Manikarnika The Queen Of Jhansi : कंगना रनौत अभिनीत फिल्म इन मणिकर्णिका इन दिनों बॉक्स ऑफिस पर जमकर कमाई कर रही है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस फिल्म का नाम 'मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी' क्यों रखा गया.


झांसी की रानी का नाम तो रानी लक्ष्मीबाई था, अब सवाल यह उठता है कि अगर झांसी की रानी लक्ष्मी बाई थी तो फिर मणिकर्णिका कौन थी.. और यदि ये दोनों ही नाम एक ही शख्स के हैं तो आखिर उन्होंने अपना नाम क्यों बदला. आज हम आपको बता रहे हैं कि आखिर मणिकर्णिका रानी लक्ष्मीबाई कब और क्यों बन गई.


आज़ादी की लड़ाई की पहली वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई का जन्म 1828 में वाराणसी के अस्सी घाट के नज़दीक अस्सी मोहल्ले में हुआ था. उनके पिता का नाम मोरेपंत और मां का नाम भागीरथी बाई था. लक्ष्मी बाई के पिता ने उनका नाम मणिकर्णिका रखा, लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था. महज़ 4 साल की उम्र में मणिकर्णिका उर्फ मनु अपनी जन्भूमि को हमेशा के लिए छोड़ कर अपनी मां और पिता के साथ बिठूर चली गई थीं.


 


कानपुर के पास बिठूर का गंगा तट और बिठूर के गंगा तट पर था पेशवा बाजीराव का महल. बाजीराव की अपनी कोई संतान नहीं थी लिहाज़ा वंश को आगे बढ़ाने लिए उन्होंने नानासाहेब को गोद लिया था. नानासाहेब की उम्र मनु यानि लक्ष्मी बाई से कोई 11 साल ज़्यादा थी, लेकिन लक्ष्मीबाई का बचपन उन्हीं के साथ खेलते-कूदते बीतने लगा.


साल 1842 में मणिकर्णिका जब महज़ 14 साल की थीं तब राजा गंगाधर राव से झांसी के गणेश मंदिर में उनकी शादी हो गई. उस दौर में ये प्रथा हुआ करती थी कि शादी के बाद लड़की को ससुरालवालों की ओर से एक नया नाम दिया जाए. इसी के चलते शादी के बाद मणिकर्णिका के पति और झांसी के राजा गंगाधर राव ने उनका नाम लक्ष्मी बाई रख दिया.



झांसी के राजमहल में 1851 में लक्ष्मी बाई मां बनीं. महारानी लक्ष्मी बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया. राजमहल में खुशियां लौट आईं, लेकिन ये खुशियां ज्यादा दिन नहीं ठहरी. महज़ 4 महीने बाद ही लक्ष्मी बाई और गंगाधर राव के बेटे की मौत हो गई. अपनी विरासत को बचाने के लिए गंगाधर राव ने दामोदर राव नाम के एक बच्चे को गोद लिया. लेकिन उनके अपने बेटे के मौत के सदमें से वो उबर नहीं सके.


झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने अपने दत्तक पुत्र दामोदर को झांसी का कानूनी वारिस बनवाने के लिए लंदन की अदालत तक कानूनी लड़ाई लड़ी, लेकिन उन्हें इंसाफ नहीं मिला. अंग्रेजी हुकूमत ने रानी लक्ष्मी बाई को झांसी छोड़ देने का फरमान जारी कर दिया और गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी ने झांसी पर कब्ज़ा कर लक्ष्मी बाई को राजगद्दी से बेदखल करने का फैसला जारी कर दिया.


झांसी की रानी ने ठान ली थी कि वो जीते जी झांसी को अंग्रेजो के हवाले नहीं करेंगी. जब अंग्रेजो के दूत रानी लक्ष्मी बाई के पास झांसी छोड़ने का फरमान लेकर आए तो सिंहासन से उठकर, गरज कर लक्ष्मी बाई ने कहा, मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी.