Danny Denzongpa Struggle Story: हर साल ना जाने कितने ही लोग 'मायानगरी' मुंबई में फिल्मी दुनिया में अपनी किस्मत आजमाने के लिए आते हैं. हालांकि हर कोई बड़े पर्दे पर सफल नहीं हो पाता है. बॉलीवुड में नाम बनाने के लिए किस्मत और कड़ी मेहनत दोनों का संयोग होना जरुरी है.
आज बॉलीवुड में जो बड़े-बड़े और सफल एक्टर्स हैं वे कभी कड़ा स्ट्रगल करते थे. मुंबई आकर कई सितारों ने अपनी किस्मत चमकाई. 70 और 80 के दशक के मशहूर विलेन डैनी डेन्जोंगपा की कहानी भी कुछ ऐसी ही रही. वे जेब में सिर्फ 1500 रुपये लेकर मुंबई गजल सिंगर बनने आए थे लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था और वे बन गए बॉलीवुड के सबसे खूंखार विलेन में से एक.
जया बच्चन की सलाह पर बदला था नाम
हिंदी सिनेमा के बेहतरीन एक्टर डैनी का जन्म 25 फरवरी, 1948 को गंगटोक (सिक्किम) में हुआ था. डैनी का असली नाम शेरिंग फिंटसो डेंगजोंग्पा है. हालांकि डैनी का नाम लोगों को उच्चारण करने में दिक्क्त होती थी. तब मशहूर एक्ट्रेस जया बच्चन ने उन्हें डैनी नाम का इस्तेमाल करने के लिए कहा. इसके बाद शेरिंग फिंटसो डेंगजोंग्पा बन गए डैनी डेन्जोंगपा.
'मेरे अपने' से किया बॉलीवुड करियर का आगाज
डैनी बड़े पर्दे पर अपने दौर में विलेन के किरदार निभाते रहे. हालांकि उन्होंने फिल्मी दुनिया में अपना आगाज पॉजिटिव किरदार से किया था. साल 1971 में आई फिल्म 'मेरे अपने' में वे पॉजिटिव रोल में देखने को मिले थे. वहीं साल 1973 की फिल्म 'धुंध' में उन्होंने पहली बार निगेटिव रोल प्ले किया था.
बता दें कि डैनी ने साल 1990 तक अपने करियर के 20 साल पूरे होने से पहले ही 190 फिल्में कर ली थी. वे लगभग हर फिल्म में खूंखार विलेन के किरदार में नजर आते थे. कई बार तो उनका बेहतरीन अभिनय फिल्म के लीड एक्टर पर भी भारी पड़ता था. कांचा चीना, बख्तावर और खुदा बख्श जैसे यादगार किरदार निभाकर वे बॉलीवुड के सबसे खूंखार विलेन में से एक के रूप में पहचान बनाने में सफल रहे.
पद्मश्री से सम्मानित हो चुके हैं डैनी
डैनी डेन्जोंगपा को हिंदी सिनेमा में दिए गए उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने देश के चौथे सबसे ऊंचे नागरिक सम्मान 'पद्मश्री' से भी नवाजा है. डैनी को साल 2003 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.
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