मनोज का कहना है कि वह किसी भी फिल्म की पटकथा को एक दर्शक की नजर से देखते-परखते और चुनते हैं. फिल्म में मनोज एक खुफिया एजेंसी के प्रमुख और शीर्षक किरदार शबाना को खोजने वाले अधिकारी की भूमिका में हैं. अपने हर किरदार की तरह मनोज ने अपने इस किरदार को भी बखूबी निभाया है.
अपने किरदारों को चुनते हुए वह किस चीज पर ज्यादा ध्यान देते हैं, यह पूछने पर उन्होंने कहा, "मैं एक अभिनेता हूं. मुझे जो भी प्रस्ताव मिलते हैं, उनकी पटकथा को मैं एक दर्शक के तौर पर पढ़ता हूं और अगर दर्शक के तौर पर मुझे पटकथा में कछ नया और अनूठा लगता है, तभी मैं उसे चुनता हूं."
'नाम शबाना' एक जासूसी थ्रिलर फिल्म है और इसे अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है. बॉक्स ऑफिस पर भी फिल्म ने अच्छा प्रदर्शन किया है और फिल्म ने इस सप्ताह रिलीज हुई मध्यम बजट की अन्य फिल्मों से बाजी मार ली है. फिल्म ने पांच दिनों में कुल 23 करोड़ रुपये कमा लिए हैं.
फिल्म के प्रदर्शन के बारे में मनोज ने कहा कि इस फिल्म से वह पूरी तरह संतुष्ट हैं, फिल्म अच्छी चल रही है और अच्छा कर रही है. उम्मीद है कि आगे भी बेहतर करेगी.
इतने अलग-अलग किस्मों के किरदार निभाने के लिए मनोज क्या खास तैयारी करते हैं? यह पूछने पर वह कहते हैं, "मैं हर किरदार के लिए और हर फिल्म की खास जरूरत के अनुसार तैयारियां करता हूं. अपने हर किरदार की तैयारी में मैं कम से कम 20-25 दिन तो देता ही हूं. 'नाम शबाना' के लिए भी मैंने इसी लिहाज से पूरी तैयारी की थी."
मनोज अपने लंबे करियर में अपनी अभिनय प्रतिभा को साबित कर ही चुके हैं और इस फिल्म में भी उनके अभिनय को काफी सराहना मिली है. साथ ही उनकी सह-अभिनेत्री तापसी पन्नू ने भी फिल्म में शानदार काम किया है, जिनकी यह चौथी फिल्म है.
तापसी के बारे में उन्होंने कहा, "तापसी ने बहुत अच्छा काम किया है, वह पूरी फिल्म अपने कंधे पर लेकर गई हैं. उन्होंने जी-तोड़ मेहनत की है. जो कलाकार खुद को पूरी तरह झौंकने के लिए तैयार होते हैं, उसे इंडस्ट्री किसी तरह नकार नहीं सकती."
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के छात्र रह चुके मनोज ने बॉलीवुड की पारी शुरू करने से पहले 10 साल थियेटर को दिए.
अभिनय को निखारने में थियेटर की कितनी भूमिका रही, इस सवाल पर राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता कलाकार मनोज का कहना है, "मैंने कभी अपने आपको हीरो के रूप में नहीं देखा. आपको अपनी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए काम करना पड़ता है. मैं जानता था कि मेरी ताकत मेरा चेहरा-मोहरा नहीं, मेरा अभिनय है. इसके लिए एक खास तरह की तकनीक चाहिए. मैंने उसी को मजबूत बनाया, जिसके लिए मैंने 10 साल थियेटर किया. थियेटर के अलावा वह तकनीक, वह अनुभव और कोई माध्यम नहीं दे सकता."
कमर्शियल सिनेमा और मेनस्ट्रीम सिनेमा को लेकर अक्सर खींचातानी होती रहती है, लेकिन मनोज मानते हैं कि सिनेमाघरों में दोनों तरह के सिनेमा की जगह होनी चाहिए. हर तरह की फिल्में बननी चाहिए और वितरक की नजर में और निर्माता की नजर में हर तरह की फिल्मों का स्थान होना चाहिए.
मनोज दो राष्ट्रीय पुरस्कार और तीन फिल्मफेयर पुरस्कार जीत चुके हैं. साथ ही उन्हें अपने किरदारों के लिए आलोचकों की काफी सराहना भी मिलती रही है. उन्हें क्या अधिक प्रेरित करता है, पुरस्कार या प्रशंसा?
वह कहते हैं, "मुझे लगता है कि बहुत बार तो आलोचक भी मेरा समर्थन नहीं करते. मुझे सबसे अधिक समर्थन दर्शकों और निर्देशकों से मिला है. मैं 23 साल इस उद्योग में अपनी जगह बनाए रख पाया, यह इस बात को साबित करता है कि आप लगन से काम करते रहिए तो आपको दर्शकों का भी समर्थन मिल जाता है और आपको बहुत से निर्देशक भी मिल जाते हैं, जो आप पर विश्वास करते हैं."
मनोज कहते हैं, "आप जब काम कर रहे होते हैं तो अवॉर्ड के लिए काम नहीं कर रहे होते, जब आप शॉट देते हैं तो आपके मन में राष्ट्रीय पुरस्कार या किसी अन्य पुरस्कार की छवि नहीं होती."
मनोज अपने करियर में विविध प्रकार के किरदार निभा चुके हैं, लेकिन क्या कोई ऐसा किरदार है, जिसे निभाने की इच्छा उनके मन में है, यह पूछने पर उन्होंने कहा, "मैं कभी किसी ड्रीम रोल के बारे में नहीं सोचता. मेरे सामने जो भी किरदार आता है, मैं उसी में डूब जाता हूं और वही उस समय मेरा ड्रीमरोल होता है"
'नाम शबाना' के बाद अब मनोज 'सरकार 3', 'लव सोनिया' और 'मिसिंग' में नजर आएंगे. उम्मीद है कि दर्शकों को मनोज की आने वाली फिल्मों में भी उनकी अदाकारी का एक नया आयाम देखने को मिलेगा.