिम सांस तक गाती रहेंगी.
Classical Singer Dr Prabha Atre: मशहूर क्लासिकल सिंगर डॉ. प्रभा अत्रे का पुणे में उनके आवास पर दिल का दौरा पड़ने से शनिवार 13 जनवरी को निधन हो गया. 92 साल की डॉ. अत्रे ने शास्त्रीय संगीत के किराना घराना का प्रतिनिधित्व करती थीं. उन्हें भारत सरकार की ओर से तीनों पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था. सूत्रों के मुताबिक, ''अत्रे को उनके आवास पर सोते समय दिल का दौरा पड़ा. शहर के कोथरूड इलाके में एक निजी अस्पताल में उन्हें एडमिट कराया गया जहां उन्हें सुबह 5 बजकर 30 मिनट पर मृत घोषित कर दिया गया.''
सूत्र ने बताया कि डॉ. अत्रे के परिवार के कुछ लोग विदेश में रहते हैं. इसलिए उनके आने के बाद ही उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. डॉ. अत्रे का जन्म 13 सितंबर 1932 को हुआ था. वो सिर्फ शास्त्रीय गायिका ही नहीं, बल्कि एक रिसर्चर, संगीतकार और राइटर भी थीं.
बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं डॉ. अत्रे
डॉ. अत्रे ने साइंस और लॉ में ग्रेजुएशन के बाद संगीत में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की थी. जनवरी 2022 में उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. इससे पहले उन्हें 1990 में पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया था और 2002 में पद्म भूषण दिया गया था.
रूढ़ियों से लड़ती रहीं डॉ. अत्रे
क्लासिकल संगीत को जनसुलभ बनाने के लिए डॉ. अत्रे जिंदगी भर रूढ़ियों से लड़ती रही हैं. वो चाहतीं तो सफल डॉक्टर भी बन सकती थीं. लेकिन उन्होंने अपने दिल की सुनी और संगीत को चुना. उनका खुद से वादा था कि वो अंतिम सांस तक गाती रहेंगी. पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से साइंस में ग्रेजुएशन और बाद में विधि कालेज से भी डिग्री ली लेकिन उन्होंने संगीत को ही अपनी साधना माना.
उन्होंने 2022 में देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण पाने के बाद भाषा को दिये इंटरव्यू में कहा था ,‘‘मैं कानून और विज्ञान पढ़ रही थी और सपने में भी नहीं सोचा था कि गायिका बनूंगी. मेरे माता पिता शिक्षाविद थे और मेरी मां की बीमारी से संगीत हमारे घर में आया. वह हारमोनियम सीखती थी और मैं उनके पास बैठती थी. उन्होंने तो संगीत छोड़ दिया लेकिन मुझसे नहीं छूटा.’’ उन्होंने ‘अपूर्व कल्याण’, ‘मधुरकंस’, ‘पटदीप’, ‘मल्हार’, ‘तिलंग’ , ‘भैरव, भीमकली’, ‘रवी भैरव’ जैसे नये रागों की रचना भी की.
उनका कहना था ,‘‘ एक साधक के तौर पर मैं कभी संतुष्ट नहीं हो सकती क्योंकि सीखने का कोई अंत नहीं है. मैं आखिरी सांस तक गाना चाहती हूं और संगीत के अन्य पहलुओं पर भी काम करना चाहती हूं . मैं शास्त्रीय संगीत को आम जनता तक ले जाना चाहती हूं ताकि वे इसे आसानी से सीख सकें क्योंकि ऐसा नहीं हुआ तो शास्त्रीय संगीत बचेगा नहीं.