(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Pran Death Anniversary: गलत लत ने सिनेमा में फूंके थे 'प्राण', इतने बड़े विलेन बने कि असल जिंदगी में भी कांपते थे लोग
Pran Death Anniversary: हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में विलेन तो तमाम हुए, लेकिन प्राण जैसा विलेन न कभी हुआ और शायद ही कभी होगा. 2013 में 12 जुलाई के दिन उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था.
बात हिंदी फिल्मों की हो तो उनमें हीरो-हीरोइन का होना लाजिमी है, लेकिन एक कमी पूरी फिल्म को चौपट कर सकती है. यह विलेन ही है, जो किसी भी फिल्म में जान फूंक देता है. हीरो को हीरो होने का एहसास दिलाता है और विलेन प्राण जैसा हो तो कहना ही किया. 12 फरवरी 1920 के दिन पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में जन्मे प्राण कृष्ण सिकंद ने एक्टिंग के बारे में तो कभी सोचा भी नहीं था. पुण्यतिथि के मौके पर आइए जानते हैं कि बॉलीवुड को कैसे मिले थे 'प्राण'?
फ्यूचर को लेकर नहीं थी कोई प्लानिंग
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि प्राण अपनी जिंदगी में कुछ खास करना चाहते थे, लेकिन यह पता ही नहीं था कि उन्हें करना क्या है? पढ़ाई-लिखाई में उनका मन नहीं लगा तो मैट्रिक के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी. शुरुआत में उन्होंने फोटोग्राफर बनने के बारे में सोचा और एक स्टूडियो में नौकरी कर ली. पहले शिमला पहुंचे और बाद में लाहौर का रुख कर लिया.
गलत लत ने सिनेमा में फूंके 'प्राण'
बड़े पर्दे पर अक्सर सिगार के धुएं से छल्ले बनाने वाले प्राण को सिगरेट पीने की आदत थी. इसी आदत ने उन्हें सिनेमा की चौखट का रास्ता दिखा दिया. दरअसल, एक बार वह पान की दुकान के सामने बड़े स्टाइल से सिगरेट का धुआं उड़ा रहे थे. उस दौरान पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री के लेखक मोहम्मद वली भी वहां मौजूद थे. वह प्राण का अंदाज देखकर प्रभावित हो गए. उन्होंने प्राण को अगले दिन मिलने के लिए बुलाया, लेकिन वह नहीं गए, क्योंकि एक्टिंग में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी. कुछ दिन बाद मोहम्मद वली की मुलाकात प्राण से दोबारा हुई. इस बार उनके ऑफर को प्राण ठुकरा नहीं पाए और सिनेमा को प्राण मिल गए.
असल जिंदगी में भी विलेन समझते थे लोग
प्राण ने 1940 में आई फिल्म यमला जट से डेब्यू किया, जिसके बाद प्राण ने कभी मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने खलनायकों के किरदार को पर्दे पर इतनी बेहतरीन तरीके से उतारा कि असल जिंदगी में भी लोग उन्हें विलेन समझने लगे. आलम यह था कि जब वह सड़कों से गुजरते तो लोग उन्हें 'ओ बदमाश', 'ओ लफंगे', 'अरे गुंडे' कहकर फब्तियां कसते थे. वहीं, जब वह बड़े पर्दे पर नजर आते थे तो बच्चे अपनी मां के पल्लू में मुंह छिपा लेते थे.