Kaifi Azmi Death Anniversary: 11 साल के कैफी ने कर दिखाया था ऐसा काम, पिता भी रह गए थे हैरान
Kaifi Azmi: काबिलियत किसी पहचान की मोहताज नहीं होती. वह तो उस कस्तूरी की तरह है, जिसकी महक खुद-ब-खुद फिजां में फैल जाती है. कैफी आजमी की शोहरत भी इसी अंदाज में पूरे देश में फैली थी.
Kaifi Azmi Unknown Facts: कभी उन्होंने कहा 'मिलो न तुम तो हम घबराएं' तो कभी वह 'ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं' कहते नजर आए. दरअसल, बात हो रही है अपने जमाने के मशहूर शायर और हिंदी फिल्म लिरिसिस्ट कैफी आजमी की, जिनकी आवाज आज भी फिजा में गूंजती है. आज कैफी साहब की डेथ एनिवर्सरी है. ऐसे में उनके उन किस्सों को याद करते हैं, जिनकी चर्चा आज भी गाहे-बगाहे हो ही जाती है.
आजादी की लड़ाई के लिए छोड़ी पढ़ाई
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में 14 फरवरी के दिन जन्मे कैफी आजमी का असली नाम अख्तर हुसैन रिजवी था. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के वक्त उन्होंने पर्शियन और उर्दू की पढ़ाई छोड़ दी थी. उस दौरान वह कवि के रूप में काफी मशहूर हो गए थे. कैफी ने शौकत आजमी से शादी की, जिनकी बेटी बॉलीवुड एक्ट्रेस शबाना आजमी हैं.
महज 11 साल की उम्र में किया यह कारनामा
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जब कैफी आजमी महज 11 साल के थे, उस वक्त उन्होंने ऐसा कारनामा कर दिखाया कि हर कोई हैरान रह गया था. यहां तक कि उनके पिता को भी विश्वास नहीं हुआ था. दरअसल, कैफी ने महज 11 साल की उम्र में ही अपनी पहली गजल 'इतना तो जिंदगी में किसी के खलल पड़े' लिखी थी. इसके बाद वह एक मुशायरे में पहुंचे और अपनी गजलों से समां बांध दिया. ऐसे में उनके पिता को लगा कि उन्होंने अपने बड़े भाई की गजलें पढ़ दीं. उनके पिता ने उनका टेस्ट लिया, जिसमें कैफी आजमी पास हो गए. कैफी की यह गजल पूरे देश में छा गई थी.
हीर रांझा ने दिलाई शोहरत
कैफी आजमी ने फिल्मों में बातैर लिरिसिस्ट, राइटर और एक्टर भी काम किया. उन्होंने फिल्म बुजदिल के लिए सबसे पहले लिरिक्स लिखे थे. वहीं, हीर रांझा के डायलॉग्स से उन्हें काफी शोहरत मिली थी. इस फिल्म के सभी डायलॉग्स शायरी के रूप में थे. बता दें कि कैफी आजमी को देश के सबसे प्रतिष्ठित नागरिक अवॉर्ड पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी अवॉर्ड, 'आवारा सजदे' रचना के लिए साहित्य अकादमी अवॉर्ड फॉर उर्दू, महाराष्ट्र उर्दू अकादमी का स्पेशल अवॉर्ड, सोवियत लैंड नेहरू अवॉर्ड, ऐफ्रो-एशियन राइटर असोसिएशन की तरफ से लोटस अवॉर्ड और राष्ट्रीय एकता के लिए राष्ट्रपति अवॉर्ड भी मिला था. 1998 में उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने ज्ञानेश्वर अवॉर्ड दिया. इसके अलावा उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए साहित्य अकादमी फेलोशिप भी हासिल हुई थी.