Flashback Friday: छोटे पर्दे में किसी कलाकार को वैसा फेम मिलना जैसा अमिताभ बच्चन को बड़े पर्दे से मिला, बिल्कुल वैसा ही है जैसे गली क्रिकेट खेलने वाले को सचिन तेंदुलकर जैसा फेम मिल जाए. ऐसा कारनामा कुछ ही लोग कर पाए हैं. उनमें से एक हैं दीपिका चिखलिया या यूं कहें 'मां जानकी'.
1987 में आया धारावाहिक 'रामायण' कालजयी बन गया. जहां फिल्मों में मारधाड़ जैसी चीजें पसंद की जा रही थीं, वहीं रामानंद सागर के 'रामायण' ने बच्चों, बुजुर्ग और खासकर यूथ को मोरल वैल्यू सिखाने वाले इंस्टीट्यूशन की तरह काम किया. इस धारावाहिक में अरुण गोविल और दीपिका चिखलिया दोनों राम और सीता के किरदारों में दिखे. इसके बाद दोनों की जिंदगियों में इस रोल का इतना असर पड़ा कि इन दोनों एक्टर्स को लोग राम और सीता की तरह ही देखने लगे. अरुण गोविल पर हम अपने पिछले फ्लैशबैक फ्राइडे में बात कर चुके हैं. इसलिए, आज बात सीता यानी दीपिका चिखलिया पर कर लेते हैं.
कैसे मिला रामायण में रोल?
दीपिका चिखलिया ने 'आमने-सामने' में अपने इंटरव्यू के दौरान सीता के किरदार में उन्हें कास्ट करने से जुड़ी कई बातें बताईं. उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें ये रोल मिला. दीपिका ने बताया कि वो रामानंद सागर के लिए 'दादा दादी कहानी' और 'विक्रम बेताल' जैसे सीरियल्स की शूटिंग कर रही थीं. इनमें से एक की शूटिंग रामानंद सागर के घर पर ही चल रही थी. तभी उनके पास रामानंद सागर का फोन आया.
दीपिका बताती हैं कि रामानंद सागर ने मुझसे कहा कि स्क्रीनटेस्ट हो रहा आ जाओ. जब दीपिका वहां पहुचीं तो वहां करीब 30-40 और लड़कियां थीं, जो स्क्रीनटेस्ट के लिए आईं थीं. इसके बाद, फिर से स्क्रीनटेस्ट हुआ जिसमें से कई लड़कियों की छटनी हो गई. लेकिन जो लड़कियां बचीं उनमें से एक दीपिका भी थीं. इसके बाद भी छटनी के लिए और भी स्क्रीनटेस्ट होते गए और दीपिका सबमें पास होती गईं. इसके बाद भी दीपिका बताती हैं कि लेकिन मुझे साफ नहीं बताया गया कि क्या हुआ, लेकिन कुछ दिनों बाद मुझे कहा गया कि आ जाए तुम ही सीता बनोगी.
सीता बनने से पहले दीपिका ने किया है बी ग्रेड फिल्मों में भी काम
इससे पहले कि दीपिका को सीता के रूप में पहचान मिलती, वो कई फिल्मों का हिस्सा बन चुकी थीं. दीपिका ने 1983 में 'सुन मेरी लैला' से डेब्यू किया था. इसके बाद, उन्होंने 'चीख' और 'रात के अंधेरे में' नाम की बी ग्रेड हॉरर फिल्मों में भी काम किया. इन फिल्मों में उन पर बाथटब सीन भी फिल्माया गया था. ये दोनों फिल्में 1983 और 1987 में आई थीं. तब दीपिका को पहचान नहीं मिली, क्योंकि फिल्में सफल फिल्मों में शुमार नहीं हो पाई थीं. हालांकि, रामायण में मां जानकी के किरदार के बाद उनकी पूरी जिंदगी बदल गई. हालांकि, रामायण के दौरान और उसके बाद भी उन्होंने चंकी पांडे और राजेश खन्ना जैसे एक्टर्स के साथ फिल्में कीं, लेकिन वो असफल साबित हुईं.
दीपिका के पैर बच्चे ही नहीं बुजुर्ग भी छूते थे
दीपिका ने इंटरव्यू के दौरान बताया था कि सीता के किरदार को निभाने के बाद उनके पैर सिर्फ बच्चे ही नहीं बुजुर्ग भी छूने लगे. उन्होंने बताया शुरुआत में मुझे बहुत नर्वसनेस होती थी, क्योंकि मेरे दादा की उम्र के लोग मेरे पैर मां सीता समझकर छूने लगे थे. लेकिन बाद में सब कुछ सामान्य हो गया. उन्होंने हाल में ही एक इंटरव्यू के दौरान ये भी बताया था कि आज भी कई बार लोग उन्हें मां सीता के रूप में ही देखते हैं. बेशक पहले जैसा नहीं है, लेकिन फिर भी कई बार ऐसा होता है कि लोग उनके पैर छूने लग जाते हैं.
जिस भी चीज का उद्घाटन करती थीं वो हो जाता था हिट
दीपिका ने 'आमने-सामने' के इंटरव्यू के दौरान ये भी बताया था कि लोग उन्हें सीता के रोल के बाद अपनी दुकानों या फिल्मों के उद्घाटन के लिए बुलाने लगे थे. उन्होंने ये भी बताया कि ये ऊपर वाले की कृपा है कि वो जिस भी चीज को उद्घाटन करती हैं, वो हिट हो जाता है. वो चाहे दुकान हो या कोई फिल्म.
पॉपुलैरिटी ऐसी थी कि कांग्रेस के दिग्गज नेता से दोगुना वोट पाकर जीती थीं सांसदी
दीपिका ने 1991 में भारतीय जनता पार्टी से चुनाव भी लड़ा था और उन्हें वडोदरा सीट से सांसद भी चुना गया था. उनकी पॉपुलैरिटी का आलम ये था कि उन्होंने अपने सामने खड़े मजबूत उम्मीदवार को मात्र 26 साल की उम्र में चुनाव हराया था. उनके सामने कांग्रेस के रंजीत सिंह गायकवाड़ थे, जो दो बार से कांग्रेस से सांसद भी रह चुके थे. लेकिन जब दीपिका को उनके सामने उतारा गया तो लोगों ने रंजीत सिंह की बजाय मां सीता को तवज्जो दी. दीपिका को करीब 49 प्रतिशत वोट मिले थे और बीजेपी के लिए ये बड़ी चीज थी क्योंकि कांग्रेस के गढ़ में पहली बार दीपिका की वजह से कमल खिला था.
दीपिका उन चुनिंदा एक्टर्स में से हैं जिन्हें अयोध्या में राम मंदिर प्रतिष्ठा समारोह में इनवाइट किया गया है. उन्होंने इस बात की खुशखबरी इनविटेशन कार्ड शेयर कर सबके साथ शेयर भी की थी.