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Ideas of India 2023: 'ज्ञान देना बेवकूफी का काम', 'अलीगढ़' के लिए Manoj Bajpayee को कोसने वालों को एक्टर का जवाब

Ideas of India 2023: मनोज बाजपेयी ने एबीपी नेटवर्क के खास कार्यक्रम आइडिया ऑफ इंडिया 2023 में शिरकत की इस दौरान उन्होंने कई सवालों के जवाब दिए.

Ideas of India 2023:  एबीपी नेटवर्क के खास कार्यक्रम आइडिया ऑफ इंडिया 2023 के दौरान बॉलीवुड के अभिनेता मनोज बाजपेयी पहुंचे थे. इस स्पेशल प्रोग्राम में मशहूर एक्टर ने फिल्म और  वेब सीरीज में अपने बैलेंस और तमाम अपने किरदारों को लेकर बातचीत की. एक्टर ने बताया कि वह दोनों विधाओं में कैसे बेलेंस करते हैं? 

अलीगढ़ जैसी फिल्म करने पर क्या बोले मनोज बाजपेयी

मनोज बाजपेयी ने अलीगढ़ फिल्म करने के बारे में बताते हुए कहा, "उस वक्त एक कलाकार, एक नागरिक एक गांव के आदमी के तौर पर मैं देखूं तो हिंदुस्तान में सपना देखना बड़ा मुश्किल था. मेरे गांव से पटना तक पहुंचने में मुझे काफी समय लग गया. सपना देखना काफी मुश्किल था. आज हर कोई सपना देख सकता है और उसे हासिल कर सकता है. यह फिल्म मेरे लिए काफी अहम रही. क्योंकि एक जर्निलिस्ट ने आर्टिकल में लिखा कि जिन्होंने कहा जो लोग फिल्म में गे का रोल करते हैं, उनका करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया लेकिन मैंने यह फिल्म की आज आपके सामने हूं. इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि लोगों ज्ञान नहीं देना चाहिए."

कैसे बदली फिल्मों से ओटीटी की दुनिया

इस बदलते विधा को लेकर मनोज बाजपेयी ने कहा, "एक वक्त में एक विधा को सोच कर लोग एक्टिव होते हैं तो वह काम करती है. राम गोपाल वर्मा की सत्या ने जो काम किया, उसे देख कर नए डायरेक्टर को अपनी किस्साबयानी करनी की नई राह मिली. हर 20 साल के बाद ऐसा होता है कि जेनरेशन चेंज होती है."

ओटीटी प्लेटफॉर्म के बारे में बात करते हुए मनोज वाजपेयी ने कहा, "4 साल पहले ओटीटी इंडिया में आया लेकिन नार्कोज जैसे शो पहले से भी अमेरिका में धूम मचा रहा था. जब नए कॉन्सेप्ट कला में जुड़ते हैं तो डिमांड ज्यादा होती है. मुझे इस बात की खुशी है कि दर्शक डिमांड कर रहा है. दर्शक अलग अलग माध्यम में अलग अलग चीजें चाहता है."

मनोज बाजपेयी ने कहा, "आज इतने विधा के कला के जुड़ने से मुझे इतनी खुशी होती है कि सबको काम मिलता है. केवल सिनेमा ऐसा नहीं करता था. आज नए लोग इस विधा में काम कर रहे हैं. आपको ऑडिशन के लिए बुलाया जा रहा है. आज एक्टिविटी इतनी सारी है कि एक्टर्स को ऑडिशन देने का समय नहीं है."

कैसे तय किया एक्टिंग का सफर

मनोज वाजपेयी ने कहा, "मैं जब थिएटर करता था तो मुझे काफी मशक्कत करनी पड़ती थी किसी किताब को ढूंढने में.. आज हर कुछ आपके हाथ में. आज मेरे गांव जब कोई लड़का सपना देखता है तो उसे आसानी से अचीव कर सकता है. मेरे सक्सेज में कोई यूफोरिया नहीं है. यह मेरे साथ हुआ वह नॉर्मल नहीं था. मैं अपने घर के बाहर जा कर हाथ हिलाउंगा. तो लोग कहेंगे कि इसे क्या हुआ यह पागल हो गया क्या? लेकिन फिल्मों के बाद मैं लोगों के बीच बैठता हूं तो लोग मेरी तारीफ करते हैं."

