बाला साहेब ठाकरे के जीवन पर बन रही फिल्म 'ठाकरे' का ट्रेलर रिलीज हो चुका है फिल्म का ट्रेलर अपने टीजर की ही तरह शानदार है. लेकिन फिल्म के ट्रेलर के रिलीज होते ही ये विवादों में भी घिर गए हैं. ये विवाद फिल्म के कुछ डायलॉग्स को लेकर शुरू हुआ है.


'ठाकरे' के ट्रेलर में उस दौर में गर्माए विवादित मुद्दों को भी शामिल किया गया है. जिनमें राम मंदिर का मुद्दा भी शामिल है. फिल्म में विवादित ढांचा विध्वंस और 1992 दंगों का भी जिक्र किया गया है. लेकिन इसमें मुंबई में रहने वाले साउथ इंडियंन्स को लेकर हुए विरोध को भी शामिल किया गया है जिसमें कुछ विवादित डायलॉग्स को लेकर अब विवाद शुरू हो गया है.



फिल्म के मराठी ट्रेलर में 'लुंगी हटाओ पुंगी बजाओ' डायलॉग सुनाई दे रहा है. इसे लेकर साउथ के एक्टर सिद्धार्थ ने विरोध जताते हुए ट्वीट किया. उन्होंने लिखा, 'ठाकरे' फिल्म में नवाजुद्दीन ने उठाओ लुंगी, बजाओ पुंगी डायलॉग दोहराया.. दक्षिण भारतीयों के खिलाफ नफरत फैलाने वाली भाषा... जिस शख्स ने ये बात कही उसे महान बताया जा रहा है.. क्या आप प्रोपगैंडा फैलाकर पैसे कमाना चाहते हैं.. नफरत बेचना बंद करिए..









शिवसेना ने दी धमकी


फिल्म के ट्रेलर लांच के मौके पर राऊत ने यहां बुधवार को मीडिया से कहा, "हमने बालासाहेब को ठीक वैसे ही पेश किया है जैसे वह हैं, जैसे उन्होंने अपने लोगों और राजनीतिक स्थिति पर विचार रखें हैं." उन्होंने कहा, "हमने कुछ भी गढ़ा नहीं है. फिल्म के निर्देशक अभिजीत पनसे ने फिल्म में सबकुछ वास्तविक तरीके से दर्शाया है."


उन्होंने कहा, "कोई भी फिल्म पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता. यह ठाकरे की कहानी है. कैसे कोई उसे रोक सकता है? बालासाहब ने अपने समय में कई लोगों पर प्रतिबंध लगाया. क्या आपलोग इसे भूल गए? कैसे सीबीएफसी यह निर्णय कर सकती है कि बाला साहेब की जिंदगी में क्या सही था या क्या गलत था? केवल परिवार के लोग यह जानते हैं. मैं निश्चिंत हूं कि सेंसर बोर्ड बालासाहेब के दृष्टिकोण को समझेगा. वे समय लेंगे, लेकिन वे समझ जाएंगे."



क्या है 'लुंगी हटाओ पुंगी बजाओ'?



आपको बता दें कि ये विवादित डायलॉग फिल्म के हिंदी ट्रेलर में नहीं मराठी ट्रेलर में सुने जा सकते हैं. बता दें कि दक्षिण भारतीयों के खिलाफ 1960 और 70 के दशक में बाल ठाकरे ने 'लुंगी हटाओ पुंगी बजाओ' अभियान चलाया था. ठाकरे मुंबई में दक्षिण भारतीय लोगों की मौजूदगी के सख्त खिलाफ थे. मुंबई में दक्षिण भारत से आकर नौकरी करने वालों के नाम बाल ठाकरे अपनी मैगजीन में छाप दिया करते थे. ठाकरे की पार्टी के शिव सैनिक तमिल फिल्मों की स्क्रीनिंग का विरोध करते और रेस्टोरेंट में तोड़फोड़ कर देते थे.  इस अभियान का असर हुआ कि बाल ठाकरे मराठियों के बड़े नेता बनकर उभरे. यही नहीं महाराष्ट्र-कर्नाटक बॉर्डर के जिले बेलगाम की जमीन को लेकर भी बाल ठाकरे ने जो लंबी लड़ाई लड़ी उसका जिक्र भी फिल्म में है .




गौर करने वाली बात ये है कि फिल्म ऐसे वक्त रिलीज हो रही है जब देश में राम मंदिर का मुद्दा गरमाया हुआ है. लोकसभा चुनाव सिर पर हैं. शिवसेना फिल्म के जरिये शिवसैनिकों के बीच बाल ठाकरे के व्यक्तित्व और नजरिये को दोबारा जिंदा करना चाहेगी. हिंदू वोट की राजनीति करने वाले उद्धव ठाकरे के लिए ये बड़ा मौका है जबकि बॉलीवुड के लिए दोधारी तलवार है.