नई दिल्लीः आज सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसके तहत कहा गया कि सेक्सुअल रुझान प्रकृतिक है, इस आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा की निजता का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है. धारा 377 इसका हनन करती है. इसके साथ ही आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंध देश में अपराध के दायरे से बाहर हो गए.


इस फैसले पर आज जहां एलजीबीटी कम्यूनिटी में खुशी की लहर दौड़ गई वहीं कई दिग्गज सिलेब्रिटीज ने भी इस फैसले पर खुशी जताई. मशहूर टीवी सीरियल और फिल्म निर्माता एकता कपूर ने इस फैसले पर कहा कि "अगर आप वयस्क हैं और एक दूसरे की सहमति से संबंध बनाते हैं तो प्यार करना कोई अपराध नहीं है."


एकता कपूर के साथ फिल्म एक्ट्रेस निम्रत कौर ने भी आज एससी के फैसले पर खुशी जताते हुए ट्वीट किया कि RIP धारा 377, हैप्पी बर्थडे 2018, एक जैसी जिंदगियां और एक जैसा प्यार, आज भारतीयों पर गर्व है.





फैसले पर कई बॉलीवुड सेलिब्रिटीज ने भी जताई खुशी

करन जौहर ने ट्विटर पर लिखा की ''आज बहुत गर्व हो रहा है, ऐतिहासिक फैसला! ऐसा लग रहा है जैसे देश को फिर से ऑक्सीजन मिल गई है".


फरहान अख्तर ने लिखा "बाय बाय 377 थैंक्यू सुप्रीम कोर्ट",


तापसी पन्नू ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा "2018 का मेरा भारत!!! दिल का छू लेने वाला फैसला".

पांच जजों की संविधान पीठ ने जैसे ही धारा 377 पर फैसला देते हुए कहा की, हर व्यक्ति को गरिमा से जीने का हक है, सर्वोच्च न्यायालय का फैसला सुनकर LGBT समुदाय में खुशी की लहर दौड़ गई. सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला नृत्यांगना नवतेज जौहर, व्यवसायी आयशा कपूर, पत्रकार सुनील मेहरा, शेफ ऋतु डालमिया, केशव सूरीऔर IIT के पूर्व छात्रों की याचिका पर दिया था. इस याचिका में धारा 377 की संवैधानिक मान्यता को चुनौती दी गई थी.


क्या था सुप्रीम कोर्ट का पूरा फैसला


ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि दो वयस्कों के बीच सहमति से एकांत में बने संबंध अब अपराध नहीं है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा समय के साथ बदलाव ज़रूरी है, संविधान में बदलाव करने की ज़रूरत इस वजह से भी है जिससे कि समाज में बदलाव लाया जा सके. नैतिकता का सिद्धांत कई बार बहुमतवाद से प्रभावित होता है लेकिन छोटे तबके को बहुमत के तरीके से जीने को विवश नहीं किया जा सकता.'' अदालतों को व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि गरिमा के साथ जीने के अधिकार को मौलिक अधिकार के तौर पर मान्यता दी गई है.'' खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पाना मरने के समान है. एलजीबीटी समुदाय को अन्य नागरिकों की तरह समान मानवीय और मौलिक अधिकार हैं.'' धारा 377 एलजीबीटी के सदस्यों को परेशान करने का हथियार था, जिसके कारण इससे भेदभाव होता है.''