(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
मूवी रिव्यू: अपने रिस्क पर देखें श्रद्धा कपूर की 'हसीना पारकर'
Haseena Parkar Review: कोर्ट रूम में बहस इस बात पर शुरू होती है कि क्या हसीना पारकर ने अपने भाई दाऊद इब्राहिम के नाम का गलत इस्तेमाल किया? और पूरी फिल्म के जरिए दर्शकों को ये जवाब दिया जाता है कि 'नहीं'. ऐसी फिल्मों में दूसरा पहलू दिखाना बहुत जरूरी होता है. कोर्ट रूम में इतनी बचकानी बहस चलती है कि बर्दाश्त करना मुश्किल.
गैंगेस्टर दाउद इब्राहिम पर कई फिल्में बन चुकी हैं और इस बार बॉलीवुड डायरेक्टर अपूर्व लखिया ने उनकी बहन 'हसीना पारकार' के जीवन पर फिल्म बनाने का फैसला किया. ये फिल्म आज रिलीज हो गई है जिसे देखने के बाद यही पूछा जा सकता है कि ये फिल्म बनाई ही क्यों? जाहिर सी बात है कि अगर बायोपिक बन रही है तो उसमें सब कुछ 'हसीना पारकर' के नजरिए से होगा. हालांकि इस बार से डायरेक्टर ने पहले ही मना कर दिया था. इस फिल्म को प्रमोट करने एबीपी न्यूज़ रूप पहुंचे अपूर्व ने कहा था कि इस फिल्म में सिर्फ हसीना का पक्ष नहीं बल्कि दूसरे पहलू को भी ध्यान में रखा गया है. अपूर्वा का कहना था, 'मैं फिल्म में न्यूट्रल रहा हूं. किसी भी सिचुएशन के दो प्वाइंट ऑफ व्यू देना जरूरी है और वो मैंने दिया है.''
इस फिल्म की विलेन है पुलिस
अब फिल्म की बात करें तो इसमें जो दिखाया गया है उसके मुताबिक पुलिस इस फिल्म की विलेन है. इस फिल्म में पुलिस के लिए जो डायलॉग लिखे गए हैं वो इस बात को और पुख्ता करते हैं. हसीना पारकर से पूछताछ के अलावा बहुत सारे सीन को इस तरीके से फिल्माया गया है जैसे पुलिस उनपर ज्यादती कर रही हो. ऐसा बिल्कुल हुआ होगा लेकिन फिल्म में पुलिस का पहलू भी दिखाते तो कुछ नया होता. इसके जरिए हसीना पारकर के साथ सहानुभूति जताने की कोशिश की गई है कि उसे हर बार सिर्फ इसलिए कठघरें में खड़ा किया गया क्योंकि वो गैंगेस्टर दाऊद इब्राहिम की बहन है.
कोर्ट रूम ड्रामा को बर्दाश्त करना है मुश्किल
कोर्ट रूम में बहस इस बात पर शुरू होती है कि क्या हसीना पारकर ने अपने भाई दाऊद इब्राहिम के नाम का गलत इस्तेमाल किया? और पूरी फिल्म के जरिए दर्शकों को ये जवाब दिया जाता है कि 'नहीं'. ऐसी फिल्मों में दूसरा पहलू दिखाना बहुत जरूरी होता है. कोर्ट रूम में इतनी बचकानी बहस चलती है कि बर्दाश्त करना मुश्किल. हद तो ये है कि हसीना पारकर की दलीलों को सुनकर जज़ को भी उनसे सहानुभूति हो जाती है.
फिल्म में हसीना के नज़रिए से दाऊद इब्राहिम की ज़िंदगी के बारे में भी दिखाया गया है. हसीना कोर्ट में जिरह के वक्त कोर्ट में कहती है, ''आपने मेेरे भाई के बारे में पढ़ा है और मैंने अपने भाई को पढ़ा है वो ऐसा (मुंबई धमाके) कर ही नहीं सकता.'' और इस तरीके से फिल्म में हसीना की तरफ से दाऊद को क्लीन चिट मिल जाती है.
इस फिल्म में एक दो चीजें ऐसी भी मिली है जो आसानी से गले से नहीं उतरतीं. फर्स्ट हाफ में ये दिखाया गया है कि हसीना पारकर जो मारपीट देखकर डर जाती है सहम जाती है उसका इतना अचानक रूप बदल जाता है कि वो गुंडो को भी एक हाथ में सीधा कर देती है.
एक्टिंग
इस फिल्म से श्रद्धा कपूर के भाई सिद्धान्त कपूर ने डेब्यू किया है. बॉलीवुड में इससे पहले दाऊद की भूमिका में इमरान हाशमी (Once Upon a Time in Mumbai ) सहित कई बड़े एक्टर्स नज़र आ चुके हैं. ये सिद्धान्त के लिए सुनहरा मौका था लेकिन वो चूक गए हैं. फिल्म में श्रद्धा कपूर के पति की भूमिका में अंकुर भाटिया ने इंप्रेस किया है. भाटिया को जितनी भी स्क्रीन प्रेजेंस मिली है उसमें उन्होंने इन बड़े सितारों के बीच खुद की जगह बना ली है.
इसके बाद अगर लीड कैरेक्टर श्रद्धा कपूर की बात करें तो वो बिल्कुल भी हसीना की भूमिका में फिट नहीं हैं. उन्होंने बॉडी लैंग्वेज हसीना जैसी करने की कोशिश की है लेकिन जैसे ही वह बोलती हैं सब बनावटी लगता है. इंटरवल तक तो फिल्म देखी जा सकती है लेकिन उसके बाद तो इसे बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है.
क्यों देखें/ना देखें/क्या देखें
ये फिल्म अगर आप श्रद्धा कपूर के फैन हैं तो इस फिल्म को देखने का रिस्क ले सकते हैं. इसके अलावा इस हफ्ते संजय दत्त की फिल्म 'भूमि' भी रिलीज हुई है जिसे एबीपी न्यूज़ ने अपने रिव्यू में कुछ खास नहीं बताया है. अगर आप इस वीकेंड कुछ बेहतरीन देखना चाहते हैं तो राजकुमार राव की फिल्म न्यूटन देखिए जिसकी हर तरफ तारीफ हो रही है और ये फिल्म ऑस्कर के लिए भी नॉमिनेट हो चुकी है.