मुंबई: सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) को सेंसर बोर्ड के तौर पर भी जाना जाता है. अगर किसी फिल्म के कंटेंट, सीन्स, डायलॉग या फिल्म में दिखाई गई किसी भी घटना को लेकर कोई विवाद हो, तो फिल्म के निर्माता और निर्देशक के पास फिल्म सर्टिफिकेशन एपैलेट ट्रिब्यूनल (FCAT) के पास जाने और वहां अपील कर राहत पाने का विकल्प हुआ करता था. मगर अब एक फैसले के तहत इस विकल्प को खत्म कर दिया गया है. ट्रिब्यूनल के अस्तित्व को तत्काल प्रभाव से खत्म कर दिये जाने‌ से बॉलीवुड में नाराजगी है.


उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार द्वारा किये गये संशोधन के अनुसार, अगर किसी भी निर्माता या और निर्देशक को उनकी फिल्म से संबंधित सेंसर बोर्ड के फैसले पर आपत्ति है तो अब उन्हें ट्रिब्यूनल की बजाय सीधे तौर पर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा. कानून एवं न्याय मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी करते हुए ट्रिब्यूनल को तत्काल प्रभाव से खत्म‌ करने और इस बदलाव को त्वरित रूप से लागू करने की जानकारी मंगलवार को दी.


गौरतलब है कि बॉलीवुड में ऐसे ढेरों उदाहरण मिल जाएंगे जब किसी फिल्म में तमाम तरह के 'आपत्तिजनक' सीन्स को काटे जाने, विवादित डायलॉग्स को हटाए जाने या फिर फिल्म को 'ए' सर्टिफिकेट दिये जाने को लेकर विवाद हुआ हो. ऐसे में कई बार ट्रिब्यूनल ने सेंसर बोर्ड के फैसले को उलटते हुए या फिर उन्हें संशोधित करते हुए मेकर्स के हक में फैसला दिया है. पंजाब में ड्रग्स की समस्या पर बनी फिल्म‌ 'उड़ता पंजाब' को लेकर सेंसर बोर्ड की आपत्ति के बाद ये मसला भी ट्रिब्यूनल में गया था, जहां से फिल्म को बड़ी राहत मिली थी. अनुराग कश्यप द्वारा प्रोड्यूस या निर्देशित कई और फिल्में भी ट्रिब्यूनल से राहत पा चुकीं हैं.


अलंकृता श्रीवास्तव की फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' के सर्टिफिकेशन व रिलीज का विवाद भी FCAT के दरवाजे तक गया था. नवाजुद्दीन सिद्दीकी स्टारर और कुशान नंदी द्वारा निर्देशित फिल्म 'बाबूमोशाय बंदूकबाज' की रिलीज से जुड़ा विवाद भी FCAT ने सुलाझाया था.


ट्रिब्यूनल को खत्म किये जाने के फैसले पर सवाल उठाते हुए हंसल मेहता ने ट्विटर पर लिखा, "क्या हाईकोर्ट के पास फिल्म सर्टिफिकेशन से जुड़ी शिकायतों को सुनने के लिए बहुत वक्त है? कितने फिल्म निर्माताओं के पास मामलों को हाई कोर्ट तक ले जाने के संसाधन होंगे? FCAT को इस तरह से खत्म‌ किया जाना एकतरफा और बंधनकारी फैसला है. इसे खत्म करने का फैसला लेने का समय भी इतना दुर्भाग्यपूर्ण क्यों है? ये फैसला लिया ही क्यों गया?"



विशाल भारद्वाज ने भी इस फैसले पर अपनी नाराजगी जताते हुए ट्विटर पर लिखा, "सिनेमा के लिए ये दिन बेहद अफसोसजनक है." जानी-मानी निर्माता गुनीत मोंगा ने भी सोशल मीडिया पर‌ लिखा, "इस तरह की घटनाएं आखिरकार कैसे हो जाती हैं? ऐसे फैसले कौन लेता है?"



अभिनेत्री रिचा चड्ढा ने इस फैसले के विरोध में कुछ लिखा तो नहीं मगर उन्होंने विशाल भारद्वाज के ट्वीट पर‌ प्रतिक्रिया स्वरूप एक‌ मीम‌ जरूर शेयर किया है जिससे साफ जाहिर होता है कि वो भी इस फैसले से कितनी नाखुश हैं.


उल्लेखनीय है कि संवैधानिक अधिकार रखने वाले ट्रिब्यूनल की स्थापना 1983 में सिनेमाटोग्राफ एक्ट (1952) के‌ तहत की गई थी.


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