Imtiaz Ali Birthday: बॉलीवुड के शानदार डायरेक्टर्स की लिस्ट में इम्तियाज अली का नाम भी शामिल है. इम्तियाज का फिल्में बनाने का तरीका अन्य निर्देशकों से अलग है. इम्तियाज 53 साल के होने जा रहे हैं. 16 जून 1971 को इम्तियाज अली का जन्म झारखंड की राजधानी जमशेदपुर में हुआ था. आइए इस मौके पर उनसे जुड़ी कुछ खास बातें जानते हैं.


पटना में हुई 8वीं तक की पढ़ाई


इम्तियाज के पिता सिंचाई विभाग में इंजीनियर थे और उनकी मां हाउस वाइफ थीं. इम्तियाज का जन्म जमशेदपुर में हुआ था लेकिन उनकी आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई पटना के सेंट जेवियर्स स्कूल में हुई थी. इसके बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए वापस जमशेदपुर आ गए थे. 


फूफा के कारण आया फिल्मों की ओर रुझान 






इम्तियाज अपने फूफा के घर में रहते थे. उनके फूफा के तीन-तीन थिएटर थे और यहीं से इम्तियाज का झुकाव सिनेमा की ओर होने लगा. उनके फूफा का एक थिएटर तो बिल्कुल घर से सटा हुआ था. घर में एक खिड़की से थिएटर के पर्दे का थोड़ा सा हिस्सा दिखा करता था और इम्तियाज चोरी-छिपे फिल्मे देखा करते थे. यहीं से फिल्मी दुनिया की ओर उनका इंट्रेस्ट बढ़ने लगा. 


'कुरुक्षेत्र' और 'महाभारत' सीरियल को किया डायरेक्ट


इम्तियाज ने आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली के हिंदू कॉलेज का रुख किया. इसके साथ ही वे दिल्ली में थिएटर से भी जुड़ गए. यहां वे नाटक लिखने और उन्हें डायरेक्ट करने का काम करने लगे. बता दें कि इम्तियाज बॉलीवुड में आने से पहले 'कुरुक्षेत्र' और 'महाभारत' जैसे सीरियल्स को भी डायरेक्ट कर चुके हैं.


सोचा न था से शुरू हुई बॉलीवुड पारी


साल 2005 में आई फिल्म 'सोचा न था' से इम्तियाज ने बतौर बॉलीवुड निर्देशक अपनी शुरुआत की. हालांकि यह फिल्म चली नहीं. इसके बाद साल 2006 में आई फिल्म 'आहिस्ता आहिस्ता' ने भी निराश किया. लेकिन साल 2007 में रिलीज हुई फिल्म 'जब वी मेट' ने उन्हें पहचान दिलाई. यह फिल्म हिट रही थी. अपने करियर में इम्तियाज 'रॉकस्टार', 'हैरी मेट सेजल', 'हाइवे' 'लव आज कल' और 'अमर सिंह चमकीला' जैसी फिल्में भी डायरेक्ट कर चुके हैं.


बचपन से श्रीमद्भगवद गीता पढ़ रहे हैं इम्तियाज






इम्तियाज के जीवन में श्रीमद्भगवद गीता ने खासा प्रभाव डाला है. हाल ही में रणवीर अल्लाहबदिया के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि, ''मैंने बहुत छोटे में ही हिंदू मायथोलॉजिकल किताबें पढ़ ली थीं और इसका मेरे जीवन में काफी असर भी पड़ा. मैं इसे बिना पढ़े नहीं रह पाया. मुझे इसके मायने समझ में आने लगे. भगवत गीता मेरे जीवन में भी एक महत्वपूर्ण किताब है. ये वो किताब है जिसे आज भी आप मेरी टेबल पर पाएंगे. छठी क्लास में मैं ट्रेन से सफर कर रहा था और मेरी जेब में ज्यादा पैसे नहीं थे. और इत्तेफाक ये हुआ कि गीता ही वो किताब रेलवे स्टेशन के उस स्टॉल में थी जो मैं अफोर्ड कर सकता था. मुझे ऐसा भी लगा कि मेरे आस-पास जो लोग हैं उन्हें सोचकर अजीब लग रहा होगा कि मैं गीता क्यों पढ़ रहा हूं.''


इम्तियाज ने आगे कहा था कि, ''मुझे ये किताब पढ़ने के दौरान कुछ ऐसी चीजें थीं जिन्हें 10-12 बार पढ़ना पड़ा. लेकिन मैं समझ गया. इसके बाद मैं हर दिन कुछ पेज पढ़ता था. अब तो ये किताब मैं गहराई से जानता हूं. मैं लकी हूं कि मैंने ये किताब बचपन में ही पढ़ ली. इस किताब को पढ़कर मुझे लोगों को समझने में और मदद मिली. इसके अलावा मैंने और भी धार्मिक किताब पढ़ी. ये भी काफी इंटरेस्टिंग थीं और मुझे मनोरंजक लगीं. अगर मुझे रियल लाइफ में उसका कोई रिफ्रेंस मिल जाता है जिससे मैं रिलेट कर जाता हूं तो मेरा दिन बन जाता है.''


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