मनोज बाजपेयी के लिए इश्क है एक्टिंग

उन्होंने कहा, "मैंने जब इस विधा काम करना शुरू किया तो आज पीछे मुड़कर देखता हूं कि मैं तो खुद को 19 साल के लड़के की तरह देखता हूं. क्योंकि एक्टिंग मेरे लिए इश्क की तरह है और मैं इसे जीता हूं. जब एक्टर बनने के बाद मैं अपने घर गया तो आधी रात को मेरे घर में तीन लोग घुस आए और कहने लगे - मनोज भइया.. मनोज भइया.. बाहर आवा हो. इतना सुनकर मेरी मां मुझ से नाराज होकर कहती थी तुम मत आया करो गांव."

भोजपुरी को लेकर क्या बोले मनोज वाजपेयी?

उन्होंने कहा, "मैंने अपनी मातृभाषा को कभी नहीं छिपाया. मैं उन लोगों की परेशानी समझता हूं जो लोग मेरे यहां से बड़े शहरों में आते तो उनकी लिए यह समस्या बनी रहती है. मैं उन लोगों से कहता हूं कि वह ओरिजिनल बने रहे."

किसी खेमे से जुड़े हैं मनोज वाजपेयी?

इस सवाल पर मनोज वाजपेयी ने कहा, "मैं किसी दरबार का हिस्सा नहीं रहा. क्योंकि मुझे किसी से आशा ही नहीं थी. आपको हर मौके को भुनाना पड़ता है. कभी आप इसमें फेल हो सकते हैं कभी पास हो जाते हैं. इसमें आपको खुद पर विश्वास करना होता. कभी कोई आपको स्टार नहीं बना सकता. आपाका काम ही आपको बड़ा बनाता है."

मनोज बाजपेयी के बारे में

मनोज बाजपेयी का जन्म 23 अप्रैल 1969 को नरकटियागंज, बिहार में हुआ था. बाजपेयी बचपन से एक्टर बनना चाहते थे. मनोज ने अपनी हाई स्कूल तक की पढ़ाई बिहार के बेतिया जिले के के. आर. हाई स्कूल से की. 17 की उम्र में बाजपेयी अपने गांव नारकाटिया से दिल्ली शिफ्ट हो गये. कॉलेज के दिनों में मनोज ने थियेटर करना शुरू कर दिया था.

मनोज बाजपेयी ने फिल्मी दुनिया में डेब्यू गोविन्द निल्हानी की फिल्म द्रोखाल से वर्ष 1994 में किया था. इसके बाद बाजपेयी बायोग्राफिकल ड्रामा फिल्म बैंडिट क्वीन में नजर आये. लेकिन मनोज को हिंदी सिनेमा में पहचान फिल्म शूल से मिली. मनोज को हिंदी सिनेमा मे अपनी पहचान बनाने के लिए काफी स्ट्रगल करना पड़ा, लेकिन आज वह हिंदी सिनेमा में सर्वश्रेष्ठ एक्टर्स की श्रेणी मे आते हैं. अब तक मनोज बाजपेयी कई फिल्मों में काम कर चुके हैं, जिनमे, कलाकार, दाउद, तम्मना, सत्या, प्रेम कथा, कौन, शूल, फिजा, दिल पे मत ले यार, पिंजर, एलओसी कारगिल, वीर-जारा, जेल आदि शमिल हैं.

मनोज बाजपेयी एक भारतीय फिल्म के साथ-साथ तेलुगु और तमिल फिल्मों मे भी सक्रिय हैं. वह अपने एक्टिंग करियर मे अब तक दो नेशनल फिल्म अवार्ड और चार फिल्म फेयर अवार्ड जीत चुके हैं. मनोज को फिल्म 'भोंसले' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के 67वां राष्ट्रिय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. 

यह भी पढ़ें- Selfiee Review: अक्षय कुमार-इमरान हाशमी की ये फिल्म है 'फैमिली एंटरटेनर', लेकिन है वन टाइम वॉच

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