नई दिल्ली: नेटफ्लिक्स पर भारत की दूसरी ओरिजिनल वेब सीरीज 'Ghoul' रिलीज हो गई है. इसमें राधिका आप्टे और मानव कौल जैसे दमदार एक्टर्स हैं. इस सीरिज में एक्शन, हॉरर और थ्रिलर तीनों है. ये सीरिज अपने नाम की वजह से काफी चर्चा में है. 'Ghoul' को हिंदी में क्या लिखा जाए और कैसे लिखा जाए इस बात को लेकर काफी कन्फ्यूजन है. इसे 'घोल', 'घूल', या 'ग़ूल''... आखिर क्या लिखा जाएगा. पढ़कर आपको भी अंदाज़ा हो गया होगा कि ये नाम कुछ अटपटा और अपरितिच है. कन्फ्यूजन इस वजह से है क्योंकि Ghoul नाम हिंदुस्तानी नहीं बल्की अरबी है. अरबी साहित्य में ये एक अफसानवी किरदार है और ये ऐसा जीव (भूत और जिन) है जो इंसानी गोश्त खाता है.

आपको बताते हैं कि हिंदी में Ghoul को कैसे लिखें-

  • भारत में इसका हिंदी में उच्चारण 'घोल' किया जा रहा है. खुद वेब सीरीज में भी 'घोल' लिखा और बोला गया है, लेकिन असल शब्द 'ग़ूल' है. यह सही है कि किसी जिंदा जुबान को व्याकरण के नियमों में जकड़ा नहीं जा सकता, लेकिन ये हर वक्त दुरुस्त नहीं हो सकता. यहां बड़ी दिक्कत ये है कि हिंदी वर्णमाला को आवाज़ के इतेबार से अल्प प्राण और महाप्राण में बांटा जाता है. ख, छ, ठ, थ, फ, घ, ढ, झ, ध- महाप्राण कहे जाते हैं और इससे बने शब्द की आवाज़ें भद्दी होती हैं... जबकि अल्प प्राण से बने शब्द की आवाजें सुरीली होती हैं.


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  • Ghoul को अगर 'घोल' उच्चारण करते हैं तो इसकी आवाज़ भद्दी होंगी, शब्द की शुरुआत महाप्राण अक्षरों से होगी. जबकि 'ग़ूल' कहते हैं तो आवाज़ सुरीली होगी और शब्द की शुरुआत अल्प प्राण अक्षरों से शुरू होगी. हम किसी भी सूरत में किसी शब्द को अल्प प्राण से महाप्राण में नहीं बदल सकते.

  • एक बात और.. फारसी, अरब और रुसी जुबानों में महाप्राण के शब्द होते ही नहीं. यानि अरबी में 'घ' अक्षर नहीं है और न इससे बनने वाले शब्द ही हैं तो उच्चारण कैसे पैदा हो सकता है.

  • आप कह सकते हैं कि हिंदी में 'ग़' नहीं लेकिन अपनाया गया है.... लेकिन अरबी में 'घ' को अपना ही नहीं गया है. और इससे जुड़ी आखिरी बात जिस शब्द का मूल ही अरबी है तो 'घोल' कैसे हो सकता है. इसिलए इसे 'ग़ूल' लिखा और पढ़ा जाएगा.


क्या है Ghoul और इसके पीछे की कहानी -

'असातीर की जमालियात- हिस्सा दोयम' नाम की किताब में इसके लेखक डॉक्टर शकीलुर्रहमान ने 'ग़ूल' किरदार पर विस्तार से लिखा है. शकीलुर्रहमान लिखते हैं कि इस्लाम की आमद से पहले (यानि 570AD से पहले) अरब देशों और मध्य एशिया में किस्सों और कहानियों की बड़ी रिवायत रही है. भूत और जिन से जुड़े किस्से-कहानियां बड़े शौक से सूने जाते थे. ये कहानियां एक इलाके से दूसरे इलाके तक पहुंची. 8वीं सदी में 'ग़ूल' का किस्सा अरब और मध्य एशिया के देशों से बाहर आया. भारत में 'ग़ूल' का पहला जिक्र अलीफ लैला की कहानियों में मिलता है.



अरबी कहानियों में 'ग़ूल' का खूब ज़िक्र है. 'ग़ूल' फरेब और नुकसान पहुंचाने वाली रुहें हैं. ये रुहें बड़े शौक से अपने चेहरे तब्दील करती रहती हैं. अपनी सूरतें बदलती रहती हैं. 'ग़ूल' इंसान की सूरत अख्तियार कर सकते हैं और किसी जानवर की भी. वो चाहें तो पेड़ पत्थर बन जाए. खंडहर इमारतें इनका घर होता है. आग के अंदर भी रह सकते हैं और जमीन के अंदर भी. मन मौजी हैं. बिना किसी वजह के जब चाहें किसी इंसान को सजा दे दें, बीमारी फैला दें. हादसों के भी जिम्मेदार होते हैं.