स्टारकास्ट : दीपिका पादुकोण, विक्रांत मेस्सी


डायरेक्टर : मेघना गुलजार


रेटिंग: 3.5 


दीपिका पादुकोण की फिल्म 'छपाक' का चाहें जितना विरोध हो लेकिन हकीकत यही है कि उन्होंने हमारे बीच से ही एक ऐसी कहानी उठाई है जिसे कहना जरुरी है, देखना जरूरी है. फिल्म देखते वक्त दीपिका के चेहरे पर पड़ीं तेजाब की छींटे दर्शकों पर भी पड़ती हैं, पर्दे पर उभरा वो दर्द दर्शकों के दिल तक पहुंचता है.


इसमें एक डायलॉग है कि 'एसिड पहले दिमाग में फैलता है फिर उसे किसी के चेहरे पर कोई फेंकता है.' सवाल यही है कि आखिर एक समाज के तौर पर हम कहां जा रहे हैं. कैसे कोई इतना नफरत अपने अंदर भर लेता है कि वो एसिड अटैक करने की सोच लेता है. 


कहानी


दीपिका की ये फिल्म एसिड सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी दिखाती है. 2005 में लक्ष्मी अग्रवाल पर एक 32 साल के शख्स ने सिर्फ इसलिए एसिड फेंक दिया क्योंकि उन्होंने उसके प्रपोजल को ठुकरा दिया था. इसके बाद लक्ष्मी अग्रवाल की सात बार सर्जरी हुई.


डायरेक्शन


डायरेक्टर मेघना गुलजार ने फिल्म को सधे तरीके से रखा है. इस सेंसेटिव टॉपिक को उन्होंने फिल्मी नहीं बनाया है. इसमें वो मुद्दे को उठाती भी हैं, दिखाती भी हैं और दर्शकों की दिलचस्पी भी बनी रहती हैं. एसिड अटैक विक्टिम के दर्द को जब फिल्म में दिखाया जाता है तो वो भयावह लगता है.


मेघना ने फिल्म को डॉक्यूमेंट्री ना बनाकर कुछ इस तरीके से फिल्माया है कि आम जनता भी देख सके. किरदार का नाम लक्ष्मी की जगह मालती रखा गया है. इसमें शुरुआत में ही दिखाया जाता है कि मालती को नौकरी के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है. कई जगहों से उसे सिर्फ इसलिए नौकरी नहीं दी जाती क्योंकि उस पर एसिड अटैक हो चुका है.



मालती की कहानी सिर्फ इतनी नहीं है कि उन पर एसिड अटैक हुआ. इस अटैक के बाद लक्ष्मी अग्रवाल ने एसिड बैन को लेकर कानूनी लड़ाई भी लड़ी. इसमें एनजीओ चलाने वाले अमोल (विक्रांत मेस्सी) उसका साथ देते हैं.


फिल्म में मालती कहती है, 'कितना अच्छा होता...अगर एसिड बिकता ही नहीं, मिलता ही नहीं तो फिकता भी नहीं'.... फिल्म देखते वक्त ये लाइन सीधे दिल में घाव करती है और यही पूरी फिल्म का सार है.


एक्टिंग


दीपिका ही फिल्म की जान हैं. उनके बारे में ये कहा जाता है कि वो जब पर्दे पर आती हैं तो बाकी कोई दिखाई भी नहीं देता. ऐसा यहां भी है. वो लक्ष्मी अग्रवाल को पर्दे पर जीवंत कर देती हैं और हर दर्द महसूस करा जाती हैं. कई जगह तो वो बिल्कुल ही लक्ष्मी अग्रवाल जैसी दिखती हैं.  ये फिल्म सिर्फ दर्द नहीं दिखाती बल्कि ये भी सीखाती है कि ज़िंदगी चलने का नाम है जो है उसे सेलिब्रेट करना चाहिए.


विक्रांत मेस्सी अपनी भूमिका में दमदार हैं. उन्हें देखकर दीपिका एक सीन में उनसे कहती हैं कि 'कभी-कभी ऐसा लगता है कि एसिड मुझपर नहीं आप पर फेंका गया है...' विक्रांत का यही आक्रोश उनके चेहरे पर हमेशा दिखाई देता है.


म्यूजिक


फिल्म का टाइटल सॉन्ग बहुत ही पावरफुल है. इसके बोल गुलजार ने लिखे हैं जिसकी लाइन है, 'चंद छींटें उड़ा के जो गया छपाक से पहचान ले गया'. अरिजित सिंह की आवाज में ये गाना फिल्म के हर सीन को बहुत सपोर्ट करता है.